भारत सेवा निर्यात में भले ही नई ऊंचाई हासिल करते हुए वैश्विक सेवा निर्यात का एक प्रमुख केंद्र बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है, मगर इस मामले में उसके सामने चुनौतियां भी कम नही हैं। इनमें सेवाओं की गुणवत्ता, दक्षता, सभी क्षेत्रों में कारोबार बढ़ाने, ग्रामीण और छोटे शहरों में शोध एवं नवाचार के साथ-साथ युवाओं में कृत्रिम मेधा (एआइ) जैसे कौशल विकसित करने की चुनौतियां प्रमुख हैं। इनके साथ-साथ अमेरिका की नई शुल्क नीति और वीजा चुनौतियां भी भारत के सेवा निर्यात की राह में मुश्किलें खड़ी कर रही हैं। इन चुनौतियों के बीच भारत अपने असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को कौशल विकास और डिजिटल क्षेत्र में शिक्षित-प्रशिक्षत करके उसे सेवा निर्यात में सहभागी बनाने की संभावनाओं को साकार रूप दे सकता है।

पिछले वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान भारत का सेवा निर्यात 387.5 अरब डालर रहा था। उम्मीद है कि यह चालू वित्त वर्ष 2025-26 के अंत तक 475 अरब डालर की रेकार्ड नई ऊंचाई पर पहुंच जाएगा। वर्ष 2013-14 में भारत के सेवा निर्यात का आकार महज 152 अरब डालर था। नेशनल स्टाक एक्सचेंज (एनएसई) के मुताबिक, भारत ने वैश्विक सेवा निर्यात में 4.3 फीसद की हिस्सेदारी के साथ अब दुनिया में सातवां स्थान हासिल कर लिया है। वर्ष 2001 में सेवा निर्यात के मामले में भारत 24वें स्थान पर था। यह उपलब्धि मुख्य रूप से दूरसंचसार, सूचना प्रौद्योगिकी और वाणिज्य सेवाओं की बदौलत संभव हो पाई है। ये क्षेत्र देश के कुल सेवा निर्यात का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा रखते हैं। इनके साथ-साथ भारत सांस्कृतिक और मनोरंजन सेवा निर्यात में भी आगे हैं।

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सेवा निर्यात की मौजूदा प्रगति देश में हो रहे संरचनात्मक सुधारों, तकनीकी विकास और नई पीढ़ी की उच्च कौशल युक्त क्षमताओं का परिणाम है। गौरतलब है कि सेवा निर्यात में सूचना प्रौद्योगिकी, वाणिज्य, बैंकिंग, वित्त, बीमा, पर्यटन, आतिथ्य, शिक्षा, चिकित्सा और कृत्रिम मेधा जैसी सेवाओं का निर्यात शामिल है। भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (जीसीसी) खोलने में आई तेजी से भी सेवा निर्यात बढ़ रहा है। नैसकाम और जिनोव की ओर से जारी इंडिया जीसीसी-लैडस्केप रपट के मुताबिक, जीसीसी के लिए भारत दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र बन रहा है। फिलहाल देश में 1800 से अधिक जीसीसी हैं, जिनसे 21 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिल रहा है। दुनिया के करीब पचास फीसद जीसीसी सिर्फ भारत में हैं। देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में जीसीसी का योगदान 1.5 फीसद से अधिक है, जो वर्ष 2030 तक 3.5 फीसद हो जाएगा। जीसीसी प्रमुख रूप से सूचना प्रौद्योगिकी, उपभोक्ता सेवाएं, वित्त, मानव संसाधन और अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि भारत में कृत्रिम बुद्धिमता और डेटा विश्लेषण जैसे क्षेत्रों में शोध एवं विकास तथा नवउद्यम के अनुकूल माहौल से अमेरिका, यूरोप और एशियाई देशों की बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने केंद्र यहां खोलना चाहती हैं। वास्तव में भारत के सेवा क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमता के आगमन से इस क्षेत्र में रोजगार के नए द्वार खुल रहे हैं। भारत जैसे-जैसे रणनीतिक रूप से कृत्रिम बुद्धिमता के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे यहां की नई पीढ़ी भी इसमें लगातार अपना योगदान बढ़ा रही है। ओपन एआइ के प्रमुख सैम आल्ट मैन के मुताबिक, कृत्रिम बुद्धिमता के लिए दुनिया में भारत दूसरा सबसे बड़ा बाजार है।

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वहीं, गुगल के सीईओ सुंदर पिचाई का मानना है कि भारत इस क्षेत्र में दुनिया का नेतृत्व कर सकता है। इस समय भारत में कृत्रिम बुद्धिमता पारिस्थितिकी तंत्र का काफी तेजी से विस्तार हो रहा है। इस वर्ष भारत का कृत्रिम बुद्धिमता का बाजार 13.05 अरब डालर मूल्य की ऊंचाई पर है, जिसका आकार वर्ष 2032 में 130.63 अरब डालर तक पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है। भारत में प्रौद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धिमता पारिस्थितिकी तंत्र में वर्तमान में साठ लाख से अधिक लोग कार्यरत हैं। देश में लगभग 1.8 लाख नवउद्यम हैं और पिछले वर्ष शुरू किए गए नवउद्यमों में से करीब 89 फीसद ने अपने उत्पादों या सेवाओं में कृत्रिम बुद्धिमता का उपयोग किया है।

इसमें दोराय नहीं कि सेवा निर्यात भारतीय अर्थव्यवस्था का एक अहम पहलू बन गया है। इससे न केवल विदेशी व्यापार घाटे को थामे रखने में मदद मिल रही है, बल्कि देश में रोजगार निर्माण में भी इसका महत्त्वपूर्ण योगदान है। नीति आयोग की नई रपट में कहा गया है कि देश के सकल घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र का योगदान 55 फीसद से अधिक है और लगभग 18.8 करोड़ लोगों को यह रोजगार से जोड़ता है। सेवा क्षेत्र ने पिछले छह वर्षों में चार करोड़ अतिरिक्त रोजगार पैदा किए हैं। देश का सेवा निर्यात 14.8 फीसद की चक्रवृद्धि वार्षिक दर से बढ़ रहा है, जो वस्तु निर्यात के 9.8 फीसद से कहीं ज्यादा है।

ऐसे में भारत को सेवा क्षेत्र को और मजबूत करते हुए सेवा निर्यात में तेजी लाने की नई रणनीति के साथ आगे बढ़ना होगा। इस बात पर ध्यान देना होगा कि अभी भी भू-राजनीतिक रूप से भारत का सेवा क्षेत्र देश की व्यापक आर्थिक असमानता को दर्शाता है। देश में कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और तमिलनाडु उच्च मूल्य वाली सेवाओं मसलन- सूचना प्रौद्योगिकी, वित्त और अचल संपत्ति में दबदबा रखते हैं। जबकि देश के अधिकांश राज्य अभी भी सेवा क्षेत्र में तुलनात्मक रूप से पीछे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं हैं कि देश अपने संरचनात्मक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, और अर्थव्यवस्था के औपचारिक एवं शहरीकृत होने के साथ-साथ सेवा क्षेत्र में और भी ज्यादा कर्मचारियों को शामिल करने की क्षमता मौजूद है। सेवा क्षेत्र में लैंगिक समानता पर भी ध्यान देना जरूरी है। ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 10.5 फीसद महिलाएं सेवा क्षेत्र में कार्यरत हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह आंकड़ा 60 फीसद है।

यह बात भी ध्यान में रखनी होगी कि अब सेवा निर्यात के क्षेत्र में भी प्रतिस्पर्धा लगातार बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में भारत के सेवा निर्यात में तेजी लाने के लिए सेवाओं की गुणवत्ता, दक्षता, उत्कृष्टता तथा सुरक्षा को लेकर और अधिक प्रयास करने होंगे। साथ ही सेवा निर्यात में विविधता लाने और अन्य उभरते क्षेत्रों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। अब हमें साफ्टवेयर निर्यात के लिए अमेरिकी बाजार पर निर्भरता कम करनी होगी और सेवा निर्यात की संभावनाओं वाले अन्य देशों में कदम बढ़ाने होंगे। हमें नए दौर की तकनीकी जरूरतों और उद्योग की अपेक्षाओं के अनुरूप कौशल प्रशिक्षण से नई पीढ़ी को सुसज्जित करना होगा। सेवा निर्यात बढ़ाने के लिए शोध, नवाचार और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के मापदंडों पर आगे बढ़ना होगा। देश के कोने-कोने खासकर ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों को भी सेवा क्षेत्र से जोड़ने के प्रयास करने होंगे। उम्मीद की जानी चाहिए कि ऐसे प्रयासों से देश का सेवा क्षेत्र और सेवा निर्यात रफ्तार पकड़ेगा तथा इससे भारत को वर्ष 2027 तक दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था और वर्ष 2047 तक विकसित देश बनाने के बड़े लक्ष्य को हासिल करने में भी मदद मिलेगी।