ऑस्ट्रेलिया के बॉन्डी इलाके में हुई ताजा गोलीबारी की घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सिर्फ सख्त कानून ही समाज को सुरक्षित बना सकते हैं या अब गन कल्चर पर वैश्विक स्तर पर गंभीर आत्ममंथन की जरूरत है। जिस देश को 1996 के पोर्ट आर्थर नरसंहार के बाद मजबूत हथियार कानूनों का उदाहरण माना जाता रहा, वहीं अब कानूनी रूप से रखे गए हथियारों के जरिये निर्दोष लोगों की जान चली जाना मानवता के लिए चेतावनी है।

रविवार को हुई गोलीबारी की घटना के वीडियो में साफ दिखता है कि कैसे बॉन्डी के हमलावर भीड़ पर तेजी से गोलियां दाग रहे थे। भले ही ऑस्ट्रेलिया में सेमी-ऑटोमैटिक राइफलों पर प्रतिबंध है, लेकिन “स्ट्रेट-पुल बोल्ट-एक्शन” जैसी तकनीक वाले हथियार लगभग उसी रफ्तार से फायरिंग करने में सक्षम हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इन हथियारों को दोबारा लोड करना बेहद आसान है और थोड़े से अभ्यास से कोई भी व्यक्ति इसमें दक्ष हो सकता है।

इस घटना में शामिल आरोपी कानूनी रूप से हथियारों के मालिक थे और एक गन क्लब के सदस्य भी। यह तथ्य अपने आप में डराने वाला है, क्योंकि यह दिखाता है कि समस्या केवल अवैध हथियारों की नहीं, बल्कि उस सोच की है जिसमें हथियार रखना सामान्य और स्वीकार्य बना दिया गया है।

क्रिमिनोलॉजी के जानकारों का मानना है कि पोर्ट आर्थर के बाद किए गए गन बायबैक और प्रतिबंधों से ऑस्ट्रेलिया में दशकों तक सामूहिक गोलीबारी नहीं हुई, लेकिन समय के साथ कानूनों में ढील और नई तकनीकों ने उन सुधारों को कमजोर कर दिया है। आज हालात यह हैं कि लाइसेंस धारकों की संख्या घटने के बावजूद देश में हथियारों की कुल संख्या रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है।

यह सिर्फ ऑस्ट्रेलिया की कहानी नहीं है। दुनिया के कई देशों में गन कल्चर को स्वतंत्रता, शौक या सुरक्षा के नाम पर बढ़ावा दिया गया है, जबकि इसका सबसे बड़ा असर आम नागरिकों, बच्चों और परिवारों पर पड़ता है। गोलीबारी की हर घटना के पीछे सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि उजड़े हुए घर, टूटे हुए सपने और ज़िंदगी भर का दर्द होता है।

विश्व की सबसे बड़ी महाशक्ति अमेरिका में गन कल्चर अब सिर्फ आत्मरक्षात्मक या मनोरंजक गतिविधि नहीं है, बल्कि यह लाखों लोगों की जान लेने और गहरा सामाजिक व मानसिक प्रभाव डालने वाला एक बड़ा मानवाधिकार संकट बन गया है। हर गोलीबारी की संख्या सिर्फ आंकड़ा नहीं, बल्कि टूटे परिवार और बदलते जीवन की कहानी भी है।

2023 में जारी हुए आंकड़े बताते हैं कि अमेरिका में 46,728 लोग गोलीबारी में मारे गए हैं। अमेरिकी CDC के अनुसार, किसी व्यक्ति की जान हर लगभग 11 मिनट में एक बार गोलीबारी से जाती है। इन गोलीबारी की घटनाओं पर नजर डालें तो सबसे ज्यादा मौतें आत्महत्या से हुई हैं, जिसकी संख्या 27,300 है, जो कुल घातक मामलों का 60 प्रतिशत से ज्यादा है।

मानवीय दृष्टि से देखें तो सवाल यह नहीं है कि कौन-सा हथियार कितना तेज है, बल्कि यह है कि समाज किस दिशा में जा रहा है। क्या हम ऐसी दुनिया चाहते हैं जहां तकनीक इंसानी जान लेने को और आसान बना दे? या फिर ऐसी दुनिया जहां सुरक्षा, संवाद और करुणा को प्राथमिकता मिले?

ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री और कई राज्य सरकारें अब हथियारों की संख्या सीमित करने और कानूनों की दोबारा समीक्षा की बात कर रही हैं। यह एक सही शुरुआत हो सकती है, लेकिन असली बदलाव तब आएगा जब पूरी दुनिया गन कल्चर को “सामान्य” मानने के बजाय एक वैश्विक खतरे के रूप में देखेगी।

यह समय सिर्फ क़ानून बदलने का नहीं, बल्कि सोच बदलने का भी है। क्योंकि हर गोली जो चलती है, वह सिर्फ एक शरीर को नहीं, बल्कि पूरी मानवता को घायल करती है।