केरल हाईकोर्ट ने एक मुस्लिम मौलवी को फटकार लगाते हुए कहा है कि वो किसी ऐसे शख्स के सामने सरेंडर नहीं करेगी जिसके पास कानूनी मामलों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। कोर्ट का कहना था कि मौलवी के पास कानूनी मामलों को लेकर कोई प्रशिक्षण नहीं है तो कोर्ट उसकी बात पर क्यों गौर करे। हालांकि कोर्ट का कहना था कि वो अदालत में अपना पक्ष रख सकते हैं।
जस्टिस ए मुहम्मद मुश्ताक और जस्टिस सीएस डायस की बेंच एक मुस्लिम महिला की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। कोर्ट का कहना था कि कानूनी सिस्टम ट्रेंड लीगल माइंड्स से चलता है। दरअसल, मौलवी इस मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ के हिसाब से दलील दे रहे थे।
कोर्ट का कहना था कि मुस्लिमों की खुला प्रथा लंबे समय से चलन में है। इसमें कानूनी प्रावधानों को भी कई दफा नजरंदाज किया जाता रहा है। लेकिन इस तरह के माहौल में कोर्ट को कानूनी पहलू देखने होंगे। कोर्ट का कहना था कि मौलवी सुनवाई के दौरान कानून की सही तरीके से व्याख्या नहीं कर सके। उन्हें ये भी ठीक से पता नहीं कि इस्लामिक शासक की कार्यकारी शक्तियां इस बारे में क्या कहती हैं।
हाईकोर्ट का कहना था कि Fiqh (इस्लामिक लॉ की तलाश करने की कला) के लिए कानूनी रूप से पारंगत शख्स की जरूरत है, जो उसे समझकर सही तरीके से व्याख्या कर सके। अदालत का कहना था कि बात जब मान्यताओं और विश्वास की होती है तो मौलवी की राय कोर्ट के लिए अहम है। लेकिन कोर्ट की राय उनसे अलग हो सकती है। खुला प्रथा में मुस्लिम महिला पति की सहमति के बगैर शादी को खत्म कर सकती है।
हाईकोर्ट ने सीधे लफ्जों में कहा कि अदालत कानूनी प्रावधानों के हिसाब से चलती हैं। ध्यान रहे कि बीते दिन केरल हाईकोर्ट ने ही मुस्लिम पर्सनल लॉ को पाक्सो एक्ट से कमतर बताकर कहा था कि नाबालिग पत्नी से शारीरिक संबंध बनाने के मामले में पाक्सो एक्ट लागू होगा। हालांकि पर्सनल लॉ कहता है कि 15 साल से ऊपर की लड़की से विवाह करना गलत नहीं है। लेकिन कोर्ट ने इसे सिरे से खारिज कर दिया।