जब-जब विश्व में अशांति हुई है, सभी की निगाहें शांतिप्रिय देश भारत पर आकर टिकी है। ऐसा ही नजारा रूस और यूक्रेन युद्ध में देखने को मिल रहा है। रूस ने यूक्रेन की सीमा में घुस कर भारी तबाही मचा रखी है, जिससे पीड़ित होकर यूक्रेन के राष्ट्रपति ने भारत सहित दुनिया से सभी देशों से भावपूर्ण अपील करते हुए कहा है कि हम अपने देश की सुरक्षा अकेले कर रहे हैं और दुनिया के समस्त छोटे-बड़े देश दूर से तमाशा देख रहे हैं। ऐसा नहीं कि यह केवल यूक्रेन के साथ हो रहा है, इससे पहले अफगानिस्तान में तालिबानियों ने बड़ी जन हानि करके सत्ता अपने हाथों में ले ली थी। तब भी दुनिया के बड़े-बड़े देश केवल तमाशा देख रहे थे।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व में शांति बनाए रखने लिए संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की गई थी, लेकिन वर्तमान रूस युक्रेन युद्ध में उसकी तरफ से केवल बयानबाजी हो रही है। अमेरिका सहित पश्चिमी यूरोपीय देशों का समूह नाटो भी केवल बयानबाजी कर रहा है। हालांकि यूक्रेन नाटो का सदस्य नहीं है, लेकिन विश्व स्तर पर बने समस्त संगठनों की नैतिक जिम्मेदारी होती है कि कोई देश जब किसी भी प्रकार की समस्या से पीड़ित हो रहा है, तो उसकी मदद करे। भारत को भी आगे बढ़कर युद्ध रोकने की पैरवी करनी चाहिए। अगर दुनिया ऐसे ही तमाशीन बनी रही तो धीरे-धीरे विश्व के बड़े देश अपनी विस्तारवादी सोच से छोटे-छोटे देशों को निगल जाएंगे।
यूक्रेन रूस युद्ध में जितनी गलती रूस की है उतनी गलती अमेरिका की भी है, क्योंकि अमेरिका के कहने पर ही यूक्रेन ने रूस को आंखें दिखाई। ऐसा नहीं है कि विश्व के सभी देश रूस से बात करें तो वह अनसुना कर देगा।
ललित शंकर, गाजियाबाद
संकट के वक्त
इस संकटकाल में यूक्रेन में फंसे हजारों भारतीय छात्रों को यूक्रेन से बचा कर निकालने का समय आया तो एयर इंडिया का टिकट टाटा ने बत्तीस हजार रुपए से सीधे अस्सी हजार रुपए कर दिया! प्रश्न है कि यह इतना मंहगा टिकट कौन खरीद पाएगा? निजीकरण का सदा गुणगान करने वाली हमारी वित्तमंत्री और प्रधानमंत्री से यह पूछा जाना चाहिए कि उसके एयर इंडिया के बेचने से बत्तीस हजार रुपए का टिकट सीधे अस्सी हजार रुपए का हो जाना भी क्या इस देश की गरीब जनता के अच्छे दिन लाने का ही एक सोपान है?
निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद