भारत आबादी के लिहाज से दुनिया का सबसे बड़ा देश है और उम्र के लिहाज से दुनिया का सबसे युवा देश। आधी आबादी युवाओं की है। अगर यह एक जागृत समुदाय के रूप में समर्पित और प्रेरित भीड़ बन जाए, तो देश का कायाकल्प हो जाए। भीड़ इसलिए, क्योंकि देश में लोगों का समूह भीड़ तो बनता है, पर भीड़ तंत्र, सीधी राह चलने से उतरा हुआ नजर आता है। दूसरे की परवाह न करने वाला भीड़ तंत्र। यहां सड़क पर अपराध होते हैं और लोग तमाशा देखते हैं। वीडियो बना लेते हैं, लेकिन मानवीयता की हत्या रोकने का प्रयास नहीं करते।
इस भीड़ तंत्र को रोकने के लिए प्रशासन जो प्रहरी लगाता है, वह अपराध या यातायात नियंत्रण के स्थान पर त्रुटियां तलाश कर चालान करता नजर आता है। वादों से भरा अजब अफरातफरी का माहौल है। वादे ये हैं कि देश का कायाकल्प कर देंगे। एक नया समाज बनाएंगे, नया भारत बनाएंगे और जिन्हें इसे बनाना है, वे तो उच्छृंखल और उद्दंड होते जा रहे हैं। क्योंकि उनको शिकायत है कि उनकी बात कोई नहीं सुनता। उनकी शिकायतों पर समय पर कान नहीं धरा जाता। ऐसी-ऐसी खबरें मिलती हैं कि आदमी चौंक जाता है।
पिछले दिनों एक-दो समाचार ऐसे भी मिले कि एक शिक्षित महिला को नौकरी के लिए चयन होने के बावजूद नियुक्ति नहीं मिली। उसने शिकायत पत्र लिख कर आत्महत्या कर ली। भीड़ ने उसको लेकर कोलाहल किया। उसके जवाब में प्रशासन ने स्पष्टीकरण दे दिया और भीड़ तंत्र अपने रास्ते पर चलता रहा। आम आदमी सिर झुका कर एक दूसरे रास्ते पर, जहां उसकी शिकायतों का निराकरण नहीं है। उत्सव-त्योहार के दिन हैं, उजाले का इंतजार है। इस उजाले में अगर स्थितियों को समझ कर लोगों की परेशानियों का निराकरण करते हुए समाज और सत्ता के कर्णधार नजर आएं, तो भला सड़कों पर धरने क्यों हों? भला मोबाइल टावरों और टंकियों पर अपने जीवन से असंतुष्ट शिकायती नौजवानों से लेकर बड़े-बूढ़े तक प्रदर्शन करते हुए क्यों नजर आएं? इस तरह के अर्थहीन प्रदर्शन जिंदगी का हिस्सा बनते जा रहे हैं।
युवा पीढ़ी को नया प्रेरक संदेश
दूसरी ओर उत्सव-त्योहार के दिनों में जो धरती पुत्र अपनी फसलों की बिक्री के लिए और अपने असंतोष का राजनीतिकरण हो जाने से परेशान थे, उनके जीवन में परिवर्तन अचानक दिखाई दिया है। वह यह बताता है कि अगर सत्ता और राजनीति के कर्ता-धर्ता एक आपसी समझ बना लें, तो क्या नहीं हो सकता? जरूरत इस समझ को पैदा करने की है। एक नई संवेदना को पैदा करने की है। देश की युवा पीढ़ी को नया प्रेरक संदेश देने की है।
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पंजाब की जनता परेशान थी कि त्योहार के दिन हैं। व्यवसाय में खरीद और बिक्री के दिन हैं। इसके लिए मुक्त आवागमन चाहिए और किसान अपना धान बेचने के लिए सड़कों, रेलवे स्टेशनों और टोल पर धरना दे रहे थे। उधर, फगवाड़ा में किसानों का धरना लगा था। कैबिनेट मंत्रियों के साथ बातचीत के बाद किसान मान गए। यह धरना फगवाड़ा के अलावा मोगा, संगरूर, गुरदासपुर और बठिंडा जिले में भी लगा था। एक किसान नेता के साथ कैबिनेट मंत्रियों की लंबी चर्चा हुई। राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री और कृषि मंत्री ने फगवाड़ा पहुंच कर बातचीत को मंजिल तक पहुंचाया।
आढ़तियों के कमीशन का था मुद्दा
किसान नेता अपनी मुश्किलों का समाधान होते देख कर धरना उठाने के लिए मान गए। उन्होंने घोषणा की कि अब राष्ट्रीय राजमार्ग से किसान हट जाएंगे। वे केवल सड़कों के किनारे अपने को सीमित रखेंगे और वहीं धरना देंगे। यातायात को रोका नहीं जाएगा। शिकायतें कई थीं। धान तेजी से न उठाए जाने की भी शिकायत थी। आढ़तियों के कमीशन का मुद्दा था। सरकार ने कह दिया कि ऐसा कमीशन नहीं लगने देंगे और आढ़तियों से पैसा वसूल कर किसानों को नुकसान नहीं होने दिया जाएगा। सरकार ने यह भी कह दिया कि मंडियां तब तक लगी रहेंगी, जब तक कि किसानों के धान का एक-एक दाना नहीं उठा लिया जाता। किसानों ने यह सुनने के बाद राजमार्ग से अपना धरना उठाने की घोषणा कर दी।
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आम लोगों को इससे राहत मिली है। किसानों से लेकर दुकानदारों तक को राहत का आभास होने लगा है। सरकार ने कहा कि जल्द ही जगह का इंतजाम करके धान उठाने के काम में तेजी लाई जाएगी। इसका आश्वासन केंद्र सरकार की ओर से भी दिया गया। मगर किसानों का एक समूह अब भी बारह टोल प्लाजा पर धरना जारी रखे हुए है। बटाला रेलवे स्टेशन से भी वे हटे नहीं, लेकिन इस तरह से जो नया वातावरण पैदा हुआ है, उससे लगता है कि सुनवाई हो सकती है। समाधान हो सकते हैं। बस दोनों ओर से राजनीति को किनारे कर समाधान निकालने का प्रयास होना चाहिए ताकि आम आदमी का जीवन सुगम हो सके।
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उत्सव के दिनों में जब दिवाली से लेकर नववर्ष के आगमन तक आम आदमी बाजार निकल रहा है और अगर वस्तुओं की कमी बनी रहेगी, वाहनों की गतिशीलता में बाधा आएगी, तो काम कैसे चलेगा? हम तो कहते हैं कि बड़ी आबादी वाले इस देश में मांग की कमी नहीं हो सकती। मगर आपूर्ति में व्यवधान हो गया, तो कीमतें बढ़ेंगी ही बढ़ेंगी। इस समस्या का हल तलाशा जाए। शिकायतों का समुचित और तत्काल निराकरण हो। लोगों को धरना-प्रदर्शन करने की नौबत ही न आए। व्यक्तिगत या सामूहिक शिकायतें लेकर लोग टावरों पर चढ़ कर प्रदर्शन न करें, ऐसी आदर्श स्थिति हो।
किसानों और मंत्रियों के बीच बातचीत से समाधान
शीर्ष न्यायपालिका से लेकर प्रशासन तक ने कहा कि विरोध और प्रदर्शन का यह तरीका सही नहीं है। अचानक सड़कें रोक दी जाती हैं। स्टेशनों पर प्रदर्शन होने लगते हैं। रेलगाड़ियों का निर्धारित समय अस्त-व्यस्त हो जाता है। जरूरी कामों के लिए निकले लोग जाम और बाधा के कारण घंटों फंसे रहते हैं। इस स्थिति को देख कर पंजाब में किसानों और मंत्रियों के बीच बातचीत से जो समाधान निकला है, यह एक बदलाव का सूचक है।
यह बदलाव त्वरित हो और नियमित भी। क्यों नहीं, जैसे ही कहीं कोई शिकायत पैदा होती है, चाहे व्यक्तिगत हो या सामूहिक, उसके प्रति तमाशबीनी और उस पर राजनीतिक सनसनी पैदा करने का भाव नहीं होना चाहिए। क्योंकि इससे आम जीवन प्रभावित होता है। जब सुनवाई नहीं होती, तो बच्चे स्कूल जाने से, नौजवान नौकरी की तलाश में प्रतियोगी परीक्षाएं देने से और संबंधी अपने रोगी परिजनों को उचित चिकित्सा दिलाने में नाकाम हो जाते हैं।
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उत्सव के दिन हैं, क्यों न इन अंधेरी समस्याओं के वही रोशन समाधान तलाश किए जाएं, जिसकी शुरुआत अभी हमने पंजाब में देखी है। क्या ये समाधान पूरे देश के जनसाधारण को प्राप्त नहीं हो सकते कि जैसे ही समस्या पैदा हो, उसका समाधान कर दिया जाए और भीड़ तंत्र सड़कों और रेलों को बाधित करता हुआ उद्दंडतापूर्ण व्यवहार करता हुआ नजर न आए।
पंजाब में किसानों और मंत्रियों के बीच बातचीत से जो समाधान हुआ है, वह एक बदलाव का सूचक है। यह बदलाव त्वरित हो और नियमित भी। क्यों नहीं, जैसे ही कहीं कोई शिकायत आती है, चाहे व्यक्तिगत हो या सामूहिक, उसके प्रति तमाशबीनी और उस पर राजनीतिक सनसनी पैदा करने का भाव नहीं होना चाहिए। क्योंकि इससे आम जीवन प्रभावित होता है। जब सुनवाई नहीं होती तो बच्चे स्कूल जाने से, नौजवान नौकरी की तलाश में प्रतियोगी परीक्षाएं देने से और संबंधी अपने रोगी परिजनों को उचित चिकित्सा दिलाने में नाकाम हो जाते हैं।