जयंतीलाल भंडारी

इस समय देश का दवा उद्योग घरेलू और वैश्विक मांग की पूर्ति में तेजी से आगे बढ़ता दिखाई दे रहा है। दवा उद्योग की वैश्विक शृंखला बाधित होने से भारत की फार्मा कंपनियों को दुनिया के कोने-कोने से विभिन्न दवाइयों के आदेश लगातार मिल रहे हैं। मगर दूसरी ओर देश में दवा उद्योग से संबंधित विभिन्न चुनौतियां इसे दुनिया की ऊंचाइयों तक पहुंचने में बाधक बनी हुई हैं। खासकर बड़ी संख्या में दवा निर्माता इकाइयां कच्चे माल एपीआइ (एक्टिव फार्मास्युटिकल्स इनग्रीडिएंट्स) की कमी का सामना कर रही हैं। दवा उत्पादन के क्षेत्र में शोध और नवाचार केंद्रों की स्थापना एक बड़ी चुनौती है।

प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव्स योजना से उत्पादन बढ़ाने पर देना होगा जोर

दवा उद्योग से संबंधित उत्पादन मुताबिक मुनाफा यानी ‘प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव्स’ (पीएलआइ) योजना से दवा उत्पादन बढ़ाने पर और अधिक ध्यान केंद्रित करने की चुनौती बनी हुई है। जिस तरह पिछले वर्ष 2022 में गांबिया और उज्बेकिस्तान में खांसी की दवा पीने से बच्चों की मौत से भारतीय दवा कंपनियां सवालों के घेरे में आईं, वैसी चुनौतियां अब भी मुंह बाए खड़ी हैं। दवा उद्योग के विशेषज्ञों के मुताबिक इन चुनौतियों के समाधान से इस समय जो भारतीय दवा उद्योग करीब पचास अरब डालर के स्तर पर है, वह 2030 तक एक सौ तीस अरब डालर और 2047 तक करीब साढ़े चार सौ अरब डालर पहुंचने की संभावनाएं रखता है। यह क्षेत्र सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम का अगुआ बन सकता है।

गौरतलब है कि इस समय भारत दवा उत्पादन के मामले में विश्व में तीसरे स्थान पर और दवाई की कीमतों के मामले में चौदहवें क्रम पर है। वित्तवर्ष 2021-22 में भारत ने 24.62 अरब डालर के दवा उत्पादों का निर्यात किया था। वैश्विक मंदी के बीच भी वित्तवर्ष 2022-23 में भारत से दवा का निर्यात सताईस अरब डालर के रिकार्ड स्तर को छू सकता है। चूंकि भारत में दवा उत्पादन की लागत अमेरिका और पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत कम है, इसलिए भारत घरेलू और वैश्विक बाजारों के लिए विभिन्न महत्त्वपूर्ण, उच्च गुणवत्ता और कम लागत वाली दवाओं के निर्माण में एक प्रभावी भूमिका निभा रहा है।

दुनिया की करीब सत्तर प्रतिशत जेनेरिक दवाओं का उत्पादन भारत में होता है। जेनेरिक दवाओं की अफ्रीका की कुल मांग का पचास प्रतिशत, अमेरिका की मांग का चालीस प्रतिशत तथा ब्रिटेन की कुल दवा मांग का पच्चीस प्रतिशत हिस्सा भारत से ही जाता है। दुनिया के साठ फीसद टीकों का उत्पादन भारत में होता है। इसके अलावा, विश्व स्वास्थ्य संगठन की अनिवार्य टीकाकरण योजनाओं के लिए सत्तर प्रतिशत टीकों की आपूर्ति भारतीय दवा निर्माता कंपनियों द्वारा की जाती है।

सस्ती और गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा के चलते कई विकसित देशों के मरीज भारत का रुख कर रहे हैं। भारत में चिकित्सा सेवा की लागत पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत कम है और भारत दक्षिण पूर्व एशिया में सबसे सस्ता है। यही कारण है कि भारत को चिकित्सा पर्यटन के लिए दुनिया में लाभप्रद जगह माना जा रहा है। वैश्विक चिकित्सा पर्यटन के मामले में दुनिया के पहले दस देशों में भारत का नाम रेखांकित हो रहा है।
भारत सरकार ने दवा उत्पादन में आत्मनिर्भरता लाने, अधिक कीमतों वाली दवाइयों के स्थानीय स्तर पर निर्माण को प्रोत्साहित करने और चीन से आने वाले कच्चे माल- एपीआइ- के भारत में ही उत्पादन हेतु कोई ढाई वर्ष पहले शुरू की गई पीएलआइ योजना को बड़ी सफलता मिली है।

इसके चलते वर्ष 2022-23 के अप्रैल-अगस्त के दौरान फार्मा उत्पादों के आयात में पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले चालीस फीसद की कमी आई है। उल्लेखनीय है कि देश में फार्मास्युटिकल विभाग, रसायन और उर्वरक मंत्रालय द्वारा वित्तवर्ष 21-22 से वित्तवर्ष 25-26 की अवधि के लिए पांच सौ करोड़ रुपए के कुल वित्तीय परिव्यय के साथ भारत को फार्मास्युटिकल उद्योग को मजबूत बनाने की एसपीआइ योजना के तहत फार्मा क्षेत्र में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग और ‘फार्मा क्लस्टर’ को बुनियादी सुविधाओं के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। इससे न केवल देश में दवाई की गुणवत्ता में सुधार आएगा, बल्कि दवा उद्योग का निरंतर विकास भी सुनिश्चित होगा।

जब कोरोना महामारी अपने चरम पर थी तब भारत ने देश सहित दुनिया के डेढ़ सौ से अधिक देशों को दवाएं, टीके और जीवन रक्षक चिकित्सा उपकरण उपलब्ध कराए थे। अब भारत दुनिया के विश्वसनीय फार्मेसी और टीका केंद्र के रूप में रेखांकित हो रहा है। भारत दवा क्षेत्र में दुनिया के बढ़ते विश्वास के मद्देनजर इस क्षेत्र में तीस हजार करोड़ से अधिक के निवेश तथा उत्कृष्टता केंद्रों के माध्यम से फार्मा क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए रणनीतिक रूप से आगे बढ़ रहा है। इससे मानव स्वास्थ्य की देखभाल, अर्थव्यवस्था को मजबूती तथा रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।

निश्चित रूप से इस समय दुनिया के मानचित्र पर भारत के नई वैश्विक फार्मेसी और कोरोना टीके का केंद्र बनने की जो संभावनाएं बनी हैं, उन्हें रणनीतिक प्रयासों से मुट्ठियों में लिए जाने का हर संभव प्रयास करना होगा। ऐसे में भारत के दवा उद्योग के लिए गुणवत्ता और नियामक चुनौतियों पर सबसे अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। भारत को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा नवंबर 2022 में दी गई उस चेतावनी पर भी ध्यान देना होगा, जिसमें कहा गया था कि भारत में दोयम दर्जे के दवाई उत्पाद असुरक्षित हैं और खासकर बच्चों की मौत का कारण बन सकते हैं।

पिछले साल भारत में हरियाणा की एक कंपनी में बनाई गई खांसी की दवा पीने से गांबिया में छियासठ बच्चों की मौत के बाद डब्लूएचओ ने उसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी। उसके महानिदेशक ने कहा था कि बच्चों की मौत का संबंध जिस दवा से है, उसके सेवन से बच्चों के गुर्दों को क्षति पहुंची है। डब्लूएचओ इसके लिए दवा कंपनी और भारत सरकार के नियमन अधिकारियों के साथ इन दवाओं की जांच कर रहा है। फार्मा उत्पादों के लिए एक परिभाषित मूल्य निर्धारण व्यवस्था की कमी भी चुनौती बनी हुई है। इससे दवा बाजार के तहत मूल्य निर्धारण में काफी उतार-चढ़ाव होता और दवा निर्माण में निवेश हतोत्साहित होता है।

ऐसे में निश्चित रूप से सरकार द्वारा दवा कारोबार से संबंधित बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाना होगा। भारत में पेटेंट वाली दवाएं बनाने के लिए अनुसंधान और नवाचार को बढ़ाना होगा। निवेश के लिए अंतरराष्ट्रीय साझीदार तलाशने होंगे। वैश्विक आपूर्ति शृंंखला को मजबूत बनाने के लिए रणनीति बनानी होगी। दवा उद्योग से संबंधित प्रक्रियाओं को सरल और कारगर बनाने के लिए, दवा निर्माण क्षेत्र और फार्मा पार्क रणनीति को अधिक सुविधाजनक और गुणवत्तापूर्ण बनाना होगा।

स्वदेशी फार्मास्युटिकल अनुसंधान को प्रोत्साहित करना होगा। इसके लिए नियामकों और दवा अनुमोदन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना और वैश्विक नियामक प्राधिकरणों के साथ समन्वय बनाना होगा। फार्मा विकास के लिए अनुसंधान क्षेत्र में अधिक निवेश आकर्षित करने के लिए तत्परतापूर्वक आगे बढ़ना होगा। ऐसे में दवा उद्योग के लिए सुविचारित नीति, गुणवत्तापूर्ण उत्पादन और प्रभावी विनियमन व्यवस्था की दरकार है।

उम्मीद है कि भारत का दवा कारोबार, जो फिलहाल पचास अरब डालर से अधिक मूल्य का है, 2030 तक करीब 130 अरब डालर और 2047 तक करीब 450 अरब डालर की ऊंचाई पर दिखाई दे सकेगा। दवा उद्योग के समक्ष मौजूद चुनौतियों के समाधान से भारतीय दवा और टीका उद्योग देश ही नहीं, दुनिया भर में और अधिक मानव स्वास्थ्य की देखभाल में अहम भूमिका निभाएगा और भारत दुनिया के प्रमुख दवा उत्पादक देश के रूप में दिखाई देगा।