Supreme Court To Black Cat Commando: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भारतीय दंड संहिता की धारा 304 बी (दहेज हत्या) के तहत अपनी पत्नी की हत्या के लिए 20 वर्ष पहले दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति को सरेंडर से छूट देने से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने उसकी यह दलील भी खारिज कर दी कि वह ऑपरेशन सिंदूर में शामिल था और पिछले 20 वर्षों से ब्लैक कैट कमांडो के रूप में काम कर रहा था। कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि इससे आपको छूट नहीं मिलती।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस उज्जल भुयान और जस्टिस विनोद चंद्रन की पीठ पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दोषी की अपील खारिज कर दी गई थी और 10 साल के कठोर कारावास की सजा बरकरार रखी गई थी। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में कार्यवाही लंबित रहने तक आत्मसमर्पण से छूट की मांग करते हुए एक आवेदन भी दायर किया था।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने जब छूट देने से इनकार किया तो याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि मैं सिर्फ़ एक बात कह सकता हूं कि मेरा मुवक्किल ऑपरेशन सिंदूर में शामिल रहा। पिछले 20 सालों से वो राष्ट्रीय राइफल्स में ब्लैक कैट कमांडो के तौर पर तैनात है।

हालांकि, इस दलील से पीठ को कोई फर्क नहीं पड़ा और जस्टिस भुयान ने जवाब दिया कि इससे आपको घर में अत्याचार करने से छूट नहीं मिलती। इससे पता चलता है कि आप शारीरिक रूप से कितने स्वस्थ हैं और आप अकेले किस तरह से अपनी पत्नी को मार सकते थे, गला घोंट सकते थे।

जस्टिस भुयान ने इस बात पर प्रकाश डाला कि याचिकाकर्ता को एक गंभीर अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है। यह छूट का मामला नहीं है। यह एक वीभत्स तरीका है, जिस तरह से आपने अपनी पत्नी का गला घोंटा। छूट तब मिलती है जब सज़ा 6 महीने, 3 महीने, 1 साल की हो।

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जस्टिस विनोद चंद्रन ने इस बात पर प्रकाश डाला कि हाई कोर्ट ने सजा के खिलाफ याचिकाकर्ता की अपील को खारिज कर दिया है। हाई कोर्ट ने आपकी अपील को खारिज कर दिया है। आप यहां विशेष अवकाश पर हैं।

वकील ने तर्क दिया कि एकमात्र आरोप मोटरसाइकिल की मांग का था और यह दो गवाहों के बयानों पर आधारित था जो मृतक के करीबी रिश्तेदार थे। उन्होंने कहा कि मैं साबित कर सकता हूं कि वे बहुत ही असंगत हैं।

जस्टिस भुयान ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हम एसएलपी पर नोटिस जारी कर सकते हैं लेकिन हमसे छूट की मांग न करें। सुप्रीम कोर्ट अपने आदेश में कहा कि हम सरेंडर से बचने की इजाजत नहीं दे सकते हैं। एसएलपी पर नोटिस जारी करें, जिसका 6 सप्ताह में जवाब दिया जाए। वहीं, सिंगल मदर्स के बच्चों के ओबीसी सर्टिफिकेट जुड़ी एक याचिका सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। पढ़ें…पूऱी खबर।