अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वित्त और विदेश जैसे अहम मंत्रालय संभाल चुके यशवंत सिन्हा के निशाने पर एक बार फिर से पीएम नरेंद्र मोदी हैं। इस बार जेवर एयरपोर्ट के प्रोग्राम को लेकर उन्होंने सूबे के साथ केंद्र की सरकार को कटघरे में खड़ा किया है। उन्होंने कहा कि केवल यूपी चुनाव जीतने की खातिर सरकार ने लक्ष्मण रेखा ही लांघ दी है। बकौल, सिन्हा पीएम का केवल एक ही लक्ष्य है और वह कैसे भी चुनाव जीतना।

सिन्हा का कहना है कि अपने कैरियर के शुरू में उन्हें बताया गया था कि सत्तारूढ़ दल और सरकार दो अलग-अलग चीजें हैं। कभी भी दल को सरकार के कामों में दखल नहीं देना चाहिए। दोनों के बीच एक लक्ष्मण रेखा खीची गई है। समय के साथ जो धारणा विकसित हुई उसके मुताबिक, जनता के पैसे का इस्तेमाल पार्टी के एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए नहीं किया जाएगा। लेकिन आज लक्ष्मण रेखा की धज्जियां सरेआम उड़ रही हैं। लोअर लेवल की बात तो छोड़ ही दें, जो सत्ता के शीर्ष पर हैं वो ही मर्यादा को ताक पर रखने से गुरेज नहीं रख रहे हैं। जेवर में लक्ष्मण रेखा की मर्यादा को तार-तार होते देखा गया।

ममता की तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो चुके सिन्हा ने कहा कि प्रोग्राम में योगी का रवैया देखकर ज्यादा हैरत नहीं हुई, क्योंकि उनकी एक ही लाइन है। जिन्ना और अब्बाजान। वो समझते हैं कि इसके सहारे वो सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करके चुनाव जीत सकते हैं। सिन्हा ने सवाल किया कि योगी को उनकी अमर्यादित भाषा के लिए कौन कोर्ट खींचकर ले जाएगा। स्वतः संज्ञान के मामलों में शीर्ष अदालत वैसे भी मुकदमों के बोझ तले दबी हुई हैं। जिन लोगों पर सांप्रदायिकता को रोकने का जिम्मा है वो ही उसे सरेआम फैला रहे हैं। मोदी की मूक सहमति इसमें है।

यशवंत सिन्हा ने मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि सत्तारूढ़ पार्टी का एक ही मकसद है कि जहां भी चुनाव हो, उसे जीतना जरूरी है। उन्होंने कहा कि अटल जी की पार्टी और आज की पार्टी में जमीन और आसमान का अंतर है। अटल सर्वसम्मति पर विश्वास करते थे। लेकिन आज की मोदी सरकार सिर्फ दबाने में विश्वास करती है। उसका लोकतंत्र में यकीन ना के बराबर है। मोदी को शेखी बघारने में बहुत ज्यादा लुत्फ आता है। उनका कहना है कि फिलहाल मीडिया ने सरकार की कमियों को ढक रखा है। अलबत्ता एक दिन ऐसा आएगा जब नाटकबाजी पर विराम लगेगा। तब तक अपनी सीट बेल्ट को कसकर बांध लें।

IAS रह चुके यशवंत सिन्हा 1984 में इस्तीफा देकर राजनीति में आए। सबसे पहले वह जनता पार्टी में शामिल हुए। 1988 में वह राज्यसभा सदस्य चुने गए। 1989 में जनता दल बनने पर उन्हें पार्टी में महासचिव बनाया गया। वह चंद्रशेखर सरकार में वित्त मंत्री भी बनाए गए। उस सरकार के पतन के बाद वह बीजेपी में शामिल हो गए। शुरुआत में उन्हें पार्टी का प्रवक्ता बनाया गया लेकिन फिर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उन्हें वित्त मंत्री की कुर्सी दी गई। आखिर में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया। ये सरकार में उनका आखिरी पद था।