वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण एवं पत्रकार एन राम और अरुण शौरी की याचिका की गलत लिस्टिंग करने पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने रजिस्ट्री विभाग से जवाब मांगा है। याचिका में अवमानना अधिनियम, 1971 को चुनौती दी गई है। कोर्ट ने कहा कि प्रक्रिया ये है कि याचिका को उसी पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाना चाहिए जिस पीठ के समक्ष वह मुद्दा लंबित हो। बता दें कि प्रशांत भूषण की याचिका 10 अगस्त को जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और केएम जोसेफ की पीठ के लिए लिस्टेड की गई थी। हालांकि अब इसे हटा लिया गया है।

इससे पहले जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना के दो मामलों में सुनवाई की थी और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। ये सुनवाई 4 और 5 अगस्त को हुई थीं। इनमें से एक केस इस साल 27 और 29 जून को प्रशांत भूषण के ट्वीट से जुड़ा है। वहीं दूसरा मामला साल 2009 में तहलका मैगजीन के साथ हुए एक इंटरव्यू का है।

22 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को उनके ट्वीट्स के लिए नोटिस जारी कर सुनवाई के लिए 5 अगस्त की तारीख तय की थी। वहीं 24 जुलाई को 2009 के मामले के लिए 4 अगस्त की तारीख तय की थी। सुनवाई की तारीखें तय होने के बाद प्रशांत भूषण ने एक रिट याचिका दाखिल की, जिसमें कोर्ट द्वारा नोटिस जारी करने को चुनौती दी गई थी। यह याचिका ट्वीट कर कोर्ट की अवमानना करने के मामले के साथ जस्टिस मिश्रा की बेंच के सामने लिस्टेड की गई।

इसके बाद एक और रिट याचिका एन.राम, अरुण शौरी और प्रशांत भूषण ने दाखिल की, जिसमें संविधान की धारा 2(सी)(आई) के तहत कोर्ट की अवमानना अधिनियम, 1971 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है और याचिका में इसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 और 14 का उल्लंघन बताया गया है।

यह याचिका जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस जोसेफ की बेंच के सामने 10 अगस्त के लिए लिस्टेड की गई है। अब कोर्ट ने कहा है कि तय प्रक्रिया के तहत एन.राम और अन्य की याचिका भी उसी बेंच के सामने लिस्टेड की जानी चाहिए, जो पहले से मामले पर सुनवाई कर रही है। कोर्ट ने इस पर रजिस्ट्री विभाग से स्पष्टीकरण मांगा है कि क्यों तय प्रक्रिया को टाला गया?