सितंबर तक गड़बड़ी दुरुस्त करने का दावा
68 विधानसभाओं में से 60 विधानसभा ऐसी हैं जिनकी सीमा बाहर जा रही है। इस बारे में दिल्ली के मुख्य चुनाव आयुक्त राकेश मेहता का दावा है कि उसे अंतिम रिपोर्ट तक ठीक कर लिया जाएगा। करीब चार लाख (4,19,744) मतदाताओं का पता न चल पाने से दिल्ली की निगम सीटों का परिसीमन (डि लिमिटेशन) का काम काफी समय रुका पड़ा रहा। मेहता का कहना है कि उसे भी ठीक करने का काम चल रहा है और सितंबर तक परिसीमन का काम पूरा होने तक सभी कमियों को ठीक कर लिया जाएगा। वैसे दिल्ली की तीनों निगमों के 272 सीटों के परिसीमन का काम इस जुलाई में पूरा किए जाने के दावे किए गए थे।
आबादी का अनुपात और सीटों का गणित
आबादी का अनुपात बराबर न होने से मटियाला, विकासपुरी, बवाना और बुराड़ी में चार-चार के बजाए सात-सात, मुंडका, किराड़ी, बदरपुर और ओखला में छह-छह और नौ सीटों में पांच-पांच निगम सीटें बनेंगी। उसी तरह करीब 29 विधानसभा सीटों के नीचे चार-चार, तीन-तीन निगम सीटें बनेंगी। इस हिसाब से लोकसभा सीटों की संख्या बराबर नहीं रह पाएगी। केवल दक्षिणी दिल्ली लोकसभा के नीचे 40 निगम सीटें होंगी। सबसे कम नई दिल्ली में 25, सबसे ज्यादा दिल्ली उत्तर पश्चिम में 47 सीटें होंगीं।
दिल्ली चुनाव आयोग के नगर निगम वार्डों के परिसीमन के मसविदा रिपोर्ट का ब्योरा सामने आते ही विरोध शुरू हो गया है। कांग्रेस ने तो 25 जुलाई को दिल्ली चुनाव आयोग के दफ्तर पर प्रदर्शन करने की घोषणा की है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने आरोप लगाया है कि उसमें बहुत सारी कमियां हैं, जो उपराज्यपाल के जारी किए गए 18 सितंबर 2015 के अधिसूचना का उल्लंघन है जिसमें कहा गया है कि वार्ड की सीमा विधानसभा की सीमा से बाहर नहीं होनी चाहिए।
कांग्रेस का आरोप है कि इस बार परिसीमन में एक व्यक्ति के आयोग से बिना किसी सलाहकार के ड्राफ्ट रिपोर्ट तैयार की गई है। जबकि 5 जुलाई 2006 को बनी पिछली परिसीमन कमेटी में काफी सदस्य थे जिसमें राज्य चुनाव आयुक्त, चेयरमैन, निगम के अतिरिक्त आयुक्त, दिल्ली सरकार के शहरी विकास विभाग के संयुक्त सचिव, 5 विधायक व 5 निगम पार्षदों को एसोसिएट सदस्य चुना गया था ताकि वे परिसीमन कमेटी के कार्यों में सहायता कर सके। दिल्ली नगर निगम कानून 1957 में वार्डों के परिसीमन को लेकर कहा गया है कि निगम के क्षेत्रों को इस तरह से बांटा जाएगा कि जहां तक संभव हो, निगम के हर वार्ड में एक जैसी जनसंख्या रहे। लेकिन वर्तमान परिसीमन की ड्राफ्ट रिपोर्ट में 40 वार्डों में जनसंख्या औसत से ऊपर है। वहीं 14 वार्डों में जनसंख्या औसत से कम है। इससे पहले 2001 की जनगणना के आधार पर 2006 में निगम सीटों का परिसीमन हुआ था।
तब दिल्ली की हर निगम सीट को समान बनाकर एक विधानसभा के नीचे चार-चार निगम सीटें और एक लोकसभा सीट के नीचे 40-40 निगम सीटें बनाई गई थीं। लेकिन आबादी बसने की असमानता के कारण एक बार फिर सीटों का भूगोल बदलने वाला है। देश भर में लोकसभा और विधानसभा की सीटों के परिसीमन पर 2026 तक रोक लगी है। लेकिन दिल्ली की निगम सीटों का परिसीमन निगम के विधान के हिसाब से हर दस साल में होता है। इसके कारण 2011 की जनगणना के आधार पर 272 सीटों के परिसीमन का काम चल रहा है। 2011 की जनगणना में दिल्ली की आबादी 1,67,52,894 थी। उसमें से नई दिल्ली नगर पालिका परिषद(एनडीएमसी) और दिल्ली छावनी इलाके के मतदाताओं को छोड़ने के बाद 1,64,19,787 मतदाताओं को 272 सीटों में बांटना है। इस हिसाब से 61,591 औसत की निगम सीटें बननी चाहिए।
वर्तमान परिसीमन की ड्राफ्ट रिपोर्ट में कई वार्डों के नाम ऐतिहासिक स्थलों के नाम पर थे, उन्हें भी बदल दिया गया है। जैसे कि हजरत निजामुद्दीन वार्ड का नाम बदल दिया गया है। कई वार्ड के नाम क्षेत्र में आने वाले बूथ के नाम पर ही रख दिए गए हैं। वर्तमान परिसीमन की ड्राफ्ट रिपोर्ट में 10 जगह संसदीय क्षेत्रों की सीमाओं को लांघा गया है। उदाहरण के लिए उत्तर पूर्व के हिस्से को उत्तर पूर्व में मिला दिया गया है, उत्तर पूर्व के हिस्से को चांदनी चौक, पश्चिमी के हिस्से को उत्तर पूर्व दिल्ली, दक्षिणी दिल्ली के हिस्से को पश्चिमी दिल्ली, दक्षिणी दिल्ली के हिस्से को पूर्वी दिल्ली, दक्षिणी दिल्ली के हिस्से को नई दिल्ली आदि में मिला दिया गया है। महरौली विधानसभा जो दक्षिणी दिल्ली में पड़ती है, तथा कटवारिया सराय जो महरौली का हिस्सा था उसे मालवीय नगर विधानसभा में जोड़ दिया गया है।
इसी तहर खिड़की एक्सटेंशन जो ग्रेटर कैलाश विधानसभा का हिस्सा है उसे मालवीय नगर में जोड़ दिया गया। उत्तर दिल्ली नगर निगम में जहांगीरपुरी जो कि बादली विधानसभा का हिस्सा है और जो उत्तर संसदीय क्षेत्र में आता है उसे बुराड़ी विधानसभा उत्तर पूर्व संसदीय क्षेत्र में और आदर्श नगर विधानसभा चांदनी चौक संसदीय क्षेत्र में आते हैं उन्हें बांट दिया गया है। बापरौला, बक्करवाला और रनहौला गांव जो पश्चिमी दिल्ली के विकासपुरी विधानसभा में आते हैं उन्हें मुंडका विधानसभा में जोड़ दिया गया है। मुंडका विधानसभा उत्तर पूर्व संसदीय क्षेत्र में आता है। कांग्रेस का आरोप है कि आप सरकार के दबाव में जानबूझकर परिसीम में कमी छोड़ी जा रही है ताकि विवाद हो और निगम चुनाव टाले जा सकें।
