हमारे देश में एक से एक सख्त, मगर अमल में नरम कानून हैं। नरम की जगह लचीला शब्द का भी प्रयोग किया जा सकता है। दरअसल, कानून अपनी जेब में रखने वाला कोई चालाक व्यक्ति कानून का ढीला पेच निकालकर, खुद को बचाने के लिए उसमें नया पेंच फंसा देता है। इस सामयिक उपाय से वह बच जाता है और बढ़े हुए आत्मविश्वास की छांव तले अपना तमाम काम करता रहता है। कानून के निर्माता, पालक और रक्षक भी मानते हैं कि कानून सबके लिए एक जैसा नहीं है। जिन पर लागू किया जाना चाहिए, कई बार कानून उन्हीं पर लागू नहीं हो पाता। इसीलिए बार-बार यह सवाल सिर उठाता है कि कानून को ज्यादा कठोर बनाया जाए।

आम लोगों की जान से खिलवाड़ करने वाले, असामाजिक और गलत काम करने वाले अनेक चतुर लोग हैं, जिनके लिए कड़ा कानून बनाए जाने की बहुत जरूरत है। एक बात तो बार-बार उभर कर आती रहती है कि पहले से बने कानून कम गंभीर हैं। अगर ऐसा नहीं है तब सवाल यह उठता है कि क्या इसे लागू करने के मामले में कोताही की जाती है। क्या नए कानून बनाकर फायदा होगा, अगर उन्हें वर्तमान कानूनों की तरह संजीदगी से लागू नहीं किया जा सका?

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निराशाजनक माहौल के बीच ऐसी बातें कभी आशा पैदा करती हैं, जब सफल राजनीति के पैरोकार और कोई अधिकृत व्यक्ति के ऐसे विचार सुनने को मिलते कि भ्रष्टाचारी कितनी भी पहुंच वाला क्यों न हो, उसे किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा। इस तरह की बातों से स्पष्ट होता है कि भ्रष्टाचारी लोगों की खासी पहुंच होती है और इससे संबद्ध लोग पूरी तरह सजगता से काम करते हैं। कई लोग बेखौफ होकर सक्रिय रहते हैं।

अपने प्रयोजन के मुताबिक जो नुकसान पहुंचाना चाहते हैं, वह पहुंचाते भी हैं। कानून का पालन करवाने वाले ईमानदार पुलिस अफसरों का तबादला करवाना कुछ लोगों के लिए आसान होता है। ऐसे लोगों का शायद ही कभी कुछ बिगड़ता है। वे व्यवस्था, समाज और कानून की कमियों का फायदा इत्मीनान से उठाते हैं।

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वर्तमान कानून भी सख्त हैं। बल्कि अपने अमल में कानून तो होते ही सख्त हैं। मगर लोगों को लगता है कानून रबड़ का बना हुआ है। यह किताब में बंद है। क्या हमें लोहे या कांटों जैसे सख्त महसूस होने वाले कानून की जरूरत है, ताकि हम उससे पीड़ित होते रहें? अभी तक यही काम मुश्किल साबित हुआ है। कुछ संजीदा लोग इसे मानवीय जिम्मेदारी, नैतिक कर्तव्य मानकर, व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास कर जागरूकता फैलाते रहते हैं।

ऐसे व्यक्ति सफल भी होते हैं। यह एक सार्थक कोशिश है। ऐसे में जब कानून लागू करने वाले कुछ लोगों से बात होती है तो वे भी यही कहते हैं कि कानून का पालन करवाया जा रहा है… नियमित निरीक्षण किया जाता है… लोगों को जागरूक किया जाता है। मुकदमे दायर किए जाते हैं और जुर्माना भी वसूल किया जाता है, लेकिन फर्क नहीं पड़ता।

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आए दिन सार्वजनिक मंच से हाथ उठाकर कहा जाता है कि बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, किसी भी सूरत में ढिलाई नहीं बरती जाएगी। आशय यह कि कड़े कानून की बात बार-बार की जाती है। कोई नया मामला सामने आता है तो नया कानून बनाने की बात की जाती है, लेकिन बहुत जरूरी, असली बात यानी कानून को उचित, वांछित तरीके से लागू करने की जिम्मेदारी नहीं ली जाती। बात सिर्फ बात रह जाती है। यह कहा जाता है कि हमारा देश बहुत बड़ा है, तरह-तरह की इतनी ज्यादा जनता को संभालना मुश्किल है। लेकिन हर जिले में जिलाधीश, पुलिस अधीक्षक हैं। हर मंडल में मजिस्ट्रेट हैं। वे क्या नहीं कर सकते? लेकिन सवाल है कि वास्तव में क्या-क्या कर सकते हैं।

मिसाल के तौर पर, पर्यावरण विश्वस्तरीय मुद्दा है राष्ट्रस्तरीय भी, लेकिन स्थानीय नहीं। हमारा समाज इष्ट और व्यक्तिपूजक है। अनगिनत आयोजन, भाषण और पुरस्कार हैं। करोड़ों के विज्ञापन दिए जाते हैं। यहां वृक्ष लगाना जरूरी नहीं है, सड़क चौड़ा करना जरूरी है। किसी वृक्ष को जरूरतवश हटाना हो तो कानूनन स्वीकृति लेनी पड़ती है, जो मुश्किल से मिलती है। कानून बहुत सख्त है, लेकिन वृक्षों की जड़ों को खोखला करने की हरकतों को रोकने के लिए कोई कानून नहीं है। जड़ों के आसपास की मिट्टी धीरे धीरे हटा दी जाती है और कुछ समय बाद वृक्ष स्वयं सूख जाता है। जरा-सी आंधी, बारिश में टूटकर गिर जाता है। जिम्मेदार लोगों की बारी आती है, तो वे कहते हैं कानूनन कार्रवाई करेंगे, किसी को नहीं छोड़ेंगे।

एक तरफ पर्यावरण से संबद्ध कानूनों को अनदेखा किया जा रहा होता है, दूसरी तरफ करोड़ों खर्च कर हरी दीवारें बनाने के लिए योजनाएं बनाई जा रही होती हैं। दोनों तरह से करोड़ों का फायदा हो रहा होता है। इस तरह अनेक मामलों में, कानून में बचाव की सुरंग ढूंढ़ कर, समझदारी से, मिलजुलकर काम को अंजाम दिया जाता है। कानून के रक्षक कुछ नहीं कर पाते।

एक बार नहीं, फिर से और ज्यदा सख्त कानून बनाने का संकल्प लिया जा रहा होता है। मान लिया जाए कि सख्त, कठोर, कड़े कानून बनाए जाएंगे। मगर क्या उनके उचित क्रियान्वयन के लिए, ईमानदार और कर्मठ लोग प्रयोगशालाओं में बनाए जाएंगे? क्या नया, कड़ा कानून बनाने वाले लोग, देश और समाज से प्यार करने वाले होंगे?