दिल्ली की व्यापारिक संस्थाओं ने राज्यसभा में पारित जीएसटी पर मिलीजुली प्रतिक्रिया जाहिर की है। कई व्यापारी संस्थाओं का कहना है कि बिल के कई प्रावधान व्यापार और उद्योग जगत के लिए खतरनाक हैं। व्यापारी संस्थाओं के प्रतिनिधियों का कहना है कि सरकार को इसे लागू करने से पहले व्यापारी वर्ग से बातचीत करनी चाहिए। इस मामले में काराबोरी संस्थानों की उपेक्षा की गई है।
भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व सांसद श्याम बिहारी मिश्र ने जीएसटी बिल के चंद संभावित प्रावधानों पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि पहले इसमें जीएसटी का उल्लंघन करने वाले व्यापारियों को पांच साल तक की सजा क ा प्रावधान था। इस बिल के पास होने के बाद इसका जब कानून बनाया जाएगा, तो सरकार को इस प्रावधान को हटाना चाहिए।

व्यापार मंडल के एक अन्य सदस्य विजय प्रकाश जैन ने कहा कि हम सरकार से हमेशा एक ही मांग करते रहे हैं कि इसे पहले बिंदु से ही लगाया जाए, यानी अगर कोई उत्पाद घरेलू स्तर पर निर्मित होता है, तो जीएसटी को लगाने की जिम्मेदारी उत्पाद इकाइयों पर हो और यदि कोई वस्तु का आयात हो रहा है, तो जीएसटी स्रोत पर ही लगाई जाए। इससे जीएसटी लगने के बाद उत्पाद का मूल्य देश भर में एक समान हो जाएगा। सरकार के लिए जहां पर कर संग्रह आसान होगा, वहीं व्यापारियों, दुकानदारों, और खुदरा विक्रेताओं को वस्तुओं का दाम पहले से ही तय मिलेगा। जिससे उपभोक्ताओं को वस्तुओं को एक ही मूल्य रखने की जीएसटी संरचना भी सार्थक हो सकेगी।

हेमंत गुप्ता ने कहा कि दुनिया में सबसे पहले कनाडा में जीएसटी लागू किया गया था। उसके बाद जिस भी देश ने उसे लागू किया उस देश में महंगाई आसमान छूने लगी। सरकार को ध्यान रखना होगा कि महंगाई नहीं बढ़े, नहीं तो उपभोक्ता उसका सारा दोष व्यापारियों पर ही डालेगा। कनफेडरेशन आॅफ आॅल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के महामंत्री व्यापारी नेता प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि सरकार ने जर्जर, जटिल और बहुकरीय व्यवस्था को सरल बनाने की एक पहल की है। साथ ही कहा कि जीएसटी दस साल पुरानी वैट कर प्रणाली को बदलेगा, जिससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा था। उन्होंने सुझाव दिया कि विभिन्न वस्तुओं पर जीएसटी लगने के बाद क्या प्रभाव होगा इसका अध्ययन सरकार कराए जिससे जीएसटी के बारे में जो जटिल कर प्रणाली का जो भ्रामक वातावरण बना है वो खत्म हो।

देहली हिंदुस्तानी मर्केंटाइल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश बिंदल ने इस बिल के राज्यसभा में पारित होने का स्वागत किया और साथ ही उसके संभावित प्रावधानों पर सवाल भी उठाए हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे मुद्दे हैं जिन पर सरकार या फिर कमेटी को व्यापारी संस्थाओं से बातचीत करनी चाहिए। उसमें प्रमुख रूप से 31 मार्च को व्यापारियों के पास बचने वाले स्टॉक है, जिस पर उन्होंने पहले से वैट आदि कर दे रखे हैं। उस कर का क्या होगा? माल बेचने या खरीदने वाले में से किसी एक की गलती या लापरवाही से दूसरे को इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलेगा।

दिल्ली आॅटोमोटिव मोटर पाटर््स मर्चेंट एसोसिएशन के नेता नरेंद्र मदान ने कहा कि पहले जो प्रारूप तैयार किया गया था उसमें जेल और जुर्माने के कड़े प्रावधान थे। अधिकारियों की कोई जवाबदेही तय नहीं की गई थी। आपूर्ति के स्थान का फैसला और जीएसटी में कंप्यूटरीकरण जैसे प्रावधान हैं। उन्होंने कहा कि अभी भी देश में बड़ी संख्यां में व्यापारियों के पास कंप्यूटर नहीं है। ऐसे में सरकार को उस पर कोई वैकल्पिक व्यवस्था करनी होगी। इन मुद्दों का समाधान कर दिया जाए तो जीएसटी को अपनाने में ज्यादा परेशानी नहीं आएगी। दिल्ली प्रदेश ट्रेड एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय गुप्ता ने कहा कि उन्हें पूरी उम्मीद है कि केंद्र और राज्य सरकारें घरेलू एवं रसोई और गरीब नागरिकों के प्रयोग में आने वाली वस्तुओं को शून्य जीएसटी दर पर रखने का प्रावधान करेगी।

जिससे जीएसटी का असर गरीब व महिलाओं की रसोई में प्रयोग होने वाली वस्तुओं पर न पड़े। संस्था के महामंत्री राजेंद्र गुप्ता ने बताया कि जीएसटी लागू होने के बाद उम्मीद है कि भ्रष्टाचार और इंस्पेक्टर राज खत्म होगा। व्यापारी समाज को कागजी कार्रवाई के लिए विभागों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। गांधी नगर व्यापार संघ के नेता कंवलजीत सिंह बल्ली ने वित्त मंत्री से आग्रह किया है कि जीएसटी काउंसिल में व्यापार एवं उद्योग को प्रतिनिधित्व दिया जाए जिससे फैसले की प्रक्रिया में भागीदारी हो। इसे लागू करने से पहले अधिकारियों के प्रशिक्षण के साथ व्यापारियों को भी आवश्यक प्रशिक्षण दिया जाए क्योंकि एक कर प्रणाली से दूसरी कर प्रणाली में जाने में स्वाभाविक रूप से कुछ परेशानियां आ सकती हैं ।