बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने पहली बार अपने कार्यकर्ताओं की बैठकों में अपने समर्थकों से पैसे लेने की प्रथा को बंद करने का फैसला किया है। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब पार्टी लगातार चुनावों में अपने खराब प्रदर्शन से उबरने की कोशिश कर रही है। सूत्रों ने बताया कि बसपा नेता ऐसे समय में वित्तीय सहायता मांगने में असहज महसूस कर रहे हैं जब चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन में भारी गिरावट देखी गई है।

बीएसपी के एक वरिष्ठ नेता ने इंडियन एक्स्प्रेस से बातचीत के दौरान कहा, “अतीत में, नेताओं ने प्रतिभागियों से उनकी इच्छा के अनुसार योगदान देने के लिए कहा था। ऐसा तब किया जाता था जब बीएसपी राष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत पार्टी थी और लोग खुशी-खुशी योगदान देते थे। चूंकि पार्टी के चुनावी प्रदर्शन में गिरावट आई है और हमारे कई अनुयायी समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से आते हैं इसलिए हमने इस प्रथा को बंद करने का फैसला किया है। हालांकि, अगर कोई स्वेच्छा से काम करना चाहता है तो उनका स्वागत है।”

अब BSP कैसे इकट्ठा करेगी फंडिंग?

हालांकि, पार्टी में हर कोई इस फैसले से सहमत नहीं है, उनका कहना है कि पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलने वाला वित्तीय योगदान और सदस्यता शुल्क ही पार्टी के लिए धन संग्रह के दो स्रोत हैं। नेता ने कहा, “हम एक ऐसी पार्टी हैं जो व्यापारियों से धन प्राप्त नहीं करती है, जैसा कि चुनावी बॉन्ड की रिपोर्ट में देखा गया है। अब, हमारे पास धन के स्रोत के रूप में केवल 50 रुपये प्रति व्यक्ति की सदस्यता शुल्क है।”

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BSP ने सदस्यता शुल्क 200 रुपये से घटाकर 50 रुपये कर दिया

पिछले साल लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद, जिसमें पार्टी अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी, बसपा ने आर्थिक रूप से कमजोर ग्रामीण वर्ग के अधिकाधिक लोगों को पार्टी से जोड़ने के लिए अपनी सदस्यता शुल्क 200 रुपये से घटाकर 50 रुपये कर दिया था। हालांकि, चुनाव आयोग को सौंपी गई रिपोर्ट के अनुसार, बीएसपी ने 2021-22 में फीस और सदस्यता के माध्यम से अर्जित धन को 600 लाख रुपये से बढ़ाकर 2022-23 में 1,373 लाख रुपये कर दिया है। 2023-25 ​​में यह 2,659 लाख रुपये था। तीनों वर्षों की वित्तीय रिपोर्ट में दान और अनुदान के माध्यम से प्राप्त धन का उल्लेख नहीं है।

फिर से शुरू होंगी बसपा की कैडर मीटिंग्स

2007 में उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आने से पहले पार्टी के संगठन को मजबूत करने के लिए कैडर मीटिंग्स अहम होती थीं। हालांकि, सूत्रों का कहना है कि मायावती के सीएम बनने के बाद ये मीटिंग्स बंद हो गई थीं और हाल ही में इन्हें फिर से शुरू किया गया। लेकिन उसके बाद से ये मीटिंग्स अनियमित हो गई हैं।

बसपा के एक नेता ने दावा किया कि मार्च में उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में कैडर मीटिंग शुरू हो गई थी, लेकिन अक्टूबर में छह महीने के सदस्यता अभियान के बाद देशभर में इसी तरह की मीटिंग योजनाबद्ध तरीके से आयोजित की जाएंगी। बसपा के पुनरुद्धार की योजना के तहत मायावती से विभिन्न राज्यों में जनसभाओं को संबोधित करने की उम्मीद है। पढ़ें- देश दुनिया की तमाम बड़ी खबरों के लेटेस्ट अपडेट्स