Jagdeep Dhankhar Health Concerns: संसद के मानसून सत्र के पहले दिन जब देशभर का मीडिया मानसून सत्र को कवर कर रहा था तभी अचानक एक ऐसी खबर आई जिससे पूरे देश का राजनीतिक तापमान चढ़ गया। खबर यह थी कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। धनखड़ का कार्यकाल अगस्त 2027 में पूरा होना था और लगभग 2 साल पहले ही उनके अपने पद से अचानक इस्तीफा देने को लेकर बहुत सारी चर्चाएं राजनीतिक गलियारों में हो रही हैं।
मूल रूप से राजस्थान से आने वाले जगदीप धनखड़ को लेकर यह किसी को अंदाजा ही नहीं था कि वह अचानक इस्तीफा दे देंगे। उन्होंने इस्तीफे की वजह स्वास्थ्य कारणों को बताया है और कहा है कि डॉक्टर्स की सलाह पर उन्होंने ऐसा किया है लेकिन हिंदुस्तान की राजनीति को समझने वाले लोगों के लिए इस बात को हजम कर पाना आसान नहीं है।
मानसून सत्र शुरू होते ही जगदीप धनखड़ ने दिया उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा, सामने आई ये वजह
झुंझुनू जिले के रहने वाले हैं धनखड़
राजस्थान के झुंझुनू जिले के किठाना गांव में जन्मे धनखड़ ने राजस्थान की बार काउंसिल से लेकर भारत के उपराष्ट्रपति पद तक लंबा सफर तय किया है। धनखड़ की पहचान कानूनी मामलों के बुद्धिमान के तौर पर ज्यादा रही है।
धनखड़ ने अपने जीवन का बहुत बड़ा वक्त अदालतों में गुजारा है। वह पहली बार 1989 में झुंझुनू लोकसभा सीट से सांसद चुने गए थे और 1990 से 91 तक चंद्रशेखर की सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री रहे। इसके बाद 1993 में अजमेर की किशनगढ़ सीट से विधानसभा के लिए भी चुने गए।
‘1 घंटे में ऐसा क्या हो गया कि उन्हें इस्तीफा देना पड़ा?’
मार्गरेट अल्वा को हराया था
10 जुलाई को दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में धनखड़ ने मजाकिया अंदाज में कहा था, ‘मैं सही समय पर अगस्त 2027 में रिटायर हो जाऊंगा।’ धनखड़ भारत के 14वें उपराष्ट्रपति रहे और उनका कार्यकाल 10 अगस्त 2027 को समाप्त होना था। उन्हें 2022 में उपराष्ट्रपति चुनाव गया था और इससे पहले वह पश्चिम बंगाल के राज्यपाल थे। उपराष्ट्रपति चुनाव में उन्होंने एनडीए के उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की थी। उप राष्ट्रपति के चुनाव में उन्होंने विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को हराया था।
विपक्ष से होता रहा टकराव
राज्यसभा के सभापति के तौर पर धनखड़ का विपक्ष से लगातार टकराव हुआ और जब वह पश्चिम बंगाल के राज्यपाल थे तब भी ममता बनर्जी सरकार से उनकी अदावत चलती रही। टीवी चैनलों से लेकर सियासी गलियारों तक चर्चाएं इस बात को लेकर हो रही हैं कि आखिर धनखड़ ने इतना बड़ा फैसला क्यों लिया है?