मोदी सरकार द्वारा लोकसभा में महिला आरक्षण बिल (नारी शक्ति वंदन अधिनियम) पेश किए जाने के काफी पहले से ही आरएसएस ने अपने संगठन और समाज में महिलाओं की भागीदारी और प्रतिनिधित्व पर काफी जोर दिया है। गौरतलब है कि आरएसएस को पुरुष कार्यकर्ताओं और अधिकारियों की ज़्यादा भागीदारी के रहते आलोचना झेलनी पड़ी है ऐसे में संगठन ने इस नरेटिव को बदलने की कोशिश शुरू कर दी है।
संघ प्रमुख मोहन भागवत की क्या राय है?
आरएसएस ने पिछले साल से इस पहलू पर जोर दिया है कि सिर्फ संगठन ही नहीं बल्कि सामज में महिलाओं का प्रातिनिधित्व बढ़ना चाहिए। अक्टूबर 2022 में आरएसएस के वार्षिक विजयादशमी भाषण के दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि 2017 में उनके द्वारा किए गए एक सर्वे में पाया गया था कि ऐसा कुछ भी नहीं है जो पुरुष कर सकते हैं लेकिन महिलाएं नहीं कर सकती हैं।
मोहन भागवत ने इस दौरान कहा था, “अगर पूरे समाज को संगठित करना है तो उसमें 50% मातृ शक्ति है। इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता..हम या तो उन्हें प्रार्थना कक्ष में बंद कर देते हैं, या उन्हें दोयम दर्जे का बताकर घर में बंद कर देते हैं। इसे दूर करते हुए हमें उन्हें घरेलू और सार्वजनिक क्षेत्र में समान अधिकार और निर्णय लेने में स्वतंत्रता देकर सक्रिय बनाने की जरूरत है।” हरियाणा में अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में संघ की ओर कहा गया था कि वह संघ में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने पर काम कर रहे हैं।
महिला आरक्षण से कैसे जुड़ी है संघ की राय
आरएसएस कई बार सरकार से महिला प्रातिनिधित्व को लेकर बात करता रहा है, ऐसा आरएसएस के नेताओं का कहना है। 18 सितंबर को संसद का विशेष सत्र शुरू होने से दो दिन पहले आरएसएस अपने 36 संगठनों की वार्षिक समन्वय बैठक संपन्न की। इस दौरान आरएसएस के संयुक्त महासचिव मनमोहन वैद्य ने कहा,“आरएसएस से प्रेरित संगठन सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने और उनकी अग्रणी भूमिका सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रयास करेंगे। परिवार में महिलाओं की भूमिका सबसे प्रमुख है। इसलिए महिलाओं को समाज के हर क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए। समाज में महिलाओं की बढ़ती सक्रियता सराहनीय है।”