देश में खाद्य पदार्थों में मिलावट की समस्या एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट में बदल चुकी है। बाजार में नकली और मिलावटी खाद्य वस्तुओं का कारोबार लगातार बढ़ता जा रहा है। इससे सीधे तौर पर आम जनता का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। आंध्र प्रदेश के तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद लड्डू में मिलावट का मामला इस चिंता को और बढ़ा देता है। बताया जा रहा है कि वर्ष 2019 से 2024 तक बनाए गए 20 करोड़ लड्डुओं में नकली घी का इस्तेमाल हुआ। इसी तरह देश के एक मशहूर ब्रांड के घी का नमूना भी गुणवत्ता की कसौटी पर खरा नहीं उतरा और इसे सेहत के लिए घातक पाया गया। यह मामला वर्ष 2020 का है, लेकिन कार्रवाई अब हुई है। ऐसे मामलों में कार्रवाई में टालमटोल या देरी से भी मिलावटखोरों के हौसले बुलंद हो रहे हैं। ऐसा लगता है कि मिलावट का गोरखधंधा करने वालों को कानून का कोई खौफ नहीं है।

मिलावट की समस्या केवल घी तक सीमित नहीं है। देश के बाजार नकली और मिलावटी खाद्य पदार्थों से भरे पड़े हैं। दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुओं में भी मिलावट होने के कारण लोग कई तरह की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। भुने हुए चने जैसे सामान्य खाद्य पदार्थों में भी खतरनाक रंगों और रसायनों का प्रयोग किया जा रहा है। औरामाइन नामक रंग खाद्य पदार्थों में मिलाया जाता है। यह कपड़ा और चमड़ा उद्योगों में इस्तेमाल होने वाला रसायन है। इससे कैंसर और तंत्रिका तंत्र पर बुरा प्रभाव पड़ने का खतरा होता है। इस तरह के खतरनाक रंगों का उपयोग खाद्य पदार्थों में इस्तेमाल करने पर प्रतिबंध है। इसके बावजूद निरीक्षण में कई उत्पादों में इस तरह की मिलावट की पुष्टि हुई है। इससे साफ है कि खाद्य सुरक्षा के नियमों की अनुपालना नहीं हो रही है, जिससे उपभोक्ता लगातार धोखा खा रहे हैं और अस्पतालों के चक्कर लगा रहे हैं।

खाद्य पदार्थों में मिलावट को रोकने के लिए देश भर में समय-समय पर अभियान चलाए जाते हैं, लेकिन मिलावट नहीं रुक पा रही। नकली मावा, नकली दूध और मिलावटी मसालों का व्यापार धड़ल्ले से चल रहा है। मिठाई, बेसन, चटनी और यहां तक कि बच्चों के लिए बनाए गए उत्पादों में भी मिलावट की शिकायतें सामने आई हैं। मिलावट करने वाले खाद्य सामग्री में नकली और खतरनाक सामग्री का उपयोग कर आम उपभोक्ताओं को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

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उदाहरण के तौर पर दूध में डिटर्जेंट, कास्टिक सोडा, यूरिया और फार्मेलिन जैसे रसायनों का उपयोग किया जाता है, जो शरीर के लिए घातक हैं। इस तरह का दूध पीने से पेट संबंधी विकार, हृदय रोग और कैंसर जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। असंगठित क्षेत्र में मिलावट की समस्या ज्यादा है। ऐसे में उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए खाद्य गुणवत्ता की गारंटी आवश्यक है।

मुश्किल यह है कि अब भी मिलावट करने वालों को पकड़ना और उन पर प्रभावी कार्रवाई करना चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। जब भी खाद्य सुरक्षा से जुड़ी एजंसियां जांच करती हैं, बड़ी संख्या में नमूने विफल पाए जाते हैं, इसके बावजूद सख्त कदम नहीं उठाए जाते या कार्रवाई धीमी रहती है। इसका कारण भ्रष्टाचार, संसाधनों की कमी और निगरानी तंत्र की कमजोरी है।

खाद्य पदार्थों में मिलावट रोकने के लिए कड़े कानून बनाना जरूरी है। साथ ही कानूनों का ठीक तरह से क्रियान्वयन भी आवश्यक है। खाद्य सुरक्षा से जुड़े विभागों को अपनी जांच और निरीक्षण प्रणाली को और मजबूत करना होगा, जिससे दोषियों को शीघ्रता से उचित दंड मिल सके। साथ ही उपभोक्ताओं को भी जागरूक करना होगा। उन्हें मिलावटी उत्पादों की पहचान करने की समझ विकसित करनी होगी, ताकि वे इस तरह की घातक सामग्री से बच सकें। उन्हें ऐसे पदार्थों की बिक्री की शिकायत करने के लिए भी प्रेरित करना होगा, जिससे मिलावट करने वाले हतोत्साहित हो सकें।

खाद्य उद्योग में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए तकनीकी उपायों को अपनाना भी आवश्यक है। जैसे डिजिटल ट्रैकिंग प्रणाली, जिससे उत्पाद की गुणवत्ता और स्रोत का पता चल सके। इसके अलावा किसानों और उत्पादकों को भी गुणवत्ता बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। खाद्य पदार्थों की सुरक्षा और गुणवत्ता सुनिश्चित न होने से हमारा स्वास्थ्य तो खतरे में है ही, इससे देश के खाद्य उद्योग की विश्वसनीयता और अर्थव्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव पड़ रहा है। इसलिए मिलावट करने वालों पर प्रभावी कार्रवाई, उपभोक्ताओं का सशक्तीकरण और सरकारी तंत्र की सक्रियता तीनों मोर्चों पर ध्यान देना होगा।

सरकार, उद्योग जगत और नागरिकों को मिलकर काम करना होगा, ताकि खाद्य पदार्थ न केवल स्वादिष्ट हों, बल्कि सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्धक भी हों। तभी हम एक स्वस्थ और सुरक्षित भारत का निर्माण कर पाएंगे। वहीं, मिलावटी घी से जुड़े मामलों ने भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण की सक्रियता पर भी सवाल खड़े किए हैं। जांच और कार्रवाई में देरी के साथ अनियमितता की शिकायतें भी सामने आई हैं, जिस कारण उपभोक्ताओं का विश्वास डगमगाने लगा है। कई बार राज्यों के खाद्य सुरक्षा विभागों के साथ तालमेल न होने से भी खाद्य सुरक्षा का कार्य बाधित होता है।

राज्यों में परीक्षण प्रयोगशालाओं की कमी समस्या बढ़ाती है। कई मामलों में जांच अधूरी होती है या दस्तावेजों में गड़बड़ी के आधार पर लाइसेंस जारी कर दिया जाता है। खाद्य पदार्थों में मिलावट और नकली उत्पादों पर प्रभावी नियंत्रण के लिए प्राधिकरण को अपनी कार्यप्रणाली को निष्पक्ष और मजबूत बनाना होगा। केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच बेहतर समन्वय सुनिश्चित करना होगा, ताकि देश भर में सुरक्षित खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराए जा सकें और जनता का स्वास्थ्य सुरक्षित रह सके।

जांच और कार्रवाई की प्रक्रिया निश्चित रूप से तेज एवं निष्पक्ष होनी चाहिए, ताकि दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जा सके। राज्य और केंद्र के खाद्य सुरक्षा विभागों तथा प्रयोगशालाओं को पर्याप्त वित्तीय, तकनीकी एवं मानव संसाधन मुहैया कराने की जरूरत है। गुणवत्ता नियंत्रण के लिए नियमित और आकस्मिक निरीक्षण भी आवश्यक है। इस तरह की कार्रवाई से मिलावट करने वालों में भय पैदा होता है। उन्हें लगता है कि उनकी गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है और इसके परिणामस्वरूप वे ऐसे अनैतिक और गैर कानूनी कार्यों से दूरी बना लेते हैं।

मिलावट करने वालों को भी इस बात का भान होना चाहिए कि ऐसा करके वे अपने पैरों पर भी कुल्हाड़ी मार रहे हैं। मिलावट के जरिए कोई दुकानदार भले ही ज्यादा मुनाफा कमा ले, लेकिन इस दुश्चक्र से वह और उसका परिवार भी नहीं बच सकता।

असल में कोई भी व्यक्ति सभी तरह के खाद्य पदार्थ स्वयं पैदा नहीं कर सकता। उसे ज्यादातर वस्तुओं के लिए बाजार पर निर्भर रहना होता है। जब दूसरी चीजें भी मिलावटी आएंगी, तो वह खुद और उसका परिवार भी बीमारियों की चपेट में आएगा। इस तरह मिलावट के जरिए कमाया पैसा भी अस्पतालों के चक्कर काटने में ही खर्च होगा। बेहतर तो यह होगा कि हर व्यापारी मिलावट से दूर रहे और नैतिकता को अपने धंधे का मुख्य आधार बनाए। व्यापार तो लाभ कमाने के लिए ही किया जाता है, लेकिन पैसे के लिए अपराध का रास्ता अपनाने का अंजाम भी खतरनाक ही होता है।