सीबीआई की तरफ से पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने टीएमसी नेताओं की बेल पर सवाल उठाया तो कोलकाता हाईकोर्ट ने सवाल पूछा कि लोगों की धारणा पर क्या किसी केस को खारिज करना सही है? दरअसल, SG का कहना था कि वो स्पेशल कोर्ट के फैसले पर सवाल नहीं उठा रहे पर जिस तरह के माहौल में जमानत दी गई उससे लोगों का विश्वास सिस्टम से दरक रहा है।

मेहता का कहना था कि इस मामले में सबसे अहम चीज ये है कि सीएम ममता बनर्जी और उनके कानून मंत्री ने किस तरह से दबाव बनाने की कोशिश की। जब टीएमसी नेताओं को अरेस्ट किया गया तो ममता अपने कानून मंत्री के साथ भीड़ को लेकर सीबीआई दफ्तर पर पहुंच गईं। इससे लोगों को लग रहा है कि भीड़ दिखाकर कुछ भी कराया जा सकता है। मेहता ने कहा कि भीड़तंत्र के जरिए अगर ऐसे ही सिस्टम पर दबाव बनता रहा तो ये काम नेताओं के साथ अपराधी भी करने लगेंगे। इससे कानून व्यवस्था पर ही सवालिया निशान लग जाएगा।

मेहता ने कहा कि वो ये टिप्पणी जज के खिलाफ नहीं कर रहे हैं। उनका कहना था कि राज्य सरकार ने जिस तरह से सीबीआई दफ्तर का घेराव किया वो चौंकाने वाला था। लगता है कि उससे प्रेशर बना। मेहता का कहना है कि वो चाहते हैं कि हाईकोर्ट देखे कि कानून में विश्वास बहाली के लिए क्या कदम उठाए जाएं।

कोर्ट ने कहा कि आप सारी कहानी मुंहजुबानी ही बता रहे हैं। कोर्ट किसी निचली अदालत के फैसले में कानूनी नुक्तों पर विचार कर सकती है। वो इस बात की तसदीक कैसे कर सकती है कि जज ने दबाव में जमानत याचिका मंजूर की थी। अदालत ने कहा कि ऐसे दबाव में फैसले नहीं बदला करते।

कोर्ट का ये भी कहना था कि वो रिकॉर्ड के हवाले से दावा नहीं कर रहे हैं कि सीबीआई कोर्ट के जज पर प्रेशऱ बनाया गया तो कोर्ट कैसे इस पर विचार कर सकती है। मामले की सुनवाई कल भी जारी रहेगी। बचाव पक्ष इस बात पर जोर दे रहा है कि टीएमसी नेताओं को बेवजह अरेस्ट किया गया है। उन्होंने सुवेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय पर भी सवाल उठाए।