आम लोगों को सस्ती दरों पर घर मुहैया कराने का दावा करने वाला दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) खुद के ही बिछाए जाल में फंस गया है। प्राधिकरण ने जिस चालाकी से साल 2010 के ईडब्लूएस (आर्थिक रूप से कमजोर) फ्लैटों को साल 2014 की डीडीए हाउसिंग स्कीम में एलआइजी बताकर बेचा उसे लोगों ने नकारा ही नहीं बल्कि उसकी गुणवत्ता पर भी सवालिया निशान लग गया। करीब 4 लाख रुपए के ईडब्लूएस फ्लैट्स को 14.50 लाख से 27.85 लाख रुपए में बेचने की चालाकी तब धरी की धरी रह गई। कई जगहों पर तो जमीन को लेकर ही विवाद चल रहा है तो कहीं दिल्ली से दूर किसी बंजर जगह पर फ्लैट बनाया जा रहा है। फ्लैट बनाने से पहले ही पैसे मांगने की जल्दबाजी भी डीडीए के काम नहीं आई। लिहाजा करीब 11000 फ्लैट आज भी आबंटियों के मोहताज बने हुए हैं। डीडीए अब आगे की आवास योजनाओं में इन्हें शामिल करने की बात कह रहा है।

डीडीए ने लंबे समय बाद साल 2014 में 25034 फ्लैटों के लिए हाउसिंग स्कीम निकाली। इसमें एचआइजी, एमआइजी, एलआइजी, वन बेडरूम, एक्सपेन्डेबल हाउसिंग स्कीम टाइप ए, जनता, न्यूली कंस्ट्रक्टेड फ्लैट्स और ईडब्लूएस शामिल थे। एक लाख रुपए पंजीकरण राशि देकर फ्लैट खरीदने का सपना संजोने वाले लाखों लोगों ने इसमें किस्मत आजमाई। इस स्कीम में रोहिणी में एलआइजी के 81, द्वारका नसीरपुर में दो, जसोला मोलरबंद में 24, लोकनायकपुरम पश्चिम विहार में 234, जाफराबाद, दिलशाद गार्डन, कोंडली घरौली और पूर्वी लोनी रोड में 69 और नरेला में 41 फ्लैट थे। इसके अलावा एलआइजी और वन बेडरूम सबसे ज्यादा द्वारका सेक्टर-23 बी में 2360, रोहिणी सेक्टर-34 व 35 में 10,875, नरेला जी-2 व जी-8 में 6,422, सिरसपुर व नरेला में 2,920 और रोहिणी सेक्टर-16 में 50 फ्लैट थे। इन सभी फ्लैट्स की न्यूनतम कीमत 14.50 लाख और अधिकतम 27.85 लाख रुपए रखी गई।

डीडीए ने पंजीकरण के दौरान शर्त रखी थी जिसे फ्लैट आबंटित नहीं होगा उसके एक लाख रुपए तुरंत वापस कर दिए जाएंगे। लेकिन जिन्हें ड्रॉ में फ्लैट मिला उनकी खुशी ज्यादा दिनों तक बरकरार नहीं रह सकी। ड्रॉ निकलने के कुछ ही दिनों बाद जैसे ही आबंटियों से पैसे की मांग की गई तो कई लोगों को लगा कि उन्हें एक बार अपने आशियाने को देख लेना चाहिए, लेकिन मौके पर पहुंचकर उनके होश उड़ गए। जिस फ्लैट के लिए उनसे साढ़े 14 लाख से लेकर 27 लाख तक रुपए लिए जा रहे थे वे काफी छोटे थे, बंजर इलाकों में थे और अभी निर्माण की प्रक्रिया से गुजर रहे थे। तहकीकात करने पर पता चला कि डीडीए ने ईडब्लूएस फ्लैट्स को एलआइजी बताकर बेचने की जुगत लगाई थी जिसमें वह कामयाब नहीं हो सका। करीब 11000 आबंटियों ने डीडीए को साफ कह दिया कि उन्हें इतना छोटा फ्लैट इतनी ज्यादा कीमत में नहीं चाहिए।

दरअसल जिस फ्लैट को डीडीए ने एलआइजी कहकर बेचने की योजना बनाई थी वे सभी साल 2010 में ईडब्लूएस श्रेणी के तहत बने थे। इसके लिए 22 अक्तूबर 2010 को निर्माण कंपनी से टेंडर एग्रीमेंट भी हुआ था। द्वारका, रोहिणी, नरेला और अन्य इलाकों में डीडीए ने बीजी शिरके कंस्ट्रक्शन टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड, मुंधवा, पुणे, महाराष्ट्र से इस आशय का एग्रीमेंट किया। यहां कंपनी को करीब 18,600 ईडब्लूएस फ्लैट बनाने थे और उसे 5.79 करोड़ रुपए अग्रिम राशि भी दी गई थी। 60 करोड़ से ज्यादा की लागत में बनने वाले इन फ्लैट्स के निर्माण के लिए 36 महीने का समय तय हुआ था। बताया जा रहा है कि इससे अलग भी कई कंपनियों से टेंडर एग्रीमेंट हुआ। तब इसकी कीमत 408700 रुपए रखी गई। डीडीए ने 2014 में इन्हीं ईडब्लूएस फ्लैट्स को एलआईजी बताकर 14.50 लाख से लेकर 27 लाख रुपए तक में बेचने की कोशिश की। दिल्ली के एक पूर्व सांसद और सालों तक डीडीए के सदस्य रहे एक राजनीतिक कार्यकर्ता ने इस पर सवाल भी उठाया था। उनका कहना था कि इन्हीं ईडब्लूएस फ्लैट्स का साल 2011 में डीडीए ने तत्कालीन केंद्रीय शहरी विकास मंत्री कमलनाथ और गरीबी उन्मूलन मंत्री कुमारी शैलजा से उद्घाटन कराया था। इन सभी ईडब्लूएस फ्लैट्स को उन लोगों को देना तय हुआ था जिनकी झुग्गियां तोड़कर इसे बनाया गया था।

डीडीए ने पहले 1681 और फिर 2300 लोगों का सर्वे कर इन्हें आबंटित करने का फैसला किया था। जब 11000 लोगों ने डीडीए के ये फ्लैट लेने से मना कर दिया तो उसे झटका लगा। तब डीडीए ने उन लोगों को याद किया जिन्हें 2014 की हाउसिंग स्कीम में फ्लैट का आबंटन नहीं हुआ था। हालांकि लोगों को डीडीए की इस चालाकी का पता चल गया और बचे फ्लैट लेने के लिए कोई आगे नहीं आया।