Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महिला को बरी कर दिया, जिसे दहेज के लिए अपनी बहू को कथित तौर पर परेशान करने के लिए दोषी ठहराया गया था और साथ ही यह भी कहा कि ऐसे आरोप अक्सर समाज में तेजी से फैलते हैं। जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील पर यह फैसला सुनाया।

लॉ ट्रेंड की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने अपील पर सुनवाई करते हुए पाया कि मृतका के परिवार ने दावा किया था कि उसने दहेज उत्पीड़न की शिकायत की थी। हालांकि, एक पड़ोसी ने गवाही दी कि दहेज की कोई मांग कभी नहीं की गई थी। निचली अदालत और हाईकोर्ट ने इस गवाही को इस आधार पर नजरअंदाज कर दिया था कि दहेज उत्पीड़न घर की चारदीवारी के अंदर होता है और पड़ोसियों को इसकी जानकारी नहीं हो सकती।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “उसके साक्ष्य को निचली अदालत और हाईकोर्ट द्वारा इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि वह दहेज की मांग के संबंध में कोई तथ्य पेश नहीं कर सकती थी, क्योंकि यह चारदीवारी के भीतर होता है, जो एक गलत निष्कर्ष है, खासतौर से ऐसे मामलों में सास-ससुर द्वारा दहेज के लिए बहू को परेशान किए जाने की बात हवा से भी तेजी से फैलती है।”

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क्या था मामला?

अब पूरे मामले की बात करें तो यह मामला साल 2001 का है। मृतक महिला के पिता ने अपनी बेटी के ससुराल में मृत पाए जाने के बाद शिकायत दर्ज कराई थी। आरोप है कि वह उस समय गर्भवती थी और उसने पहले अपने परिवार को बताया था कि उसकी सास दहेज के बारे में व्यंग्यात्मक टिप्पणियां करती रहती थी। शिकायतकर्ता ने यह भी दावा किया कि घटना के समय उसका दामाद शहर में मौजूद नहीं था। मृतका के सास-ससुर और साले को मामले में आरोपी बनाया गया। हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने पुरुष सदस्यों को बरी कर दिया और कहा कि महिला ने अपनी सास के उत्पीड़न के कारण आत्महत्या कर ली थी।

हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा

सास ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी रूप में दहेज की मांग करना आईपीसी की धारा 498-ए के तहत मामला दर्ज करने के लिए काफी है। पीठ ने आगे साफ किया कि इसी तरह किसी विवाहित महिला को या उसके रिश्तेदार को किसी गैरकानूनी मांग को पूरा करने के लिए मजबूर करने के उद्देश्य से परेशान करना भी क्रूरता के तहत आएगा।