सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने एक आदेश में कहा कि 5 सितंबर को होने वाली एनडीए की परीक्षा में लड़कियां भी शामिल हो सकती हैं। इससे पहले नेशनल डिफेंस एकेडमी की परीक्षा में शामिल होने की अनुमति लड़कियों को नहीं थी। मामले की सुनवाई के दौरान सेना की तरफ से कहा गया कि एनडीए परीक्षा में महिलाओं को शामिल न करना पॉलिसी डिसिजन है। जिसके जवाब में अदालत ने कहा कि यह पॉलिसी डिसिजन भेदभाव पूर्ण है।
बताते चलें कि 15 अगस्त को पीएम मोदी ने लालक़िले से एलान किया था कि सभी सैनिक स्कूलों में अब लड़कियाँ भी एडमिशन ले पायेंगी। गौरतलब है कि वकील कुश कालरा याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया था कि महिलाओं को ग्रेजुएशन के बाद ही सेना में आने की अनुमति है। उनके लिए न्यूनतम आयु भी 21 साल रखी गयी है। जबकि लड़कों को 12 वीं के बाद ही एनडीए में शामिल होने दिया जाता है। इस तरह से शुरुआत में ही महिलाओं के पुरुषों की तुलना में बेहतर पद पर पहुंचने की संभावना कम हो जाती है। यह समानता के अधिकार का हनन है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को मामले पर अपना रुख साफ करने के लिए कहा था। मामले की सुनवाई जस्टिस संजय किशन कौल और हृषिकेश रॉय की पीठ ने की।
याचिका में सुप्रीम कोर्ट के पिछले साल आए फैसले का भी हवाला दिया गया था जिसमें महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिए कहा गया था। याचिकाकर्ता ने कहा है कि जिस तरह कोर्ट ने सेवारत महिला सैन्य अधिकारियों को पुरुषों से बराबरी का अधिकार दिया वैसा ही उन लड़कियों को भी दिया जाए जो सेना में शामिल होने की इच्छा रखती हैं।
इधर एक अन्य मामले पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा पेगासस विवाद मामले पर जांच आयोग गठित करने के खिलाफ दायर याचिका पर केंद्र, राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है।