Kishtwar Cloudburst Eyewitnesses: जम्मू-कश्मीर में किश्तवाड़ जिले के चसोटी गांव में बादल फटने के बाद आई बाढ़ और मलबे में दबने से अब तक 65 लोगों की मौत हो चुकी है। माना जा रहा है कि माता मचैल यात्रा के दौरान आई इस अचानक बाढ़ में कई तीर्थयात्री बह गए और कई घरों को भारी नुकसान हुआ है। इस भयावह मंजर को चश्मदीद ने बयां किया है।
किश्तवाड़ के पड्डार में अपने अस्थायी ढाबे पर बैठे प्रदीप सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उन्होंने ऊपर देखा तो एक धूल भरी आंधी आती दिखाई दी और तुरंत छिपने के लिए भागे। सिंह ने कहा, “यह जगह मंत्रोच्चार करते श्रद्धालुओं से भरी हुई थी। लेकिन कुछ ही मिनटों में, सब कुछ बह गया। जब मैंने पीछे मुड़कर देखा, तो 200-300 वर्ग मीटर के क्षेत्र में सिर्फ कीचड़, पत्थर और उखड़े हुए पेड़ ही दिखाई दिए।”
चश्मदीदों के मुताबिक, चिशोती के पास 300 मीटर के क्षेत्र में सैकड़ों लोग जमा हुए थे। यहां पर अचानक बाढ़ आ गई थी। सिंह ने कहा, “तीर्थयात्रियों का एक जत्था अभी-अभी अपने वाहनों से उतरा था और आगे की यात्रा से पहले आराम कर रहा था। कई लोग नाले के पास लगे लंगर में बैठे थे , जबकि कुछ लोग मैदान में प्रकृति का आनंद ले रहे थे। कुछ लोग नाले के ऊपर बने लकड़ी के पुल पर खड़े थे।”
10 किलोमीटर लंबी सड़क संकरी थी
स्थानीय लोगों के अनुसार, कई लोग जो अपनी गाड़ियां वहीं खड़ी करके आगे की यात्रा पर निकले थे, बादल फटने के समय उन्हें वापस लेने आए थे। गुलाबगढ़ और पद्दार के चिशोती गांव के बीच 10 किलोमीटर लंबी सड़क संकरी थी और रास्ते में नाले भी थे, इसलिए कई तीर्थयात्री अपनी गाड़ियां यहीं छोड़कर स्थानीय परिवहन से चिशोती जाना पसंद करते हैं। यह मंदिर तक पहुंचने का आखिरी रास्ता है।
सीआईएसएफ का एक कैंप भी बह गया
एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि जिनके पास वाहन थे वे भी वहां से नहीं निकल सके। इलाके में मौजूद सीआईएसएफ का एक कैंप भी अचानक आई बाढ़ में बह गया। बता दें कि इस साल की मचैल यात्रा 25 जुलाई से शुरू हुई और 5 सितंबर तक चलेगी। वैष्णो देवी और अमरनाथ की यात्रा के बाद यह जम्मू-कश्मीर की तीसरी सबसे बड़ी तीर्थयात्रा मानी जाती है। उत्तराखंड में फिर दोहराया केदारनाथ जैसा मंजर