Shariat Act 1937: उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता विधेयक विधानसभा में पेश किया गया है। मुस्लिस समुदाय से संबंध रखने वाला एक तबका लगतार इसका विरोध कर रहा है। उत्तराखंड की विधानसबा में खुद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विधेयक पेश किया। बिल पेश होने के बाद चर्चा के लिए ज्यादा समय नहीं मिला। थोड़ी देर बाद ही हंगामे की वजह से सदन स्थगित कर दिया गया।

उत्तराखंड में इस विधेयक के लागू होेने के बाद राज्य में सभी लोगों के लिए एक समान विवाह, तलाक, गुजारा, जमीन संपत्ति के कानून लागू होंगे। चाहे वह अपनी किसी भी धर्म के प्रति आस्था रखता हो। मुस्लिम लोगों को इस बात का डर है कि समान नागरिक संहिता के लागू हो जाने के बाद से शरियत कानून को बिल्कुल समाप्त कर दिया जाएगा।

शरियत कानून क्या है

शरियत कानून को ब्रिटिश सरकार ने साल 1937 में पारित किया था। मुस्लिम नेता इसी कानून का जिक्र करते हुए समान नागरिक संहिता बिल का विरोध कर रहे हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ मुख्य रूप से शरियत एप्लीकेशन के जरिए चलता है। यह कानून मुस्लिम लोगों में समाज में रहने के तौर-तरीकों, नियमों और कायदों को बताता है। यह पैगम्बर मोहम्मद की शिक्षाओं पर आधारित है।

कैसे अस्तित्व में आया शरियत कानून

भारत में शरियत कानून बनाने के पीछे भी अग्रेजों का हाथ था। उन्होंने सभी समुदायों से जुड़े हुए फैसलों को एक ही क्रम पर देने शुरू कर दिए थे। उन्हें लगा कि भारत में सिर्फ एक ही रिवाज का पालन किया जाता है। अंग्रेजों के ही शासन में मद्रास सिविल कोर्ट 1873 और 1876 में अवध लॉ बनाया गया। इसमें साफ किया गया था कि मजहबी कानून के अनुसार पहले स्थानीय रिवाजों का पालन किया जाएगा। इन कानूनों की वजह से महिलाओं की समस्या ज्यादा बढ़ गई थी। स्थानीय परंपराओं और रिवाजों में महिलाओं को ज्यादा हक नहीं दिया जाता था। इनका उलेमाओं ने भी काफी विरोध किया और इसके बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बनाया गया और एक बोर्ड का भी गठन किया गया।

इस्लामिक कानून कोड तैयार करना मकसद

इस तरह मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लिकेशन एक्ट साल 1937 में पास हुआ। दरअसल इसका मकसद इस्लामिक कानून कोड बनाना था। इस तरह 1937 से ही मुस्लिमों के शादी, तलाक, विरासत और पारिवारिक विवादों के फैसले इस कानून के जरिये ही होते थे। खास बात यह थी कि इस कानून के मुताबिक व्यक्तिगत विवादों में सरकार दखल नहीं दे सकती थी। अब यूसीसी के लागू हो जाने के बाद से उत्तराखंड में सरकार दखल दे सकती है।

1937 में कानून बनने के बाद में मुस्लिम लीग एक बड़ी मुस्लिम पार्टी बनकर सामने आई थी और गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस दूसरे मुहाने पर थी और काफी मजबूत थी। इस कानून ने कई सांप्रदायिक भावनाओं को जन्म दिया था। इस कानून का असर इतना ज्यादा था कि यह सीधे तौर पर विभाजन पर ही जाकर रुका था।