देश में बड़े आयोजनों के दौरान भीड़ में भगदड़ की घटनाएं राष्ट्रीय चिंता का विषय बन गई हैं। हाल के महीनों की बात करें, तो देश के विभिन्न हिस्सों में भीड़ प्रबंधन की विफलता के कारण कई लोगों की जान गई हैं। तमिलनाडु के करूर में एक राजनीतिक रैली में मची भगदड़ भी इनमें से एक है। इससे पहले प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भी भगदड़ की स्थिति पैदा हुई थी, जिसमें कई श्रद्धालुओं और यात्रियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। पिछले वर्ष हाथरस में हुई भगदड़ की त्रासदी तो इतनी भयावह थी कि इसमें सौ से अधिक लोगों की जान चली गई।
ये सभी घटनाएं प्रशासनिक तैयारी की कमी, भीड़ नियंत्रण की पर्याप्त व्यवस्था न होने और आयोजकों की लापरवाही की ओर इशारा करती हैं। पिछले दो दशकों में भगदड़ की लगभग बाइस बड़ी घटनाएं हुई हैं, जिनमें कुल मिला कर पंद्रह सौ से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवाई है। ये आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि भीड़ प्रबंधन में लापरवाही बरती जाती है जो बार-बार त्रासदियों का कारण बनती है।
अनियंत्रित भीड़ से होने वाली दुर्घटनाओं के कई कारण
अनियंत्रित भीड़ से होने वाली इन दुर्घटनाओं के कई प्रमुख कारण हैं, जो प्रत्येक घटना में समान रूप से सामने आते हैं। सबसे पहली समस्या यह है कि अधिकांश आयोजनों में अनुमानित संख्या से कहीं अधिक लोग आ जाते हैं। हाथरस की घटना में प्रशासन को पचास हजार लोगों के आने की सूचना दी गई थी, जबकि वास्तव में वहां ढाई लाख से अधिक लोग पहुंच गए। इस तरह की गलत सूचना या जानबूझ कर कम संख्या बताने से प्रशासनिक तैयारी अधूरी रह जाती है। दूसरी बड़ी समस्या आयोजन स्थल पर पर्याप्त निकास मार्गों की व्यवस्था न होना है। कई बार भीड़ के प्रवेश के लिए तो व्यापक व्यवस्था होती है, लेकिन कार्यक्रम समाप्त होने पर बाहर निकलने के लिए रास्ते छोटे या कम पड़ जाते हैं।
करूर की घटना में भी यही देखा गया कि संकरे रास्तों में हजारों लोग एक साथ बाहर निकलने का प्रयास कर रहे थे, जिससे भगदड़ की स्थिति पैदा हो गई। तीसरी समस्या प्रशिक्षित सुरक्षा कर्मियों की कमी है। अक्सर देखा गया है कि ज्यादातर आयोजनों में स्थानीय स्तर के सेवादार या अप्रशिक्षित लोग भीड़ को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं, जो आपात स्थिति में सही निर्णय लेने में असमर्थ होते हैं। चौथी समस्या आधुनिक तकनीक के उपयोग की कमी है, जैसे सीसीटीवी निगरानी, भीड़ की गति को मापने वाले सेंसर और तत्काल संचार प्रणाली, जो खतरे की स्थिति में शीघ्र हस्तक्षेप संभव बना सकें।
धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों में भगदड़ की घटनाएं चिंताजनक
धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों में भगदड़ की घटनाएं विशेष रूप से चिंताजनक हैं, क्योंकि इनमें भावनात्मक आवेश का स्तर बहुत ऊंचा होता है। हाथरस और महाकुंभ में श्रद्धालुओं की भीड़ का अनियंत्रित होना इसी आवेश का उदाहरण है। धार्मिक स्थलों पर होने वाली भगदड़ में अक्सर यह देखा जाता है कि श्रद्धालु किसी भी संकेत या चेतावनी को नजरअंदाज कर देते हैं और अपनी आस्था की पूर्ति में इतने तल्लीन हो जाते हैं कि उन्हें आसपास के खतरों का भान नहीं रहता। राजनीतिक रैलियों में भी समान परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं, जहां समर्थकों का उत्साह और नेताओं को देखने की उत्सुकता भीड़ को अनियंत्रित कर देती है। इन सभी स्थितियों में आयोजकों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे भीड़ के मनोविज्ञान को समझते हुए उचित व्यवस्था करें। भगदड़ की घटनाओं में जांच निष्कर्षों से पता चलता है कि अधिकांश मामलों में प्रशासनिक और आयोजकों की लापरवाही बड़ी वजह रही है।
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हाथरस घटना की न्यायिक जांच में यह पाया गया कि आयोजकों ने जानबूझ कर भीड़ की संख्या कम बताई और प्रशासन ने भी पूर्व तैयारी में कोताही बरती। करूर की घटना में भी सुरक्षा खामियां सामने आईं, जहां रैली स्थल पर पर्याप्त अवरोधक प्रणाली और आपातकालीन निकास की व्यवस्था नहीं थी। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ की घटना में रेलवे प्रशासन की जिम्मेदारी स्पष्ट थी, क्योंकि महाकुंभ के कारण भारी भीड़ की संभावना थी, फिर भी प्लेटफार्म पर समुचित व्यवस्था नहीं की गई। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में भीड़ प्रबंधन को गंभीरता से नहीं लिया जाता और इसे केवल पुलिस बल की तैनाती तक सीमित मान लिया जाता है। जबकि वास्तविकता यह है कि भीड़ प्रबंधन एक विशेषज्ञता का क्षेत्र है, जिसमें मनोविज्ञान, प्रौद्योगिकी और आपातकालीन प्रतिक्रिया का समन्वय आवश्यक है। विकसित देशों में बड़े आयोजनों के लिए विशेष भीड़ प्रबंधन योजनाएं तैयार की जाती हैं और उन्हें लागू करने के लिए प्रशिक्षित दल होते हैं।
ड्रोन से निगरानी करके हो सकता है प्रबंधन
देश में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने भीड़ प्रबंधन के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर इनका पालन बहुत कम होता है। इन दिशा-निर्देशों में भीड़ के आकार का सही अनुमान लगाना, पर्याप्त प्रवेश और निकास मार्ग बनाना, चिकित्सा आपातकालीन सेवाओं की तैयारी, सीसीटीवी निगरानी, सार्वजनिक घोषणा प्रणाली और प्रशिक्षित सुरक्षा कर्मियों की व्यवस्था शामिल है। इसके अतिरिक्त दिशा-निर्देशों में यह भी सुझाव दिया गया है कि बड़े आयोजनों के लिए आयोजकों को प्रशासन से पूर्व अनुमति लेनी चाहिए और सुरक्षा योजना प्रस्तुत करनी चाहिए। मगर, व्यावहारिक तौर पर कई आयोजक इन नियमों को दरकिनार कर देते हैं और प्रशासन भी राजनीतिक या धार्मिक संवेदनशीलता के कारण सख्त कार्रवाई से बचता है।
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विशेषज्ञों का मानना है कि भीड़ प्रबंधन के लिए एक स्थायी और व्यावसायिक तंत्र विकसित किया जाना चाहिए, जो बड़े आयोजनों की निगरानी और मार्गदर्शन करे। इसके साथ ही प्रौद्योगिकी का अधिकतम उपयोग किया जाना चाहिए जैसे- कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित भीड़ विश्लेषण प्रणाली, जो वास्तविक समय में भीड़ के घनत्व और गति को माप कर संभावित खतरों की चेतावनी दे सके। ड्रोन से निगरानी और ताप संवेदक का प्रयोग भी किया सकता है, जो भीड़ के अत्यधिक दबाव वाले क्षेत्रों की पहचान करने में सहायक होते हैं। भगदड़ की घटनाओं में कानूनी जवाबदेही का प्रश्न भी महत्त्वपूर्ण है। अधिकांश मामलों में आयोजकों के खिलाफ मामले दर्ज तो होते हैं, लेकिन सबूतों के अभाव में ज्यादातर बच निकलते हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या इन घटनाओं को रोकने के लिए कानूनी प्रावधान पर्याप्त हैं?
भीड़ प्रबंधन को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाना होगा
नीति निर्माताओं को इस पर गंभीरता से विचार करना होगा, ताकि आयोजक और प्रशासन दोनों अपनी जिम्मेदारियों के प्रति गंभीर रहें। इसके अतिरिक्त प्रत्येक घटना के बाद एक स्वतंत्र और पारदर्शी जांच होनी चाहिए, जिसकी सिफारिशों को कड़ाई से लागू किया जाए, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। जनसंख्या और सामाजिक-धार्मिक गतिविधियों के लिहाज से भारत एक विशिष्ट देश है, जहां वर्ष भर में कई बड़े आयोजन होते हैं। कुंभ मेला, दुर्गा पूजा, गणेश चतुर्थी, जन्माष्टमी के दही हांडी कार्यक्रम, राजनीतिक रैलियां और सांस्कृतिक महोत्सव जैसे अनगिनत अवसर होते हैं, जहां लाखों लोग एकत्र होते हैं। इन सभी आयोजनों को सुरक्षित बनाना चुनौतीपूर्ण कार्य है। ऐसे में लोगों को जागरूक करना भी जरूरी है कि भीड़ में किस प्रकार का व्यवहार सुरक्षित है और आपात स्थिति में क्या करना चाहिए। शासन-प्रशासन, आयोजक और आम जनता सभी को मिल कर यह सुनिश्चित करना होगा कि सार्वजनिक आयोजन सुरक्षित हों। भीड़ प्रबंधन को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाना होगा और इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।