Fact Check Unit: लोकसभा इलेक्शन की डेट के ऐलान के बाद सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार को एक बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो के तहत फैक्ट चेक यूनिट बनाने को लेकर केंद्र की अधिसूचना पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि इससे अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार की अवेहलना हो रही है। बता दें कि केंद्र सरकार के इस फैक्ट चेक यूनिट को सरकार के बारे में फर्जी खबरों की पहचान करने और उसे रोकने के लिए बनाया था।
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने बुधवार को सोशल मीडिया सहित दुष्प्रचार अभियानों की निगरानी, पता लगाने और उनका मुकाबला करके फर्जी खबरों की चुनौती से निपटने के लिए पीआईबी एफसीयू को अधिसूचित किया था। मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने बॉम्बे हाईकोर्ट के 11 मार्च के आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें फैक्ट चेकिंग यूनिट बनाने पर रोक लगाने वाली याचिका को खारिज कर दिया गया था।
बॉम्बे हाईकोर्ट के जज ने स्टे लगाने से किया था मना
संशोधन याचिका की सुनवाई में फैसला देते हुए जस्टिस जीएस पटेल ने संशोधन के विरोध में और जस्टिस नीला गोखले ने पक्ष में फैसला दिया था। जब मामला तीसरे जज जस्टिस चंदूरकर के पास गया तो उन्होंने संशोधन पर स्टे लगाने से मना कर दिया। हालांकि, पहले केंद्र सरकार ने कहा था कि मामले की सुनवाई पूरी होने तक वो फैक्ट चेक यूनिट के लिए अधिसूचना जारी नहीं करेगी। लेकिन तीसरे जज के संशोधन पर रोक लगाने से मना करने के बाद कोर्ट ने सरकार को अधिसूचना जारी करने की इजाजत दे दी गई थी।
अप्रैल 2023 में अधिसूचित सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 में संशोधन ने दो चीजें कीं थी। पहली यह थी कि वे ऑनलाइन गेमिंग इको-सिस्टम के लिए एक कानूनी ढांचा लाए। वहीं, अब बात दूसरे करें तो इसमें था कि सरकार ने ऑनलाइन सामग्री के लिए कानूनी ढांचा पेश किया। इसके तहत कोई खबर या पोस्ट जो सरकार के बारे में गलत या भ्रामक जानकारी दे रही है, उसे PIB के सभी सोशल मीडिया अकाउंट पर पोस्ट किया जाएगा। इसके बाद जिसने यह गलत या भ्रामक जानकारी दी थी, उसे यह हटाना पड़ेगा।
बॉम्बे हाईकोर्ट में दी याचिका
IT नियमों में संशोधन के खिलाफ कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन ने सबसे पहले बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस याचिका में कहा गया था कि यह नियम पूरी तरह से असंवैधानिक और मौलिक अधिकारों का उल्लघंन करते हैं। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने यह भी कहा कि फेक न्यूज तय करने की शक्तियां पूरी तरह से सरकार के हाथ में होना प्रेस की फ्रीडम के विरोध में है। हालांकि, संसद द्वारा किसी भी नियम या कानून बनाने की शक्तियों का प्रयोग इस तरह से नहीं किया जा सकता है जो संविधान के भाग तीन के उलट है।
बॉम्बे हाई कोर्ट का फैसला
31 जनवरी को जस्टिस जीएस पटेल और जस्टिस नीला गोखले की खंडपीठ ने मामले में खंडित फैसला सुनाया। वहीं, पटेल ने संशोधित नियमों को खारिज कर दिया। जस्टिस पटेल ने कहा कि राज्य जबरदस्ती भाषण को सही या गलत के रूप में नहीं बांट सकता और प्रकाशन के लिए मजबूर नहीं कर सकता है। यह सेंसरशिप के अलावा और कुछ नहीं है।
बॉम्बे हाईकोर्ट के जजों ने खंडित फैसला सुनाया था। इसलिए तीसरे जज को इसे नए सिरे से सुना जाना था। इन्हीं की राय से बहुमत बनता और 2-1 से फैसला आता। 7 फरवरी को बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश देवेन्द्र कुमार उपाध्याय ने जस्टिस अतुल एस चंदूरकर को मामले में तीसरे जज के रूप में नियुक्त किया। हालांकि, मामले पर सुनवाई में चंदूरकर को यह तय करना था कि क्या नियमों पर रोक लगा दी जानी चाहिए। जब केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया कि नियमों को अभी तक अधिसूचित नहीं किया गया है। इसके बाद जस्टिस चंदूरकर ने संशोधित नियमों पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया।
याचिकर्ताओं ने एससी का दरवाजा खटखटाया
बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले से नाखुश याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। इस पर 21 मार्च को सुनवाई तय की गई थी। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से पहले केंद्र सरकार ने नियमों को अधिसूचित कर दिया था। वहीं, मामले पर सुनवाई करते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के किसी भी नतीजे तक पहुंचने से तक नियमों पर रोक लगा दी। पीठ ने कहा कि अब कोर्ट के सामने मुद्दा यह आता है कि क्या इस स्थिति को बदलने की इजाजत देनी चाहिए। क्योंकि बॉम्बे हाई कोर्ट के एक जज ने अधिसूचना को पूरी तरह से रद्द कर दिया है।
क्या सुप्रीम कोर्ट किसी कानून को असंवैधानिक करार देने से पहले उस पर रोक लगा सकता है? संसद द्वारा बनाया गया कानून संवैधानिकता का रूप लेता है। कोर्ट आम तौर पर कानूनों की सवैंधानिकता पर फैसला लेने से पहले उन पर रोक लगाने से कतराती हैं। इसमें भी दो जरुरी पहलू काम करते हैं। एक विचाराधीन नियम कानून के काम नही है। वे संसद द्वारा केंद्र सरकार को सौंपी गई शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए मंत्रालय द्वारा बनाए जाते हैं।