बीते कुछ दिनों से राजस्थान कैबिनेट विस्तार को लेकर अटकलें जारी हैं। सीएम अशोक गहलोत और उनके धुर विरोधी सचिन पायलट कांग्रेस आलाकमान के साथ बड़े नेताओं से लगातार चर्चा कर रहे हैं। सचिन खेमे का मानना है कि उन्हें अब सीएम की कुर्सी पर बैठाने का वक्त आ गया है। राजस्थान में दो दशकों से एक परिपाची कायम है। कांग्रेस जाती है तो बीजेपी आती है और बीजेपी के जाने के बाद कांग्रेस का आना तय है। सचिन खेमे का मानना है कि इस मिथक को तोड़ने के लिए दो साल पहले सत्ता का शीर्ष नेतृत्व बदलना जरूरी है जिससे वो लोगों के बीच सकारात्मक प्रचार कर सकें। उधर, उनके लिए मुश्किल ये है कि हर नए दिन के साथ गहलोत मजबूत होते जा रहे हैं। बात चाहें पंचायत चुनाव की हो या फिर उप चुनाव की। गहलोत ने हर मौके पर खुद का वर्चस्व साबित किया है।

राजस्थान की बात की जाए तो 200 सदस्यीय असेंबली में अधिकतम 30 मंत्री ही बनाए जा सकते हैं। नियम है कि किसी भी सूबे में असेंबली की कुल सदस्य संख्या के 15 फीसदी ही मंत्री बन सकते हैं। राजस्थाम में अभी नौ खाली पद हैं। गहलोत के अलावा सूबे में दस कैबिनेट मंत्री हैं तो दस राज्य मंत्री हैं। तीन जगहें और खाली हो सकती हैं, क्योंकि गोविंद सिंह डोटेसरा राज्य कांग्रेस के प्रधान भी हैं और मंत्री भी। इसी तरह से रघु शर्मा एआईसीसी के गुजरात इंचार्ज हैं तो हरीश चौधरी पंजाब के प्रभारी। उन्हें देर सवेर मंत्री पद छोड़ना ही पड़ेगा। इस तरह से तीन और खाली जगहें मंत्रिमंडल में हो सकती हैं, लेकिन गहलोत सारे पद नहीं भरेंगे। नाखुश विधायकों के लिए वो दो से तीन पद तो खाली रखेंगे ही। ताकि वो जरूरत पड़ने पर रूठों को मनाने के लिए इन पदों का इस्तेमाल सलीके से कर सकें।

सूत्रों का कहना है कि कैबिनेट विस्तार इस बात को भी दर्शाएगा कि पायलट का पार्टी में क्या ओहदा है। उनकी आलाकमान पर क्या पकड़ है। लिहाजा फिलहाल कैबिनेट विस्तार राजस्थान कांग्रेस के लिए काफी अहम माना जा रहा है। लेकिन गहलोत को पटखनी देकर कैबिनेट में अपनों को जगह दिलाना पायलट के लिए उतना आसान भी नहीं है। बीते साल जब अपने 19 विधायकों को लेकर सचिन ने विरोध का बिगुल फूंका था तब येन केन प्रकारेण गहलोत ने सरकार तो बचा ली लेकिन उन्हें निर्दलीय के साथ दूसरे दलों पर आश्रित होना पड़ गया। आलाकमान के दखल के बाद दोनों के बीच सुलह तो हो गई लेकिन कड़वाहट फिर भी बरकरार है। सचिन खेमे के विधायक गहलोत की आलोचना करने का कोई मौका जाया नहीं करते।

हालांकि, जनवरी में आलाकमान ने अपनी तरफ से दोनों खेमों के बीत संतुलन बनाने की कोशिश की थी। स्टेट एग्जीक्यूटिव की घोषणा के समय पायलट खेमे के विधायकों को भी जगह दी गई। लेकिन बीते एक साल के दौरान गहलोत ने दिखाया है कि पायलट के लिए उन्हें हिलाना इतना आसान नहीं है। वो चाहें तो अपने वफादारों को कैबिनेट में जगह दिलाने के लिए उठापटक कर सकते हैं। पायलट का कहना है कि आलाकमान ने बीते साल जो कमेटी बनाई थी, उसका मकसद राजस्थान कांग्रेस की राजनीति में परिवर्तन को लेकर ही था। उनका कहना है कि वो कमेटी सोनिया गांधी के आदेश पर बनाई गई थी। उनका कहना है कि कमेटी जल्दी ही अपना काम करेगी। लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू ये भी है कि राजस्थान में लगातार कैबिनेट विस्तार की खबरें आती हैं लेकिन जादूगर के तौर पर विख्यात ऐसा पासा फेंकते हैं कि विरोधी खेमे की हवा निकल जाती है।