गुजरात, महाराष्ट्र और तेलंगाना के कई शहर इन दिनों बाढ़ से जूझ रहे हैं। यह केवल प्रकृति ही नहीं है जो इन शहरों के प्रति निर्दयी है बल्कि मानवीय उपेक्षाओं के कारण ये शहर डूब रहे हैं। भारत के कई राज्य हमेशा बाढ़ की चपेट में रहे हैं। लेकिन करीब एक दशक से देश में शहरी बाढ़ की घटना तेजी से बढ़ी हैं।
कुछ ही घंटों में अधिक आबादी वाले शहरों में अचानक मूसलाधार बारिश और पानी की निकासी के पर्याप्त साधन न होने के कारण शहरी बाढ़ की स्थिति बन जाती है। इस स्थिति पर कई शोध हुए हैं जिन्होंने अनियोजित शहरीकरण, पानी की निकासी के अपर्याप्त साधन, जल निकासी चैनलों पर अतिक्रमण, निचले इलाकों पर अवैध कब्जा और लुप्त हो रहे जल निकायों कारण बताया है। 2005 में मुंबई में आई बाढ़ को पहली बार शहरी बाढ़ की सूची में रखा गया था।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के दो शिक्षको शम्शाद अहमद और शिराजुद्दीन अहमद के 2016 में प्रकाशित एक शोध में बताया गया है कि ’शहरी बाढ़’ शहर में दैनिक जीवन की एक बड़ी बाधा है। इससे सड़कें अवरुद्ध हो जाती हैं और लोग काम पर व बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं। इससे आर्थिक नुकसान काफी अधिक होता है लेकिन ’शहरी बाढ़’ से हताहतों की संख्या आमतौर पर सीमित रहती है।
शोध में बताया गया है कि कुछ दशकों में एशिया में तेजी से शहरीकरण बढ़ा है। अनुमान है कि भारत में 2025 तक आधी आबादी शहरों में रहने लगेगी। इसकी वजह से अनियोजित हरीकरण हो रहा है। नीति आयोग द्वारा भारत में शहरी नियोजन क्षमता पर एक रिपोर्ट के अनुसार, शहरी नियोजन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है और 7,933 शहरी बस्तियों में से 65 फीसद के पास कोई मास्टर प्लान नहीं है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान की ओर से किए गए एक अन्य शोध के मुताबिक अनियोजित शहरीकरण ने प्राकृतिक जलग्रहण या जल निकासी को काफी बदल दिया है। ड्रेनेज सिस्टम पानी की बढ़ी हुई मात्रा का सामना करने में असमर्थ हैं और ठोस कचरे भरे हुए ड्रेनेज सिस्टम की वजह से बाढ़ जैसे हालात का सामना करना पड़ता है।
दिल्ली, हैदराबाद और मुंबई जैसे शहर एक सदी पुरानी जल निकासी प्रणाली पर निर्भर हैं, जो मुख्य शहर के केवल एक छोटे से हिस्से के लिए पर्याप्त है न की पूरे शहर के लिए। 20 सालों में भारतीय शहरों ने अपने मूल निर्मित क्षेत्र से कई गुना वृद्धि की है। जैसे-जैसे शहर अपनी मूल सीमाओं से आगे बढ़ता गया, पर्याप्त जल निकासी व्यवस्था के अभाव को दूर करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए।
जल निकासी प्रणाली को दुरुस्त करने से हो सकता है बचाव
जामिया के शिक्षकों ने अपने शोध में शहरी बाढ़ का समाधान भी बताया है। वे लिखते हैं कि जिस प्रकार शहरों को बसाया गया है, उसके बाद इन शहरों को शहरी बाढ़ से बचाना बहुत आसान नहीं है। अगर सरकार लोगों का शहरी बाढ़ बचाना चाहती है तो उसे कुछ उपाय करने होंगे। इसका एक तरीका यह है कि बड़े टैंकों का निर्माण किया जाए, जहां बारिश का पानी जमा किया जा सके।
इसके अलावा वर्षा जल संचयन के लिए जगह-जगह पर जमीन में छेद किए जाएं। इससे जमीन की रिसाव क्षमता में वृद्धि होगी। जल को अवशोषित करने या जल जमाव में कमी लाने के लिए शहर की क्षमता में सुधार करने हेतु छिद्रयुक्त निर्माण सामग्री और प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।इसके अलावा हर शहर के लिए एक समग्र जल निकासी प्रणाली बनाई जानी चाहिए जो शहरी बाढ़ से होने वाली कई लोगों की जान, आर्थिक नुकसान और असुविधा को बचाएगी। शहरी बाढ़ की बड़ी घटनाएं 2020 में हैदराबाद, 2001 व 2020 में अहमदाबाद, 2002, 2003, 2009 व 2010 में दिल्ली, 2004 व 2015 में चेन्नई, 2005 में मुंबई, 2006 में सूरत, 2007 में कोलकाता और 2014 में श्रीनगर में बाढ़ आई।