ओमप्रकाश शर्मा, वेदप्रकाश शर्मा, वेदप्रकाश कांबोज, गुलशन नंदा, परशुराम शर्मा और सुरेंद्र मोहन पाठक को कभी किसी सरकार, साहित्यिक संस्था, अकादमी और संगठन ने कोई पुरस्कार देना भी जरूरी नहीं समझा। उनके लेखन को उस दौर में फूहड़ बताने वाले अगर आज की फिल्मों की सामग्री को देखते तो अपनी सोच बदलने को मजबूर होते।
ओटीटी प्लेटफार्म पर दिखाई जा रही वेब शृंखला की सामग्री, गाली-गलौज युक्त भाषा और परोसी जा रही अश्लीलता पर सब चुप हैं। सोशल मीडिया कैसे पूरी भाषा, संस्कृति, सभ्यता और सामाजिक सद्भाव को तबाह करने पर तुला है, फिर भी कोई अंकुश नहीं। जबकि ‘पॉकेट बुक्स’
यानी सामाजिक-पारिवारिक और जासूसी उपन्यासों में न कोई अश्लीलता होती थी और न बेहूदगी। इन उपन्यासकारों से भी ज्यादा लोकप्रिय तो उनके किरदार थे। मसलन, विक्रांत एक ऐसा दुलारा-चितेरा चरित्र बन गया था कि उस पर केंद्रित कोई भी किताब हाथोहाथ बिक जाती थी। वेदप्रकाश शर्मा के उपन्यासों में विकास मुख्य किरदार था तो ओमप्रकाश शर्मा ने राजेश, जयंत और जगत जैसे अपने किरदारों को पाठकों में इस कदर लोकप्रिय बना दिया था जैसे बॉलीवुड के सितारे हों।
सुरेंद्र मोहन पाठक के ज्यादातर उपन्यासों में खोजी पत्रकार सुनील पर केंद्रित करते हुए कथानक होता था। इब्ने शफी ने विनोद और हमीद को ही अपना मुख्य किरदार बनाया तो वेदप्रकाश कंबोज ने विजय और रघुनाथ के दम पर अपना पाठक वर्ग खड़ा किया। रघुनाथ पुलिस का इंस्पेक्टर था।
इस कारोबार के सिमट जाने से लाखों लोगों का रोजगार भी छिन गया। लेखक और प्रकाशक इसकी जद में आने वाले अकेले नहीं हैं। कागज और स्याही के व्यापारी हों या प्रिंटिंग प्रेस से जुड़ा कर्मचारी, आवरण तैयार करने वाला कारिंदा हों या जिल्दसाज, सबके सामने रोजगार के नए विकल्प तलाशने का संकट था। और तो और हजारों लोग तो इन किताबों को किराए पर चला कर ही अपनी रोजी-रोटी कमाते थे।
बुक स्टाल चलाने वाले भी कम प्रभावित नहीं हुए। इन किताबों को हल्का-फुल्का और सस्ता साहित्य मानने के पीछे एक मानसिकता यह भी थी कि ये सस्ते कागज पर छपते थे। प्रकाशकों की अपनी मजबूरी थी और कारोबार की जरूरत भी कि वे किताब की लागत बढ़ने नहीं देते थे। सामान्य साहित्य की किताबों की तरह जिल्दसाजी कराते तो दस-पंद्रह रुपए में पाठक तक कैसे पहुंचाते। समय व्यतीत करने वाला कहें या मनोरंजक, रोचक कहें या प्रेरक, यह साहित्य लंबे समय तक अपने पाठकों के लिए तो उत्सुकता का विषय ही बना रहा।