मानव सभ्यता के विकास की कहानी में आग के आविष्कार के बाद, बिजली के बल्ब का आविष्कार सबसे क्रांतिकारी माना गया। इसने मनुष्य को अंधेरे पर विजय दिलाई और रात को दिन में बदल कर हमारी कार्यक्षमता को कई गुना बढ़ा दिया। हमने शहरों को जगमग कर दिया, घरों को रोशन किया और अपनी रातों को भी दिन की तरह सक्रिय बना लिया। हम इसे विकास और आधुनिकता का नाम देते हैं, लेकिन आज यही विजय हमारी सबसे बड़ी जैविक पराजय का कारण बनती जा रही है। जिस कृत्रिम रोशनी को हमने अपनी सुविधा के लिए ईजाद किया था, वह अब एक ऐसे अदृश्य खतरे में तब्दील हो चुकी है, जो हमारे शरीर के सबसे महत्त्वपूर्ण अंगों खासकर हमारे दिल को अपना शिकार बना रही है।
हालिया वैज्ञानिक अध्ययन हमें जिस गंभीर खतरे से आगाह कर रहे हैं, वह न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि हमारी पूरी आधुनिक जीवनशैली पर बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है। रात का यह अनावश्यक प्रकाश हमारे दिल की सेहत के लिए एक धीमा जहर बन गया है। हममें से अधिकांश लोग इस खतरे से पूरी तरह अनजान हैं। हम रोशनी को सुरक्षा और सकारात्मकता से जोड़ते हैं, जबकि अंधेरे को डर से, लेकिन जीव विज्ञान की दृष्टि से हकीकत इसके ठीक विपरीत है। हाल ही में हुए व्यापक और गहन शोधों ने इस बात की पुष्टि की है कि रात के समय कृत्रिम प्रकाश के संपर्क में रहना केवल हमारी नींद खराब नहीं करता, बल्कि यह हृदय संबंधी जानलेवा बीमारियों का सीधा और प्रमुख कारण बन रहा है। ये अध्ययन उन करोड़ों लोगों के लिए एक चेतावनी है, जो यह मानते हैं कि रात में थोड़ी सी रोशनी, टीवी या फोन का इस्तेमाल नुकसानदेह नहीं है।
स्थिति बेहद भयावह नजर आती है
आंकड़ों की बात करें, तो स्थिति बेहद भयावह नजर आती है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि जो लोग रात में अधिक तेज या लगातार कृत्रिम रोशनी के संपर्क में रहते हैं, उनमें दिल काम न करने का खतरा 56 फीसद तक बढ़ जाता है। चिकित्सा विज्ञान में इसे खतरनाक माना गया है। इसी तरह, दिल के दौरे का खतरा 47 फीसद तक और स्ट्रोक या अन्य जानलेवा स्थितियों का जोखिम तीस फीसद से अधिक पाया गया है। ये केवल कागजी संख्या नहीं हैं, बल्कि यह उन लाखों जिंदगियों का संकेत हैं, जो अपनी अज्ञानता के कारण समय से पहले काल के गाल में समा सकती हैं। इस शोध का सबसे अधिक चिंताजनक पहलू सामने आता है कि यह जोखिम उन लोगों में भी समान रूप से देखा गया, जो अपनी सेहत और शारीरिक गतिविधियों को लेकर बेहद सतर्क थे।
हम अक्सर सोचते हैं कि अगर अच्छा और संतुलित भोजन कर रहे हैं, नियमित रूप से व्यायाम कर रहे हैं, धूम्रपान नहीं करते और शराब से दूर रहते हैं, तो हमारा दिल पूरी तरह सुरक्षित है। मगर यह नया अध्ययन हमारी इस गलतफहमी को पूरी तरह ध्वस्त कर देता है। वैज्ञानिकों ने पाया कि कृत्रिम रोशनी का दुष्प्रभाव उन लोगों पर भी स्पष्ट रूप से देखा गया, जिनकी जीवनशैली आदर्श थी। इसका सीधा और स्पष्ट अर्थ यह है कि रात का प्रकाश भी एक बड़ा जोखिम है। आप दिन भर कितना भी दौड़ लें या कितना भी पौष्टिक आहार ले लें, यदि आप रात के समय अंधेरे में नहीं सोते हैं, तो आपका दिल खतरे में है। यह तथ्य स्वास्थ्य जगत में एक नए प्रतिमान को स्थापित करता है, जहां अंधेरा भी अब विटामिन और व्यायाम की तरह ही अच्छे स्वास्थ्य का एक अनिवार्य स्तंभ बन गया है।
मानव शरीर की जैविक संरचना को समझना होगा
इस खतरे को समझने के लिए हमें मानव शरीर के विकासवादी इतिहास और उसकी जैविक संरचना को समझना होगा। लाखों वर्षों से मानव शरीर पृथ्वी के घूमने और सूर्य के उगने-ढलने के प्राकृतिक चक्र के साथ तालमेल बना कर विकसित हुआ है। हमारे पूर्वज दिन के उजाले में शिकार के अलावा अन्य काम करते थे और रात के अंधेरे में विश्राम करते थे। लाखों वर्षों की इस प्रक्रिया ने हमारे डीएनए में एक ‘जैविक घड़ी’ को स्थापित कर दिया है। यह घड़ी प्रकाश और अंधकार के संकेतों पर चलती है। जैसे ही सूरज ढलता है और कुदरती अंधेरा छाता है, हमारी आंखों के रेटिना के माध्यम से दिमाग को संदेश मिलता है कि अब काम बंद करने और आराम करने का समय है। इस संदेश के मिलते ही हमारा मस्तिष्क पीनियल ग्रंथि के जरिए ‘मेलाटोनिन’ नामक एक बहुत ही खास हार्मोन बनाना शुरू कर देता है। मेलाटोनिन को आम भाषा में अक्सर केवल ‘नींद का हार्मोन’ समझा जाता है, लेकिन वास्तव में यह उससे कहीं अधिक अहम होता है।
जब रात में मेलाटोनिन का स्राव होता है, तो यह हमारे शरीर के तापमान को थोड़ा कम करता है, हमारे रक्तचाप को घटाता है और दिल की धड़कन को धीमा एवं स्थिर करता है। यह वह समय होता है, जब हमारा दिल, जो दिन भर बिना रुके हजारों लीटर खून पंप करता है और हमारा मानसिक एवं शारीरिक तनाव झेलता है, वह थोड़ा सुस्ताता है और अपनी मरम्मत करता है। दिन भर की भाग-दौड़, चिंता और प्रदूषण से हमारी रक्त वाहिकाओं तथा हृदय की मांसपेशियों में जो सूक्ष्म टूट-फूट होती है, उसे ठीक करने का काम इसी अंधेरे के दौरान मेलाटोनिन की देखरेख में संभव हो पाता है। यह एक ‘प्राकृतिक मरम्मत प्रणाली’ है, जो हमारे शरीर को अगले दिन के लिए तरोताजा करती है।
शहरीकरण ने इस समस्या को और विकराल बना दिया
शहरीकरण ने इस समस्या को और विकराल बना दिया है। हम ऐसे शहरों में रहते हैं, जो कभी नहीं सोते और जगमगाते रहते हैं। इसे प्रकाश प्रदूषण कहा जाता है। पहले प्रदूषण का मतलब केवल हवा या पानी का गंदा होना था, लेकिन अब प्रकाश ने भी प्रदूषण का रूप ले लिया है, जो हमारे स्वास्थ्य को प्रतिदिन नष्ट कर रहा है। वैज्ञानिक अब इस बात पर जोर दे रहे हैं कि रात का प्रकाश मधुमेह और मोटापे जैसी चयापचय संबंधी समस्याओं को भी जन्म देता है, जो आगे चल कर हृदय रोगों का कारण बनते हैं। मगर इस गंभीर खतरे को टालना पूरी तरह से हमारे अपने हाथों में है। सबसे पहले हम अपने शयनकक्ष में अंधेरे को तवज्जो दें। सुनिश्चित करें कि कमरे में किसी भी स्रोत से कोई भी रोशनी न आ पाए। सोने से कम से कम एक घंटा पहले मोबाइल फोन, लैपटाप, टैबलेट और टीवी को बंद कर दें। इन उपकरणों से निकलने वाली नीली रोशनी मेलाटोनिन हार्मोन के उत्पादन को रोकने में सबसे आगे होती है।
असल में रात का अंधेरा केवल प्राकृतिक घटना नहीं है, बल्कि हमारे शरीर और दिल के लिए एक अनिवार्य स्वास्थ्य आवश्यकता है। हमने अपनी सुविधा के लिए इस अंधेरे पर जो रोशनी थोप दी है, वह हमारे जीवन को छोटा कर सकती है। हमें इस बात को गंभीरता से समझना होगा कि जैसे अच्छा भोजन और व्यायाम जरूरी है, वैसे ही गहरी और अंधेरी नींद भी हृदय के स्वास्थ्य की कुंजी है। अपने दिल को स्वस्थ रखने के लिए हमें रातों को फिर से प्राकृतिक रूप में अपनाना होगा। यह छोटा सा बदलाव हमारे दिल को एक लंबा और स्वस्थ जीवन जीने का मौका दे सकता है। याद रखना चाहिए कि जब बाहर की बत्तियां बुझती हैं, तभी हमारे भीतर जीवन की लौ अपनी पूरी क्षमता से जल पाती है।
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