इन दिनों पूरे देश की निगाहें 22 सितंबर से लागू होने वाले वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी ) के लाभों को मुट्ठी में लेने के लिए लगी हुई हैं। जीएसटी संबंधी बड़े सुधार के एलान के बाद इस विषय पर सामने आ रही रपटों में कहा जा रहा है कि करों में कटौती आम आदमी के लिए राहत और अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने की दिशा में परिवर्तनकारी पहल साबित हो सकती है। मगर जीएसटी में सुधार को लेकर जागरूकता के साथ-साथ इसका ठीक से क्रियान्वयन भी जरूरी है।

जागरूकता और अधिकारियों एवं उद्यमियों-कारोबारियों के बीच सार्थक वार्ता से जहां जीएसटी संबंधी भ्रम दूर होंगे, वहीं उद्योग-व्यवसाय, विशेषकर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग जीएसटी सुधारों से सहजता से लाभान्वित होंगे। खास बात यह भी है कि जीएसटी सुधारों ने देश को एक तरह की आर्थिक सुरक्षा दी है, जिसकी उपयोगिता आगामी समय में किसी भी भू-राजनीतिक चुनौती और आर्थिक अनिश्चितता के कारण होने वाले प्रभावों की भरपाई के रूप में दिखाई दे सकती है।

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद की 56वीं बैठक में महंगाई से आम आदमी को राहत देने, अमेरिकी शुल्क से जूझ रहे उद्योग-कारोबार को गति देने और देश की आर्थिक रफ्तार बढ़ाने के मद्देनजर जीएसटी ढांचे तथा दरों में आमूल-चूल सुधार करने के लिए प्रभावी निर्णय लिए गए हैं। ये व्यापक सुधार नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाएंगे और खासतौर से छोटे व्यापारियों के लिए काम करना आसान हो जाएगा। यदि हम देश में जीएसटी व्यवस्था से पहले लागू विभिन्न अप्रत्यक्ष करों को देखें, तो पाते हैं कि देश में मूल्य वर्धित कर (वैट), सेवाकर, उत्पाद शुल्क जैसे कई अप्रत्यक्ष करों के कारण उद्योग-कारोबार कठिनाई का सामना करते रहे हैं।

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एक जुलाई 2017 से देशभर में लागू जीएसटी पर विगत आठ वर्षों में व्यापक मूल्यांकन और विश्लेषण के बाद अब इसमें सरलता लाने और नए जीएसटी ढांचे के दिशानिर्देश को मंजूरी दी गई है। जीएसटी में सुधार के तीन बड़े आधार हैं। पहला, कर संरचना सुधार। इसमें कर ढांचे को और बेहतर किया गया है। दूसरा, दरों को तर्कसंगत बनाया गया, ताकि जरूरी वस्तुएं सस्ती हों तथा तीसरा, नए पंजीकरण एवं रिफंड को आसान बनाया गया है।

यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि जीएसटी के पंजीकरण से लेकर पालन की प्रक्रिया भी आसान की गई है। एक नवंबर से छोटे और कम जोखिम वाले व्यवसायों के लिए आसान जीएसटी पंजीकरण योजना शुरू करने का जो निर्णय लिया गया है, वह अत्यधिक लाभप्रद होगा। खास तौर से वैकल्पिक सरलीकृत जीएसटी पंजीकरण योजना के अंतर्गत कम जोखिम वाले छोटे उद्योग से जुड़े कारोबारी आवेदन जमा करने की तिथि से तीन कार्य दिवसों के भीतर स्वचालित आधार पर पंजीकृत हो जाएंगे।

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निस्संदेह जीएसटी की नई दरें कितनी लाभप्रद होंगी, इसका अंदाज इस बात से लगा सकते हैं कि इस नए बदलाव से वर्तमान में बारह फीसद जीएसटी वाली लगभग 99 फीसद वस्तुएं अब पांच फीसद कर श्रेणी के दायरे में आ जाएंगी। जबकि अट्ठाईस फीसद कर वाली लगभग नब्बे फीसद वस्तुएं अठारह फीसद कर दायरे में आ जाएंगी। इसके अलावा रोटी-परांठे और कैंसर समेत तैंतीस जीवनरक्षक दवाओं पर अब जीएसटी नहीं लगेगा।

सभी वाहन-पुर्जों पर जीएसटी अठारह फीसद होगा। सीमेंट पर कर अब 28 फीसद से घट कर 18 फीसद हो गया है। इससे अब घर बनाने में आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा। निश्चित रूप से नए बदलाव से आम आदमी से लेकर किसानों और छोटे उद्योगों के इस्तेमाल में आने वाली सैकड़ों वस्तुएं सस्ती हो जाएंगी।

अगर नई जीएसटी दरों से खपत बढ़ती है, तो अतिरिक्त 52,000 करोड़ रुपए का फायदा भी होगा, जिसमें से 26,000 करोड़ केंद्र को और इतना ही राज्यों को मिलेगा। इसका मतलब है कि नए वित्तीय वर्ष में भी राज्यों की आमदनी बेहतर रहेगी। जीएसटी की व्यवस्था ऐसी है कि राज्यों की आमदनी थोड़े समय के लिए कम होने पर भी उन्हें नुकसान नहीं होता। चाहे जीएसटी की दरों में बदलाव किया जाए या मुआवजा शुल्क बंद हो जाए, राज्यों के पैसे सुरक्षित रहते हैं। इस व्यवस्था में यह सुनिश्चित किया जाता है कि कर सुधार के दौरान भी राज्यों के खजाने और हित पूरी तरह सुरक्षित रहें।

वर्ष 2018 और 2019 में जब जीएसटी दरों में बदलाव किया गया था, तो शुरू में राजस्व में थोड़ी गिरावट (तीन से चार फीसद) आई, लेकिन कुछ ही महीनों में राजस्व फिर से बढ़ने लगा। इसका मतलब है कि दरों में बदलाव केवल थोड़े समय के लिए असर डालता है, जबकि दीर्घकालिक स्तर पर यह फायदेमंद होता है। इससे व्यवसायों पर कर जमा करने का बोझ कम होता है।

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यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि जीएसटी में सुधारों से घरेलू खपत में जोरदार तेजी आने से आर्थिक विकास की रफ्तार बढ़ेगी। मध्यम वर्ग उत्पादों की खरीदी पर पैसा खर्च करेगा। सरकार को भी उम्मीद है कि सालाना राजस्व नुकसान के बावजूद बाजार की गतिविधियों में तेजी आएगी और अर्थव्यवस्था को जिस तरह रफ्तार मिलेगी, उससे तात्कालिक नुकसान की सरलता से भरपाई हो जाएगी। निश्चित रूप से आम आदमी और मध्यमवर्गीय लोगों को कीमतों में राहत मिलेगी। वहीं, लोगों की क्रय शक्ति बढ़गी।

बाजार में नकदी प्रवाह भी बढ़ेगा। जो छोटे उद्योग अमेरिकी शल्क के कारण निर्यात घटने को लेकर चिंतित हैं, उन्हें घरेलू उपभोक्ताओं की बढ़ती मांग से बड़ा सहारा मिलेगा। इतना ही नहीं जीएसटी घटने से औद्योगिक उत्पादन बढ़ेगा और और विनिर्माण क्षेत्र से लेकर सेवा क्षेत्र तक मांग का बढ़ता हुआ दायरा साफ दिखाई देगा। अनुमान है कि देश में जीएसटी घटने से करीब दो लाख करोड रुपए की खपत बढ़ेगी और निर्यात को भी नई गति मिलेगी।

मांग और उत्पादन बढ़ने से जीडीपी में भी वृद्धि होगी। रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। इस परिप्रेक्ष्य में हाल ही में नौ सितंबर को वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजंसी मूडीज ने अपनी एक रपट में कहा है कि भारत में जीएसटी दरों में कमी किए जाने से निजी उपभोग को बढ़ावा मिलेगा और आर्थिक विकास की स्थिति मजबूत होगी। साथ ही इससे महंगाई में भी कमी आने की उम्मीद है।

इसी तरह वैश्विक साख निर्धारण करने वाली एजंसी ‘एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग’ ने कहा है कि भारत में पिछले पांच-छह वर्षों के दौरान जीएसटी में सुधार बहुत सफल साबित हुए हैं। अब इसकी दो दरें बनने से इसकी कार्यान्वयन और लेखांकन प्रक्रिया आसान हो जाएगी। इससे विकास दर की ऊंचाई बढ़ेगी। पिछले दिनों वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजंसी फिच ने चालू वित्त वर्ष 2025-26 में भारत की विकास दर के अनुमान को 6.5 फीसद से बढ़ा कर 6.9 फीसद कर दिया है।

उम्मीद करें कि सरकार नई जीएसटी व्यवस्था के प्रति जागरूकता और कार्यान्वयन पर शुरुआत से ही ध्यान देगी। इन बदलावों को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए अधिकारियों और व्यापार जगत के बीच बेहतर तालमेल बनाए रखेगी। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि जीएसटी और कर कानूनों की सरलता से सभी लोग लाभान्वित हों तथा भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगे।