Kisan Andolan News: पंजाब हरियाणा के प्रमुख बॉर्डर यानी शंभू और खनौरी बॉर्डर पर पंजाब के किसान अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल महीने भर से ज्यादा समय से आमरण अनशन पर हैं। दूसरी ओर उनकी तबीयत से लेकर किसानों की स्थिति को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी चिंतित है। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए एक कमेटी का गठन किया गया था। खास बात यह भी है कि किसानों के नेता सुप्रीम कोर्ट की इस कमेटी के सदस्यों के साथ भी बैठक नहीं करना चाहते हैं।
हाल ही में संयुक्त किसान मोर्चा (राजनीतिक) ने अपनी मांगों पर विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक उच्चस्तरीय समिति से मिलने से इनकार कर दिया है। 4 जनवरी को भारतीय किसान यूनियन (उग्राहन) ने भी बातचीत से मना कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट की समिति ने संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) के सदस्यों से मुलाकात की है, जिसके संयोजक जगजीत सिंह डल्लेवाल हैं, वे आमरण अनशन पर हैं। हालांकि, बैठक में केवल दूसरे दर्जे के नेतृत्व ने ही भाग लिया।
सुप्रीम कोर्ट की कमेटी के अधिकार क्षेत्र से बाहर का है मामला
इस मामले में एसकेएम नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि उन्होंने इस मुद्दे पर दो दिनों तक चर्चा की और फैसला किया कि पैनल के अधिकार क्षेत्र का किसानों की मांगों से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने दावा किया कि उच्चस्तरीय समिति को खनौरी और शंभू सीमाओं पर आंदोलनकारी किसानों को जगह मुहैया कराने पर काम करना था, लेकिन वह कुछ भी करने में असमर्थ थी।
किसान नेता राजेवाल ने कहा है कि इसलिए हमने 3 जनवरी को उनकी बैठक का हिस्सा न बनने का फैसला किया, क्योंकि हमें लगता है कि इससे आंदोलन के हितों को नुकसान पहुंचेगा। उन्होंने यह भी कहा कि वे उस समय बैठक में भाग नहीं लेना चाहते थे, जब डल्लेवाल आमरण अनशन पर बैठे हैं।
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क्या है सुप्रीम कोर्ट के पैनल का अधिदेश?
पिछले साल 2 सितंबर को उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि समिति से अनुरोध है कि इस बीच वह शंभू सीमा पर आंदोलनकारी किसानों से संपर्क करे और उन पर दबाव डाले कि वे राष्ट्रीय राजमार्ग के पास से अपने ट्रैक्टर/ट्रॉली, टेंट और अन्य सामान तुरंत हटा लें, ताकि दोनों राज्यों के नागरिक और पुलिस प्रशासन राष्ट्रीय राजमार्ग को खोलने में सक्षम हो सकें।
न्यायाधीश सूर्यकांत और उज्जल भुयान ने यह भी कहा कि हमें उम्मीद है और भरोसा है कि आंदोलनकारी किसानों की एक प्रमुख मांग तटस्थ उच्चाधिकार प्राप्त समिति के गठन की है, जिसे दोनों राज्यों की सहमति से स्वीकार कर लिया गया है। वे उच्चाधिकार प्राप्त समिति के अनुरोध पर तुरंत प्रतिक्रिया देंगे और बिना किसी देरी के शंभू सीमा या दोनों राज्यों को जोड़ने वाली अन्य सड़कों को खाली कर देंगे।
सुप्रीम कोर्ट के जजों ने यह भी कहा था कि यह कदम आम जनता को बड़ी राहत प्रदान करेगा, जो राजमार्गों की नाकाबंदी के कारण अत्यधिक कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। यह उच्चाधिकार प्राप्त समिति और दोनों राज्यों को किसानों की वास्तविक और न्यायसंगत मांगों पर निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ तरीके से विचार करने में भी मदद करेगा। इतना ही नहीं, उनका कार्य कृषि समुदाय के समक्ष उपस्थित बड़े मुद्दों की जांच करना भी है।
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सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम यह भी कहना चाहेंगे कि पंजाब और हरियाणा में गैर-कृषि समुदायों की एक बड़ी आबादी है, जो बड़े पैमाने पर समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों से संबंधित हैं और गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं। उनमें से अधिकांश अपने गांवों/क्षेत्रों में कृषि गतिविधियों की ताकत और रीढ़ हैं।
कोर्ट ने कहा कि हम कृषि विकास में उनके योगदान को स्वीकार करते हैं और हमारा मानना है कि उनकी वैध आकांक्षाएं, भले ही लागू करने योग्य अधिकार न हों, समिति द्वारा सहानुभूति और उचित विचार की हकदार हैं, जबकि पंजाब और हरियाणा राज्यों में कृषक समुदाय के सामने आने वाले बड़े मुद्दों की जाँच की जा रही है।
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किसान आंदोलन को लेकर अब आगे क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट की समिति अब कृषि आय बढ़ाने पर अपनी दूसरी रिपोर्ट तैयार कर रही है, जिसमें एमएसपी भी शामिल है। इसके लिए समिति ने पंजाब और हरियाणा के कृषि और बागवानी विभागों के निदेशकों सहित विभिन्न हितधारकों से मुलाकात की है। 7 जनवरी से और बैठकें होने वाली हैं।
कृषि नीतियों पर काम करने वाली संस्थाओं को बुलाया गया है। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के अध्यक्ष विजय पाल शर्मा को बुलाया गया है। नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद को भी आमंत्रित किया गया है। क्रेडिट रेटिंग इंफॉर्मेशन सर्विसेज ऑफ इंडिया लिमिटेड (क्रिसिल) को भी आमंत्रित किया गया है, जिसने पिछले वित्त वर्ष में सार्वभौमिक एमएसपी की लागत 21,000 करोड़ रुपये आंकी थी। किसान आंदोलन से जुड़ी अन्य खबरें पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।
