Assam NRC Voter List Revision: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट में विशेष गहन पुनरीक्षण यानी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन को लेकर सियासत गर्म है। इस बीच चुनाव आयोग की प्लानिंग पूरे देश में इस प्रक्रिया को लागू करने के संकेत दिए हैं। इस बीच असम के अधिकारियों ने चुनाव आयोग से संपर्क किया है और राज्य में जारी NRC प्रक्रिया का संज्ञान लेने को भी कहा है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, असम के अधिकारियों ने कहा है कि असम एकमात्र राज्य है जिसने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) तैयार करने की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर दी है, इसलिए जब भी चुनाव आयोग अपनी समय-सीमा तय करे और वोटर लिस्ट रिवीजन की पात्रता तय करे तो इसे ध्यान में रखा जाना चाहिए।

आत्मदाह की कोशिश करने वाली छात्रा ने भुवनेश्वर AIIMS में तोड़ा दम, HOD पर यौन उत्पीड़न का आरोप

SIR के लिए पात्र दस्तावेजों को लेकर की मांग

असम सरकार के सूत्रों ने बताया कि चुनाव आयोग मतदाता सूची में शामिल होने की पात्रता निर्धारित करने के लिए नागरिकता के पहलू पर भी विचार कर रहा है। यह देखते हुए कि असम पहले ही नागरिकता सत्यापन प्रक्रिया शुरू कर चुका है, एनआरसी, प्रकाशित होने के बाद, SIR के लिए स्वीकार्य दस्तावेजों में से एक के रूप में काम कर सकता है।

बता दें कि सीएम हिमंता बिस्वा सरमा के अधिकारियों ने यह कदम ऐसे वक्त में उठाया है कि जब जब विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि बिहार एसआईआर वास्तव में नागरिकता-सत्यापन प्रक्रिया बन गई है। चुनाव आयोग द्वारा पिछले महीने बिहार से शुरू होकर देशव्यापी मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण की घोषणा के बाद असम सरकार ने NRC का जिक्र किया है, जिसके चलते अनुमान है कि राज्य के एसआईआर में प्रभावी रूप से देरी हो सकती है।

नफरती पोस्ट पर शिकंजा कसने की सोच रहा सुप्रीम कोर्ट? फ्री स्पीच की कीमत समझने की दी नसीहत

असम में अधर में लटका है NRC का मिशन

असम में चुनाव आयोग के काम में देरी इसलिए हो सकती है क्योंकि राज्य में दशकों से चली आ रही जनसांख्यिकीय चिंताओं को दूर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जो एनआरसी की प्रक्रिया शुरू की थी, वो फिलहाल अनिश्चितता में अटकी हुई है। 2019 में एनआरसी के मसौदे के पब्लिश होने के बाद सामने आया था कि उसमें 19 लाख लोगों की डिटेल नहीं थी। इसीलिए इसे अभी तक अधिसूचित नहीं किया गया है। इसके चलते बीजेपी शासित सरकारनों ने इसे स्वीकार नहीं किया था।

हिमंता सरकार ने NRC के मसौदे पर क्या कहा था?

असम में एनआरसी का उद्देश्य भारतीय नागरिकों की पहचान करना और उन्हें उस राज्य में अवैध प्रवासियों से अलग करना था, जिसने वर्षों से अनिर्दिष्ट प्रवासन को लेकर विरोध प्रदर्शन और राजनीतिक मंथन देखा है। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा इसके आलोचकों में से हैं। असम सरकार का कहना है कि इसमें शामिल और बहिष्कृत लोगों की संख्या गलत है, और इसमें स्वदेशी लोगों को शामिल नहीं किया गया है, जबकि बड़ी संख्या में विदेशियों को शामिल किया गया है। साथ ही, 24 मार्च, 1974 – एनआरसी की अंतिम तिथि, के बाद अवैध रूप से राज्य में प्रवेश करने वाले लोगों की संख्या 19 लाख से कहीं अधिक है।

‘EC को बताना चाहिए इतनी जल्दी क्यों’, विपक्ष ने देशभर में वोटर लिस्ट रिवीजन पर उठाए सवाल

2019 एनआरसी को अंतिम रूप दिए जाने से पहले ही केंद्र और राज्य सरकार द्वारा पुनर्सत्यापन का प्रश्न उठाया गया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे अस्वीकार कर दिया था। 23 जुलाई, 2019 को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा था कि एनआरसी समन्वयक प्रतीक हजेला ने प्रस्तुत किया था कि दावों पर विचार और निर्णय के दौरान 27% पुनर्सत्यापन पहले ही किया जा चुका है और न्यायालय को आगे नमूना पुनर्सत्यापन आवश्यक नहीं लगा।

अभी भी है राज्य में बांग्लादेशी- हिमंता

पिछले महीने आयोजित एक विशेष विधानसभा सत्र में मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि राज्य सरकार अभी भी बांग्लादेश की सीमा से लगे ज़िलों में सूची के 20% और बाकी ज़िलों में 10% पुनर्सत्यापन की प्रक्रिया में है। इस मामले में एक सूत्र ने कहा कि एनआरसी का नया मसौदा जारी होने वाला है। यह एक या दो महीने में, संभवतः अक्टूबर तक, जारी हो जाएगा। उन्होंने कहा कि हमारा मानना है कि सत्यापन के बाद तैयार किया गया एनआरसी डेटा – और पुनर्सत्यापन भी प्रक्रिया में है, नागरिकता साबित करने के लिए एक आदर्श दस्तावेज़ होगा। यह उन दस्तावेज़ों में से एक हो सकता है।

चुनाव आयोग से इसको लेकर सवाल किया गया कि क्या उसने असम के अनुरोध पर विचार किया है या इस मामले पर कोई निर्णय लिया है, तो इंडियन एक्सप्रेस को इस मुद्दे पर कोई जवाब नहीं मिला। संपर्क करने पर सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने इस अखबार को बताया कि इस मुद्दे पर चुनाव आयोग के साथ कोई आधिकारिक बातचीत नहीं हुई है।

कौन हैं खान सर की पत्नी जिनके साथ शुरू की नई जिंदगी, देखें पत्नी की खूबसूरत तस्वीरें

बिहार में गर्माया है वोटर लिस्ट रिवीजन का मुद्दा

बिहार से मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण शुरू करने के चुनाव आयोग के फैसले का राज्य में राजनीतिक विरोध शुरू हो गया है, कुछ दलों ने इस प्रक्रिया के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया है। इसका कारण ये है कि चुनाव आयोग ने 2003 के बाद रजिस्टर हुए मतदाताओं से मतदाता सूची में बने रहने के लिए अपनी पात्रता, विशेष रूप से आयु और नागरिकता, सिद्ध करने हेतु दस्तावेज़ों की सूची मांगी है।

वर्ष 2003 को कट-ऑफ वर्ष इसलिए चुना गया है क्योंकि बिहार में अंतिम बार गहन पुनरीक्षण उसी समय हुआ था। इसलिए, 2003 की मतदाता सूची में शामिल किसी भी व्यक्ति को नागरिक माना जाता है, और इसलिए वह अब तैयार की जा रही नई मतदाता सूची में शामिल होने का पात्र है। सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाकर्ताओं ने मतदाताओं की नागरिकता सत्यापित करने के चुनाव आयोग के अधिकार, इस तरह की प्रक्रिया में उचित प्रक्रिया के महत्व और संशोधन के समय पर सवाल उठाए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने अंततः चुनाव आयोग को चुनावी राज्य बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण से रोकने से इनकार कर दिया, लेकिन सुझाव दिया कि चुनाव आयोग मतदाता सूची को रिवाइज करने के लिए आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड पर भी विचार करे।

‘मैं अभी असहज स्थिति में, मेरी कोई भूमिका नहीं…’, चुनाव लड़ने के सवाल पर ये क्या बोल गए चिराग पासवान?

तेजस्वी, चिराग या मैं, नीतीश कुमार की विरासत को बढ़ा सकते’, मुकेश सहनी बोले- सीएम हमें आशीर्वाद दें