Ambedkarite Movement and Dalit Identity: संसद के पिछले सत्र के दौरान लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेताओं ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर संविधान निर्माता डॉ. बीआर आंबेडकरके अपमान का आरोप लगाते हुए संसद परिसर में प्रदर्शन किया था। इस दौरान उन्होंने नीले कपड़े पहने हुए थे। नीले कपड़े पहनने का यह फैसला यूं ही नहीं लिया गया था। नीला रंग लंबे वक्त से दलित समुदाय के लिए प्रतीकात्मक रंग रहा है और यह बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर और उनकी राजनीति से जुड़ा हुआ है।

आंबेडकर का निधन 1956 में हुआ था लेकिन उससे पहले कम से कम 3 से 4 दशक तक उन्हें सार्वजनिक तौर पर हमेशा एक थ्री पीस सूट पहने हुए देखा जाता था।

इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने साल 2002 में द हिंदू अखबार में प्रकाशित एक लेख में लिखा था कि यह सूट इस बात का प्रतीक है कि आंबेडकर को उस नसीब को नहीं झेलना पड़ा जिसे उनके लाखों दलित भाई आज भी झेल रहे हैं।

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रामचंद्र गुहा ने लिखा था, “परंपरा और इतिहास के नियमों के अनुसार यह व्यक्ति सूट नहीं पहन सकता था, चाहे वह नीले रंग का हो या फिर किसी और रंग का। लेकिन उन्होंने ऐसा किया और उनकी असाधारण उपलब्धियों की वजह से ही ऐसा हो सका। लिंकन इन से कानून की डिग्री, अमेरिका और इंग्लैंड से पीएचडी और भारत के संविधान का निर्माण। दलितों ने उन्हें सूट पहनाकर याद किया और ऊंची जातियों के गढ़ में उनके प्रवेश का जश्न मनाया।”

मानवविज्ञानी एम्मा टार्लो ने Clothing Matters: Dress and Identity in India (1996) में आंबेडकर के कपड़ों के चुनाव की तुलना महात्मा गांधी से की है। एम्मा टार्लो ने लिखा, “यह कोई संयोग नहीं है कि गांधी जो बनिया जाति से थे उन्होंने हरिजनों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक गरीब व्यक्ति की तरह देसी शैली में कपड़े पहने, जबकि आंबेडकर जो हरिजन (दलित) समुदाय से थे, उन्होंने यूरोपीय कपड़े पहनकर उनका प्रतिनिधित्व करने का रास्ता चुना।”

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आज डॉक्टर आंबेडकर को नीले रंग का सूट पहनाकर याद किया जाता है। दलित चेतना और प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में नीले रंग को अपनाने का यह एक मुख्य कारण है।

ऐसा हो सकता है कि आंबेडकर ने नीले रंग का सूट इसलिए चुना हो क्योंकि यह उस दौरान पश्चिमी देशों में चल रहे फैशन ट्रेंड से प्रेरित था। क्योंकि 1910 और 1920 के दशक में डॉक्टर आंबेडकर न्यूयॉर्क और लंदन में रहे थे। उस समय नीला ब्लेजर आम लोगों के बीच काफी लोकप्रिय था।

राजनीतिक विज्ञानी वलेरियन रोड्रिग्स जिन्होंने Ambedkar’s Philosophy (2024) लिखी है, वह कहते हैं, “नीला रंग आकाश को दिखाता है, जो समानता का प्रतीक है। आकाश के नीचे सभी समान होते हैं।”

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बौद्ध धर्म से भी जोड़ा जाता है नीले रंग को

कुछ विद्वान नीले रंग को बौद्ध धर्म से भी जोड़ते हैं। डॉक्टर आंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाया था। यह बौद्ध ध्वज में एक प्रमुख रंग है। बौद्ध और अन्य बौद्ध आकृतियों को दक्षिण एशिया की परंपरा में नीले रंग में ही दिखाया गया है। शायद यही वजह है कि आंबेडकर ने 1942 में शेड्यूल कास्ट फेडरेशन के झंडे के लिए नीले रंग को चुना था। नीला रंग कामकाजी वर्ग और मेहनतकश लोगों का भी रंग है जिन्हें अक्सर ‘ब्लू कॉर्नर वर्कर्स’ कहा जाता है।

पहले नहीं होता था नीले रंग का इस्तेमाल

कुछ सालों पहले दलित आंदोलन में हमेशा नीले रंग का इस्तेमाल नहीं होता था। जैसे- 1920-30 के दशक में पंजाब में चले आदि धर्म आंदोलन का रंग गहरा लाल था। इसी तरह अधिकतर लोग समाज सुधारक ज्योतिबा राव फुले को उनकी पगड़ी के लाल रंग से जोड़ते हैं। आंबेडकर ने शेड्यूल कास्ट फेडरेशन के झंडे के लिए नीले रंग को चुना जिससे एक ‘स्वायत्त दलित राजनीतिक एजेंडे’ का प्रतिनिधित्व हो सके।

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रोड्रिग्स लिखते हैं, “आंबेडकर कम्युनिस्टों (लाल रंग), हिंदुओं (भगवा) और मुसलमानों (हरा) से कुछ अलग दिखाना चाहते थे…नीला रंग आंबेडकर और दलितों के नजरिए से देश को किस दिशा में ले जाना चाहिए, इस बारे में एक अलग दृष्टिकोण सामने रखता है।”

दलितों के संदर्भ में नीला रंग आंबेडकर के साथ इसके जुड़ाव का नतीजा है और यह समय के साथ और मजबूत हुआ है। उदाहरण के लिए कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी के रंग और चुनाव चिन्ह का फैसला करते वक्त रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया की आइकोनोग्राफी से प्रेरणा ली थी।