देश भर के मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में दाखिले के लिए राष्ट्रीय स्तर के सिंगल एंट्रेंस टेस्ट NEET (National Eligibility Entrance Test) के दायरे में जम्मू कश्मीर को भी लाने के केंद्र सरकार के फैसले को लेकर सभी राजनीतिक पार्टियों ने शोर मचाया है। सबसे ज्यादा विरोध करने वालों में नेशनल कॉन्फ्रेंस है। उन्होंने इस कदम को प्रदेश के ‘खास दर्जे और स्वायत्ता’ में ‘घुसपैठ’ करार दिया है। उमर अब्दुल्ला ने सुप्रीम कोर्ट के उस हालिया फैसले की आलोचना भी की, जिसके तहत नीट के जम्मू-कश्मीर में लागू होने को बनाया रखा गया। अब्दुल्ला ने कहा कि यह मामला ‘सुप्रीम कोर्ट के दायरे में नहीं आता’। सिर्फ सत्ताधारी बीजेपी ही ऐसी पार्टी है, जो इस फैसले पर खुलेआम जश्न मना रही है। यहां तक कि राज्य में उसकी सहयोगी पीडीपी भी कम से कम खुले तौर पर इसका समर्थन करते नजर नहीं आ रही। वहीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारूख अब्दुल्ला ने कहा कि नीट को जम्मू-कश्मीर पर लागू होने से रोकने की पीडीपी-बीजेपी सरकार की ‘नाकामी’ यह जाहिर करती है कि पीडीपी पूरी तरह से बीजेपी में शामिल हो गई है। यहां तक कि अलगाववादी भी नीट के जम्मू-कश्मीर पर लागू होने का खुलेआम विरोध कर चुके हैं। आम लोगों की राय भी इसके खिलाफ है।
नीट का इतना विरोध क्यों हो रहा है? इसे तो एमबीबीएस और बीडीएस में दाखिले की प्रक्रिया को बेहतर करने और भ्रष्टाचार को खत्म करने के उपाय के तौर पर देखा जा रहा था। नीट को लेकर राज्य में क्षेत्रवार समर्थन या विरोध भी देखने को मिल रहा है। जिन पार्टियों के समर्थक मुख्य तौर पर कश्मीर घाटी और डोडा, राजौरी व पुंछ जैसे जिलों से हैं, वे नीट का विरोध कर रहे हैं। बीजेपी का सपोर्ट बेस जम्मू में है, जो इसका समर्थन कर रही है। खास बात यह है कि नीट का विरोध या समर्थन मेडिकल एजुकेशन या एडमिशन प्रक्रिया को लेकर नहीं है। देखा जाए तो नीट का विरोध बहुत कुछ राजनीतिक है। बता दें कि जम्मू-कश्मीर में सिर्फ चार मेडिकल कॉलेज हैं। इनमें से तीन सरकार चलाती है। दो डेंटल कॉलेज श्रीनगर और जम्मू में हैं।
बीजेपी का तो यही कहना है कि राष्ट्रीय स्तर का टेस्ट मेडिकल दाखिले की प्रक्रिया में व्याप्त भ्रष्टाचार को खत्म करेगा। हालांकि, पार्टी को लगता है कि नीट जम्मू कश्मीर को केंद्र से जोड़ने की दिशा में एक कदम है। नेशनल कॉन्फ्रेंस इसे जम्मू कश्मीर के स्पेशल स्टेटस में ‘अतिक्रमण’ करार दे रही है। जनभावना की बात करें तो लोग संदेह से घिरकर नीट की प्रक्रिया को देख रहे हैं। वे इसे रिटायर्ड फौजियों और शरणार्थियों को राज्य में अलग से बसाने, गैर स्थानीय उद्योगों के लिए लीज पर जमीन दिए जाने के कदमों के ही एक अन्य पैटर्न के तौर पर देख रहे हैं।
17 मार्च 2011 को जम्मू-कश्मीर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जो हलफनामा दिया, उससे साफ पता चलता है कि नीट का मुद्दा सिर्फ एडमिशन प्रक्रिया से जुड़ा मामला नहीं है। राज्य सरकार ने जो मुख्य दलील दी, वो यह थी कि जम्मू-कश्मीर का नीट के दायरे में आना संविधान का उल्लंघन है और यह राज्य के विशेष दर्जे में दखल है। नीट का विरोध करते हुए जम्मू-कश्मीर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक केस में दिए गए निर्देश का हवाला दिया था। केस का शीर्षक था-डॉ दिनेश कुमार व अन्य बनाम मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज व अन्य (May 1985)। इसमें केंद्र को सिंगल नेशनल लेवल एंट्रेंस टेस्ट कराने का निर्देश देते हुए कोर्ट ने कहा था, ‘इस तरह के एंट्रेंस टेस्ट आयोजित करने के लिए भारत सरकार या इंडियन मेडिकल काउंसिल के रास्ते में कोई संवैधानिक रोड़ा नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि एजुकेशन का मुद्दा समवर्ती सूची में आता है।’
जम्मू-कश्मीर सरकार के हलफनामे के मुताबिक, भारतीय संविधान के सातवें शेड्यूल में वर्णित लिस्ट III (समवर्ती सूची) के एंट्री 25 का कोर्ट द्वारा जिक्र बेहद ‘अहम’ (vital) है। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे साबित होता है कि आखिर क्यों केंद्र जम्मू-कश्मीर सरकार को ‘बाध्य नहीं कर सकता’ कि अन्य राज्यों की तरह ‘वो किसी ऑल इंडिया एंट्रेंस एग्जामिनेशन में शरीक हो, जिसके जरिए राज्य के मेडिकल कॉलेजों में दाखिला होता हो। एजुकेशन (जिसमें टेक्निकल, मेडिकल और यूनिवर्सिटीज की पढाई भी शामिल है) का मुद्दा पूरी तरह (जम्मू-कश्मीर) सरकार के बचे हुए अधिकार क्षेत्र में आता है।’ ऐसा इसलिए क्योंकि ‘भारतीय संविधान के सातवें शेड्यूल में वर्णित लिस्ट III (समवर्ती सूची) का एंट्री 25 जो जम्मू-कश्मीर पर लागू होता है’, वो सिर्फ ‘परिश्रम से जुड़े वोकेशनल और टेक्निकल ट्रेनिंग तक’ सीमित है।
इस अनूठेपन का जवाब भारतीय संविधान के जम्मू-कश्मीर राज्य पर लागू होने के तरीके में निहित है। जम्मू-कश्मीर सरकार ने दलील दी कि स्पेशल स्टेटस की वजह से राज्य और केंद्र के बीच का संवैधानिक रिश्ता जम्मू-कश्मीर के संविधान के सेक्शन-5, भारतीय संविधान के आर्टिकल 370 और इस आर्टिकल के तहत भारत के राष्ट्रपति की ओर से जारी किए गए कई इग्जेक्यूटिव ऑर्डर पर निर्भर करता है।
जम्मू-कश्मीर सरकार ने दलील दी, ‘भारत का संविधान पूरी तरह से जम्मू-कश्मीर राज्य पर लागू नहीं होता। इसकी कुछ सीमाएं हैं। संविधान के आर्टिकल 370 (1) (c) और आर्टिकल 370(1) (d) के रिव्यू से यह साफ है कि संविधान के सिर्फ वे प्रावधान जम्मू और कश्मीर पर लागू हैं, जिसका जिक्र भारत के राष्ट्रपति ने किसी आदेश के जरिए किया है। इस बारे में संविधान के आर्टिकल 370(1) (d) के दो प्रावधानों में वर्णित है।’
राष्ट्रपति ने इस तरह का पहला इग्जेक्यूटिव ऑर्डर Constitution (Application to Jammu & Kashmir) Order 1954 में जारी किया था। वक्त-वक्त पर इसमें संशोधन किए जाते रहे ताकि संवैधानिक प्रावधानों के दायरे में जम्मू-कश्मीर को लाया जा सके। राष्ट्रपति की ओर से जारी इस तरह के इग्जेक्यूटिव ऑर्डर विवादित होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि केंद्र सरकारें कथित तौर पर ‘इनका इस्तेमाल पिछले दरवाजे से जम्मू-कश्मीर के स्पेशल स्टेटस को खत्म करने’ और ‘जम्मू-कश्मीर के संविधान के प्रावधानों पर हावी होने’ के लिए करती रही हैं। इस तरह के 41 आदेश जारी हो चुके हैं। इनमें से हर एक 1954 के आदेश में संशोधन या बदलाव से जुड़ा हुआ है। राष्ट्रपति के इन आदेशों के जरिए केंद्र सरकार संविधान के 395 आर्टिकल में 260 को राज्य पर लागू करवा चुकी है।
इसी वजह से, जम्मू-कश्मीर सरकार ने दलील दी कि ‘जम्मू-कश्मीर पर लागू होने वाले संविधान के प्रावधान देश के दूसरे हिस्सों पर प्रावधान लागू होने के तरीके से अलग हैं। संविधान में सातवें शेड्यूल के List I और List III जिस तरह से दूसरे राज्यों पर लागू होते हैं, ठीक वैसे ही जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होते।’
जम्मू-कश्मीर सरकार ने उस आर्टिकल 368 का भी हवाला दिया जो संसद द्वारा संविधान में बदलाव की शक्तियों और इसकी प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है। इसमें वर्णित है, ‘इस तरह का किसी भी बदलाव का असर जम्मू-कश्मीर राज्य से रिश्तों पर न पड़े, जब तक कि आर्टिकल 370 में वर्णित क्लॉज (1) के तहत राष्ट्रपति की ओर से ऐसा आदेश न दिया गया हो।’
‘एजुकेशन, जिसमें तकनीकी एजुकेशन, मेडिकल एजुकेशन और यूनिवर्सिटी भी सम्मलित हैं’ समवर्ती सूची का हिस्सा नहीं थीं। इसके लिए संसद द्वारा 1976 में संविधान में 42वां संशोधन और भारतीय संविधान के सातवें शेड्यूल में वर्णित लिस्ट III में संशोधन किया गया। हालांकि, इस संवैधानिक बदलाव पर जम्मू-कश्मीर सरकार का कहना है कि यह जम्मू-कश्मीर पर संविधान के आर्टिकल 370(1) में वर्णित राष्ट्रपति के इग्जेक्यूटिव ऑर्डर के जरिए लागू नहीं हुए। राज्य सरकार के मुताबिक, संविधान में बदलाव ऑटोमैटिक तरीके से जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता, इसलिए मेडिकल एजुकेशन अब भी राज्य सरकार का विषय है। जम्मू-कश्मीर के संविधान के सेक्शन 5 के तहत, ‘राज्य सरकार की शासनात्मक और वैधानिक शक्ति सभी मुद्दों पर लागू होती है, सिवाय उनके जिनके लिए संसद के पास राज्य सरकार के लिए कानून बनाने का हक है।’
जम्मू-कश्मीर सरकार की दलील के मुताबिक, ‘इस तरह से देखा जाए तो संसद और राज्य विधायिका के बीच शक्तियों का बंटवारा अनोखा और अतुलनीय है।’ इस तरह से जम्मू और कश्मीर की राज्य विधायिका को उन सभी मुद्दों पर पूरी शक्ति हासिल है, जिनका जिक्र संविधान के सातवें शेड्यूल के लिस्ट List I और List III में नहीं है।
‘जम्मू-कश्मीर के संविधान के आर्टिकल 6’ के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर के कॉलेजों में दाखिले के एंट्रेंस के लिए सिर्फ वे कैंडिडेट योग्य होंगे, जो कि राज्य के स्थायी बाशिंदे होंगे।
जम्मू-कश्मीर सरकार की दलील है, ‘इस तरह की नीतियां जो जम्मू-कश्मीर के निवासियों के हितों को ध्यान में रखकर बनाई गई हैं, उसे भारत के संविधान के आर्टिकल 35 ए के तहत भी संरक्षण हासिल है। इसके अलावा, सरकारी सेवाओं (स्वास्थ्य सेवाएं भी शामिल) में हर नई एंट्री राज्य के स्थायी निवासी की ही हो सकती है।’
इस तरह से देखा जाए तो अगर केंद्र सरकार बिना राष्ट्रपति के इग्जेक्यूटिव ऑर्डर के जम्मू-कश्मीर को नीट के दायरे में लाती है तो यह जम्मू-कश्मीर और केंद्र के बीच बनी वर्तमान संवैधानिक व्यवस्था में पहली बार दखल होगी। ऐसा होने पर जम्मू-कश्मीर का स्पेशल स्टेटस भी प्रभावित होगा। शायद यह भी वजह है कि बीजेपी खुश है और उसकी सहयोगी पीडीपी डैमेज कंट्रोल की पूरी कोशिश कर रही है।

