Uddhav And Raj Thackeray: महाराष्ट्र की राजनीति में 20 साल बाद वो तस्वीर एक बार फिर देखने को मिली जब ठाकरे ब्रदर्स एक ही मंच पर साथ दिखाई दे गए। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे का साथ आना महाराष्ट्र की राजनीति के लिए काफी महत्वपूर्ण है।

दो भाई जो सत्ता को लेकर अलग हो गए थे, दो भाई जो पार्टी में अपने कद को लेकर असहज थे, जिन्होंने पिछले दो दशक में बिल्कुल ही अलग राजनीति चुनी, लेकिन अब एक मुद्दे की वजह से साथ हैं।

सिर्फ मराठी के दम पर नहीं होगी राजनीति

कई पॉलिटिकल पंडितों का मानना है कि उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे का साथ आना देवेंद्र फडणवीस के लिए चुनौती बन सकता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि उद्धव और राज ठाकरे के साथ आने से दोनों ही नेता और उनकी पार्टी की किस्मत पूरी तरह बदल जाएगी। सिर्फ मराठी अस्मिता के नाम पर कोई चुनाव नहीं जीता जा सकता, सिर्फ मराठी भाषा के दम पर पूरे महाराष्ट्र पर राज करना काफी मुश्किल है।

आज के मुद्दे हैं काफी अलग

आज का नौजवान नौकरी चाहता है, आज का किसान अपने लिए सस्ती बिजली चाहता है, आज की महिलाएं आत्मनिर्भर बनना चाहती हैं, हर शहर अपना विकास चाहता है, सड़क की बेहतर कनेक्टिविटी चाहता है, उसे अपने इलाके में मेट्रो लाइन चाहिए। यानी कि यह वो महाराष्ट्र नहीं है जो आज से कई दशक पहले सिर्फ और सिर्फ भाषा के नाम पर लड़ लिया करता था। अब महाराष्ट्र में भी बदलाव हुआ है, लोग विकास के नाम पर वोट करते हैं, उन्हें विकास के मुद्दों की परवाह है।

इसी वजह से सवाल उठता है कि आखिर उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे का एजेंडा क्या होगा? अगर ये दोनों नेता साथ आ भी जाते हैं, क्या ये सिर्फ मराठी भाषा के दम पर ही बीजेपी और उसके दूसरे साथी दलों को काउंटर करने की कोशिश करेंगे या फिर उनके पास आगे का कोई सॉलिड रोडमैप भी है?

अभी एक तरफ तो इन दोनों नेताओं को सोचना है कि आखिर वे किस रणनीति पर आगे बढ़ना चाहते हैं। लेकिन अगर भविष्य में ऐसा कोई गठबंधन हो भी जाता है तो उससे सबसे ज्यादा परेशानी महा विकास अखाड़ी को होने वाली है।

महा विकास अघाड़ी की बढ़ेगी टेंशन

असल में बात चाहे कांग्रेस की हो या फिर शरद पवार गुट की, ये दोनों ही पार्टियों मराठी वोटर्स पर खासा निर्भर करती हैं और यहां तो राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे दोनों खुद इन्हीं मराठी वोटरों के लिए एकजुट हुए हैं, ऐसे में अगर वोटों का बिखराव होता है तो उसका नुकसान कांग्रेस और शरद पवार गुट को हो सकता है।

जानकार तो यह भी मानते हैं कि ऐसे किसी भी गठबंधन से सीधा फायदा बीजेपी को पहुंच सकता है क्योंकि जो गैर मराठी वोट होता है, वह एकमुश्त तरीके से पार्टी के पक्ष में जा सकता है, शहरी महाराष्ट्र में उनकी संख्या भी खास निर्णायक मानी जाती है।

राज ठाकरे और मुस्लिम वोट

वैसे एक चुनौती उद्धव ठाकरे के लिए भी खड़ी होने वाली है। यह समझना जरूरी हो जाता है कि राज ठाकरे के बयान कई मौकों पर विवादित रहे हैं। मस्जिदों में लाउडस्पीकर को लेकर भी उन्होंने जिस तरह की चेतावनियां जारी की थीं, वो कोई भूला नहीं है। लेकिन इस समय तो उद्धव ठाकरे कांग्रेस और शरद पवार की पार्टी के साथ खड़े हैं जो अल्पसंख्यक वोटों के लिए राजनीति करना जानती हैं। ऐसे में अगर राज ठाकरे भी साथ आ जाएंगे तो मुस्लिम वोट छिटकने का डर भी सता सकता है।

ऐसे में अगर राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे साथ आते हैं तो उन्हें कई मोर्चों पर अपनी रणनीति फिर से बनानी पड़ेगी। पहले तो अपने खुद के मतभेद दूर करने होंगे, कार्यकर्ताओं को साथ लाना होगा, उसके बाद महा विकास अधिकारी के दूसरे दलों को समझना होगा।