केन्द्रीय कैबिनेट ने शुक्रवार को यस बैंक को नया जीवनदान देने वाले नए प्लान को मंजूरी दी है। इस प्लान के तहत देश के टॉप प्राइवेट बैंक जिनमें ICICI बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, एचडीएफसी और एक्सिस बैंक शामिल हैं, मुश्किल में फंसे Yes Bank को बचाने के लिए आगे आए हैं। ये प्राइवेट बैंक देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई के साथ मिलकर यस बैंक में कुल 10,350 करोड़ रुपए निवेश करेंगे।

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, यस बैंक में 49 फीसदी हिस्से का अधिग्रहण करेगा। इसके साथ ही बैंक में जमा-निकासी समेत अन्य लेन-देन पर लगी रोक भी सरकारी नोटिफिकेशन जारी होने के तीन दिन में हटा ली जाएगी। सरकार का गजट नोटिफिकेशन जारी हो गया है। जिसके बाद बुधवार तक यस बैंक के लेने-देन पर लगी पाबंदी हट सकती है। केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान यह जानकारी दी है।

बता दें कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया यस बैंक में करीब 7250 करोड़ रुपए निवेश करेगा। वहीं आईसीआईसीआई बैंक (1000 करोड़), कोटक महिंद्रा बैंक (500 करोड़), एचडीएफसी (1000 करोड़) और एक्सिस बैंक (600 करोड़) ने शुक्रवार को कहा है कि उनके बोर्ड ने यस बैंक में निवेश की मंजूरी दे दी है।

रिजर्व बैंक की गाइडेंस में यस बैंक को बचाने के लिए यह यूनिक प्लान बनाया गया है। इस प्लान के पीछे सरकार का उद्देश्य है कि लोगों का देश के बैंकिंग सेक्टर और वित्तीय सिस्टम में फिर से विश्वास बहाल हो सके। खबर है कि कुछ अन्य प्राइवेट निवेशक भी यस बैंक में इक्विटी के माध्यम से निवेश कर सकते हैं।

केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि नोटिफिकेशन जारी होने के तीन दिन में बैंक के लेन-देन पर लगी रोक हट जाएगी और 7 दिनों के अंदर नए बोर्ड का भी गठन कर दिया जाएगा।

सरकार का यह रिवाईवल प्लान ऐसे वक्त सामने आया है, जब शेयर बाजार में भयंकर गिरावट देखी जा रही है। हालांकि इसकी बड़ी वजह कोरोना वायरस के आतंक को भी माना जा रहा है। एसबीआई से दो निदेशकों को यस बैंक के बोर्ड में जगह मिलेगी।

रिपोर्ट के अनुसार, प्राइवेट निवेशकों के यस बैंक में किए जा रहे 75 फीसदी निवेश को 3 साल के लिए लॉक इन पीरियड में रखा जाएगा। वहीं एसबीआई के 26 फीसदी निवेश को लॉक इन पीरियड के लिए रखा जाएगा।

उल्लेखनीय है कि पहले भी फाइनेंशियल सेक्टर में रेस्क्यू प्लान बनाए गए हैं, जिनमें डूबते बैंक को किसी सरकारी बैंक के साथ मर्ज करने जैसे कदम उठाए गए। हालांकि इसका फायदा नहीं मिला और इसके चलते सरकारी बैंकों पर भी दबाव बढ़ गया। यही वजह है कि इस बार आरबीआई निवेश के प्लान के साथ आया है।