विश्व बैंक ने अपने आकलन में साफ कहा है कि कोरोना ने महज कुछ महीनों में दुनिया की दो दशक की उपलब्धियों पर पानी फेर दिया है। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में करीब 200 करोड़ लोगों पर गरीबी का खतरा मंडरा रहा है।

इस महामारी का सबसे ज्यादा असर कमजोर तबके पर पड़ा है। विश्व बैंक के मुताबिक 1998 के बाद पहली बार गरीबी दर बढ़ सकती है। वहीं, संयुक्तराष्ट्र ने अनुमान लगाया है कि महामारी के कारण इस साल के अंत तक दुनियाभर में 50 करोड़ लोग और गरीब हो सकते हैं। ऐसे में दुनिया की आठ फीसद आबादी गरीब हो सकती है।

इस महामारी का सबसे बुरा प्रभाव विकासशील देशों पर पड़ा है। विश्व बैंक की मानें तो अफ्रीकी देश 25 साल में पहली मंदी से गुजरेंगे। वहीं, दक्षिण एशियाई देश 40 साल में सबसे खराब आर्थिक प्रदर्शन करेंगे। सबसे ज्यादा खतरे में अनियोजित क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारी या कामगार होंगे।

अर्थ की मार सेहत तक कैसे और कितने भयावह रूप में पहुंचती है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया के तकरीबन 200 करोड़ लोगों के पास स्वास्थ्य मदद या बेरोजगारी सहायता जैसी कोई सुविधा नहीं है।

बात करें अपने देश की तो कोरोना महामारी ने देश में बेरोजगारी का संकट किस तरह बढ़ाया है, इसे लेकर कई तरह की खबरें लगातार आती जा रही हैं। ‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी’ (सीएमआइई) ने कुछ माह पहले आई अपनी रिपोर्ट में आगाह किया है कि जुलाई महीने में 50 लाख नौकरियां चली गर्इं।

पिछले साल के औसत के मुकाबले इस साल अब तक एक करोड़ 90 लाख वेतनभोगी लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। साफ है कि कोरोना का संक्रमण लोगों की आर्थिक सेहत को भी बुरी तरह प्रभावित कर रहा है।

दरअसल, कोरोना के बढ़ते मामलों का असर अर्थव्यवस्था में सुधार की रफ्तार पर पड़ रहा है। कई सेक्टर अब भी बुरी तरह से प्रभावित हैं जिनमे यात्रा, पर्यटन और आतिथ्य से जुड़े क्षेत्र शामिल हैं। अब जबकि हालात थोड़े सामान्य हो रहे हैं तो आर्थिक गतिविधियां फिर से पटरी पर आने की संभावना बढ़ गई है।

भारत में शेयर बाजार जिस तरह सार्वकालिक ऊंचाई पर पहुंचा है, वह भी एक अच्छा संकेतक है। आर्थिक विशेषज्ञों की मानें तो अगर सब कुछ उम्मीदों के मुताबिक सुधार की तरफ लौटा तो भी कम से कम 18 महीने लग जाएंगे फिर से सब कुछ सामान्य होने में।

भारत सहित दुनिया के लिए कोरोनाकाल का अनुभव इसलिए भी खासा निराशाजनक रहा क्योंकि कम से कम गरीबी से निपटने के मामले में बीते कुछ वर्ष अच्छे रहे थे। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक भारत में 2006 से 2016 के बीच 21 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले थे।

कोरोना ने इस स्थिति को बदल कर रख दिया है। ऐसे में दुनिया के तमाम देशों के साथ 2030 तक संयुक्त राष्ट्र ने गरीबी और भूख हटाने और सभी के लिए शिक्षा का जो सपना देखा है, वो अब केवल सपना ही रह जाएगा।