प्रायश्चित एक मानवीय भावना है, जो हमें जीवन में सही राह पर जाने की प्रेरणा प्रदान करती है। कई बार हमें यह भी लगता है कि अब वक्त निकल गया, तो अब इसके विषय में क्या ही किया जा सकता है। मगर प्रायश्चित का यह भाव किसी भी वक्त का मोहताज नहीं होता है। यह हमारे कल की गलती को आज का सबक बनाता है, जिससे आजीवन हम सीखते रहते हैं।
जीवन में हम सभी कभी न कभी किसी न किसी प्रकार की गलती कर बैठते हैं। यह मानव होने के नाते स्वाभाविक ही है कि हमसे गलती होगी। हमारी यही गलतियां हमें बहुत कुछ सिखाती है। चाहे आर्थिक मामले हों, सामाजिक मामले या फिर कोई भावनात्मक, प्रायश्चित उस हर गलती के लिए एक जरूरी अध्यापक की तरह है, जो हमें सिखाता है कि एहसास के इस भाव से हम अपने आने वाले वक्त को कैसे सुधारें।
पश्चाताप के बजाय प्रायश्चित की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए
कई बार कुछ लोगों को ऐसा भी लग सकता है कि हमें अपनी भूलों के प्रति इतना ज्यादा गंभीर नहीं होना चाहिए, क्योंकि ये हमें शायद नकारात्मकता की ओर ले जाएं। मगर प्रायश्चित और पश्चाताप दोनों में काफी फर्क है। प्रायश्चित हमें अपनी गलतियों को सुधारने की दिशा में लेकर जाता है, जबकि पश्चाताप केवल एक अहसास है।
प्रायश्चित एक महत्त्वपूर्ण चीज है, जो क्रियात्मक रूप में की जाती है। इसलिए पश्चाताप के बजाय प्रायश्चित की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए, ताकि हम नकारात्मक न बनें और अपनी भूलों को सुधारने के प्रयास में लग जाएं। हम सफल तभी होंगे, जब हमारा मन इस ओर बिल्कुल पवित्र, सहज और सरल होगा। ऐसे में यह भावना हमें किसी भी तरह की नकारात्मकता प्रदान नहीं कर सकती है।
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हम सभी को याद होगा कि जब हम बचपन में परीक्षा की अच्छी तैयारी नहीं कर पाते थे और परीक्षा में कम अंक लाने पर हमारा मन अंदर ही अंदर दुखी होता था। साथ ही अपना मूल्यांकन करता रहता था। वह हमारा पश्चाताप होता था, लेकिन हम उस भूल को सुधारकर कड़ी मेहनत के साथ अगली बार परीक्षा में अच्छे अंक ला पाते थे, तो वह भी हमारा प्रायश्चित था।
प्रायश्चित वह भाव है, जो हमें जीवन की सीख देता है और एक उत्कृष्ट जीवन जीने का तरीका सिखाता है, लेकिन इस भाव को इस रूप में भी नहीं लेना चाहिए कि हर छोटी से छोटी गलती को या किसी भूल को हम गम बना लें और जीवन भर उसे सीने से लगाकर घूमें। बल्कि इसे अपने अंदर सकारात्मक बदलाव का संदेश समझकर उसके मूल भाव को दृष्टिकोण में रख कर अपने सामर्थ्य के अनुसार सुधारात्मक प्रयास करना चाहिए। अगर हम गम गले से लगा कर रखेंगे तो पूरी जिंदगी असफलता, बेचारगी और कटुता को लेकर घूमेंगे।
पश्चाताप करना प्रायश्चित का मूल उद्देश्य बिल्कुल नहीं
इस तरह से पश्चाताप करना प्रायश्चित का मूल उद्देश्य बिल्कुल नहीं है। इसके मूल में यही बात छिपी है, जिसे हम समझाइश, शिक्षा या अनुभव का नाम दे सकते हैं। इस अनुभव के लिए छोटी उम्र से ही हमारे अभिभावक, शिक्षक और बड़े-बुजुर्ग हमें हिदायतें देते रहते थे।
हिदायतें हमें प्रायश्चित का मूल्य प्रदान करती रही हैं, लेकिन इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं निकाला जाना चाहिए कि हर बार हर व्यक्ति को उसकी गलती को महसूस कराते रहना चाहिए, क्योंकि लगातार मिलने वाली हिदायतें, नसीहतें भी कभी-कभार बोझ लगने लगती है और फिर अपना अस्तित्व खोने लगती है।
ऐसे में कई बार ऐसा भी होता है कि व्यक्ति अपना सर्वस्व ही खोने लगे। इसलिए कुछ बड़े और गंभीर विषयों को लेकर ही इस तरह की चीजों को प्रयोग में लाया जाना चाहिए, वरना व्यक्ति निराशावादी और यथास्थितिवादी भी बन सकता है।
दरअसल, अति हर चीज की बुरी होती है। यही विचार उस व्यक्ति पर भी लागू होता है जो पश्चाताप की अग्नि में जल रहा होता है। बिना किसी बड़ी बात के पश्चाताप करना गलत है, क्योंकि यह न केवल हमारे वक्त की बर्बादी है, बल्कि उपयोगिता विहीन विषय है। पश्चाताप का भाव रखना ठीक है, लेकिन उसे नियंत्रित रखना और प्रायश्चित का रूप देना चाहिए।
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पश्चाताप के साथ ही साथ हमें प्रायश्चित को महत्त्व देना चाहिए, ताकि हम अपने जीवन में उपयोगी और सुधारात्मक विषयों यथा करिअर, भावनात्मक भूलें, प्रतिष्ठा, जीवन मूल्यों आदि के लिए सार्थक प्रयास कर सकें। पश्चाताप के अति भावुक पक्ष में घुसकर हमें कुछ हासिल नहीं होगा, बल्कि हम खुद को जीवन भर कोसते रहेंगे और अपने समय की बर्बादी कर बैठेंगे।
जरूरत इस बात की है कि हम अपने बड़ों और ऐसे लोगों, जो हमारे शुभचिंतक हैं, उनकी बातों को सकारात्मक रूप में लें। समाज में भी बहुत से लोग हमें कई बातें सिखाते हैं, जिनमें से कुछ अच्छी होती हैं और कुछ व्यर्थ की होती हैं। ऐसे में चुनाव करना सीखना चाहिए।
पश्चाताप एक पवित्र मानवीय भावना है और इसका एक क्रियात्मक पक्ष है। इसको गलती सुधारने और अपना जीवन पक्ष मजबूत बनाने के लिए उपयोगी बनाना चाहिए। अन्य व्यर्थ के मुद्दों को लेकर मन को दुखी नहीं करना चाहिए। समय बहुत ही कीमती है और अपने भावों को नियंत्रित करके रखना, यह बात सीखना भी उतना ही कीमती है।
अपने भावों को नियंत्रित कर पाना जरूरी
अगर हम अपने भावों को नियंत्रित कर पाए, तो देख सकते हैं कि एक इंसान होने के नाते हम कितनी तरक्की करते हैं। ये तरक्की ही हमारे सामाजिक, भावनात्मक और राष्ट्रीय पक्ष को मजबूत बनाएगी। इसलिए हम पश्चाताप का भाव रखें, लेकिन नियंत्रित तौर पर और प्रायश्चित पर ध्यान दें, ताकि हम इसके सही अर्थ को समझें और अपने आपको निरंतर निखारें।
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