आज शनिवार को नहाय-खाय से छठ का पावन पर्व शुरू हो गया है। राजधानी दिल्ली में मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता इस बार के छठ को ऐतिहासिक, यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। पिछले साल की तस्वीरें जरूर झाग वाली यमुना, प्रदूषण में डुबकी लगाते श्रद्धालुओं की रही थी, लेकिन अब जब दिल्ली में बीजेपी की सरकार है, इस नेरेटिव को बदलने की पुरजोर कोशिश जारी है। दिलचस्प यह है कि जितनी मेहनत दिल्ली की रेखा सरकार कर रही है, उससे ज्यादा कामना दिल्ली से 1,123.6 किलोमीटर दूर बिहार में बैठे एनडीए के नेता कर रहे हैं।

दिल्ली में प्रवासी लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है, यहां भी यूपी-बिहार से आए लोग ज्यादा तादाद में रहते हैं। 2011 की जनगणना बताती है कि दिल्ली में तीन में से दो प्रवासी या तो उत्तर प्रदेश के होते हैं या फिर बिहार से। यहां भी आंकड़े इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि बिहार से आए लोगों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। अकेले दिल्ली के तीन जिलों में प्रवासियों की संख्या 40 फीसदी के करीब है, यहां भी नई दिल्ली, साउथ दिल्ली और दक्षिण-पश्चिमी दिल्ली में इनकी उपस्थिति सबसे ज्यादा मानी जाती है। बात अगर बिहारी प्रवासियों की करें तो दिल्ली के उत्तर, पश्चिमी, और दक्षिण जिलों में दो लाख के करीब उनकी आबादी है।

अब दिल्ली की इस प्रवासी आबादी के लिए छठ पर्व एक बड़ा धार्मिक अनुष्ठान है। वे राजधानी में जब यमुना किनारे सूर्य को अर्घ्य देने जाते हैं, उनके लिए वो सिर्फ पूजा मात्र तो नहीं है, वे तो इसे अपनी संस्कृति, अपनी प्राचीन परंपरा और अपनी अस्मिता से जोड़कर देखते हैं। आज के दौर में जब कुछ लोग खुद की बिहारी पहचान छिपाने की कोशिश करते हैं, उनसे बड़ी तादाद ऐसे लोगों की है जो उसी पहचान पर गर्व करते हैं। ऐसे में उनकी आस्था को अगर जरा भी चोट पहुंचेगी तो सियासी झटके सिर्फ राजधानी दिल्ली तक सीमित नहीं रहने वाले हैं, बिहार के गलियारों में भी इस पर राजनीतिक रोटियां जरूर सेकी जाएंगी और एनडीए को भी इसी बात का डर सता रहा है।

इस समय दिल्ली में बिहारी प्रवासियों का सम्मान ही बिहार में एनडीए का सियासी भविष्य तय कर सकता है। इस देश में आज भी कई मौकों पर असल मुद्दों पर जाति और धर्म हावी हो जाते हैं। ऐसे में दिल्ली में अगर रेखा सरकार से छठ के आयोजन में कोई भी चूक होगी, उसका विपक्ष के लिए सीधा मतलब होगा- बिहारियों का अपमान, बिहारी परंपरा का अपमान और बिहारी अस्मिता को चोट। ऐसे में भावनात्मक मुद्दे कई बार पासा पलट सकते हैं और जीती हुई बाजी भी हारी जा सकती है।

ऐसे में दिल्ली में छठ के अच्छे आयोजन का मतलब है कि राजधानी में रहने वाले कई प्रवासी वोटर जब बिहार में चुनाव के लिए वोटिंग करने जाएंगे, उनके मन में यह जरूर रहेगा कि बीजेपी सरकार ने उनकी आस्था का ख्याल रखा, उनकी धार्मिक परंपराओं का पूरी तरह सम्मान किया गया। वो सम्मान, वो इज्जत ही किसी पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए काफी है। चुनाव आयोग खुद इस बात को मानता है कि जब भी छठ पर्व के बाद बिहार में विधानसभा चुनाव करवाए जाते हैं तो वोटिंग प्रतिशत में वृद्धि देखने को मिलती है, इसमें बड़ी संख्या प्रवासियों की भी रहती है। ऐसे में यह एक ऐसा वोटबैंक है जो कहने को बिहार में मौजूद नहीं है, लेकिन फिर भी बिहार की राजनीति में काफी अहम बना हुआ है।

बीजेपी के लिए तो इस बार छठ ज्यादा बड़ी चुनौती इसलिए भी है क्योंकि उसके ‘डबल इंजन’ वाले वादे की ये अग्नि परीक्षा है। पहले तो फिर भी दिल्ली में केजरीवाल की सरकार थी तो अगर छठ के आयोजन में चूक हो गई तो बीजेपी उसे बिहार में आराम से सियासी मुद्दा बना सकती थी, लेकिन अब जब राजधानी में उनकी सरकार है, केंद्र में वे सत्ता में है और बिहार में भी एनडीए ही राज कर रहा है, इस स्थिति में तो कोई भी बहाना काम नहीं आने वाला है और वोटर भी इसी कसौटी पर परखेगा।

वैसे दिल्ली की रेखा सरकार कसौटी पर कितना खरी उतर रही है, इसका असल प्रचार दिल्ली से मनोज तिवारी को करना होगा। वे बीजेपी के एक बड़े पूर्वांचली नेता हैं, भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार हैं और बिहार की जनता के बीच में उनकी लोकप्रियता भी जबरदस्त है। इसी तरह रवि किशन को भी बीजेपी अपना ब्रांड एंबेसडर बना सकती है, ‘छठ के सफल आयोजन’ वाले नेरेटिव का प्रचार उनके कंधों पर भी रहने वाला है। इन दोनों ही नेताओं को बीजेपी ने बिहार चुनाव में भी अपनी स्टार प्रचारक की सूचि में रखा है और बिहार के पूर्वी-चम्पारण, पश्चिम-चम्पारण, सीवान, सारण, समस्तीपुर, गोपालगंज जैसी सीटों पर उनका ठीक-ठाक प्रभाव भी है।

अभी के लिए मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने छठ आयोजन को लेकर बड़े वादे कर दिए हैं, बिहार एनडीए के नेता भी उम्मीद भरी नजरों से राजधानी को देख रहे हैं। राज्य सरकार का दावा है कि इस बार छठ महापर्व को दिवाली जैसी भव्यता दी जाएगी। इसके ऊपर यमुना नदी के किनारे 17 मॉडल छठ घाट बनाए जा रहे हैं, पूरी कोशिश है कि श्रद्धालुओं को अर्घ्य देते समय शुद्ध जल मिले। सोशल मीडिया उन तस्वीरों से भी पट चुका है जहां पर सांसद, विधायक और पार्षद अपने-अपने क्षेत्रों के घाटों पर जाकर सफाई अभियान चला रहे हैं। ऐसे में दिल्ली में छठ के बेहतर इंतजाम की तैयारी पूरी है और बिहार एनडीए नेताओं की प्रार्थना भी लगातार जारी है।

बिहार चुनाव की पूरी कवरेज के लिए जनसत्ता के पेज का रुख करें