दिल्ली के ओल्ड राजिंदरनगर क्षेत्र में एक कोचिंग संस्थान के बेसमेंट में पानी भर जाने से तीन छात्रों की मौत में लापरवाही को लेकर कई तरह के सवाल उठाए गये। एक बड़ा सवाल यह है कि बेसमेंट का उपयोग पढ़ने, दफ्तरों और दुकानों के लिए क्यों किया जा रहा है। राजधानी दिल्ली में ऐसा करीब-करीब हर तरफ है। रिहायशी इलाकों में यह काफी अधिक है। प्रोफेशनल्स के लिए रियल इस्टेट में सबसे अधिक खोजबीन बेसमेंट के बारे में ही होती है।
बड़े लोगों के दफ्तर भी बेसमेंट में बने हैं
दिल्ली के पॉश इलाका जंगपुरा एक्सटेंशन के नई बनी इमारत के बेसमेंट में एक जुलाई को उमस जैसा दिन था। एक बड़े वकील के चैंबर में बैठे सीनियर ने अपने जूनियर को बहुत तेजी से बुलाया और अपना फोन पकड़ाते हुए कहा, “जल्दी करो! जल्दी करो, मुझे एक ओटीपी लेनी है।” इसके बाद जूनियर तेजी से उस हॉल से बाहर निकला, सेलुलर नेटवर्क सिग्नल आने के बाद वह अपने सीनियर के पास भागकर वापस आता है।
ऐसी स्थिति हर जगह देखी जा सकती है। एक युवा वकील से लेकर सीनियर एडवोकेट्स तक, डॉक्टर से लेकर चार्टर्ड अकाउंटेंट तक, बेसमेंट ऑफिस एक पसंदीदा विकल्प है, भले ही वहां मुश्किल से ही धूप या सेल फोन नेटवर्क आता हो। इसके अलावा एक और भूमिगत दुनिया है। जिसमें जिमनेजियम, क्लाउड किचन, बार और लाइब्रेरी आदि है। इनमें से कई नगर निगम के तय मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं।
दिल्ली में चौतरफा फैले बेसमेंट की कई वजह है
शहर में भूमि के एक हिस्से की आसमान छूती लागत के लिए लैंड-यूज बनाए जाने से लेकर राष्ट्रीय राजधानी में तेजी से बढ़ते बेसमेंट अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया है। इस मौसम में हुई मूसलाधार बारिश और राजिंदर नगर की घटना की वजह से इन बेसमेंटों की जांच शुरू हो गई है।
एकीकृत भवन उपनियम, 1983 और मास्टर प्लान दिल्ली (The Unified Building Bye-Laws, 1983, and the Master Plan Delhi) के तहत बेसमेंट बनाए जाते हैं। ये उपनियम निर्धारित करते हैं कि दिल्ली की कॉलोनियों (जिन्हें सर्किल एरिया रेट के आधार पर आठ ज़ोन में बांटा गया है) में किस तरह की गतिविधियां करने की अनुमति है और क्या उन्हें आवासीय, वाणिज्यिक या मिश्रित उपयोग के लिए नामित किया गया है।
श्रेणी ए और बी कॉलोनियों के घरों में केवल ‘पेशेवर गतिविधियों’ की अनुमति है। मास्टर प्लान इन गतिविधियों को प्रोफेशनल स्किल जैसे डॉक्टर, वकील, आर्किटेक्ट, चार्टर्ड अकाउंटेंट, कंपनी सेक्रेटरी, कॉस्ट और वर्क्स अकाउंटेंट, इंजीनियर, टाउन प्लानर, मीडिया पेशेवर और डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता और प्रबंधन पेशेवरों के आधार पर सेवाओं से जुड़ी गतिविधियों के रूप में परिभाषित करता है। 2016 में आहार विशेषज्ञ/पोषण विशेषज्ञों को इस सूची में जोड़ा गया।
वकीलों के लिए शानदार और बहुत-पसंद किए जाने वाली स्थानों में गोल्फ़ लिंक्स, सुंदर नगर, निज़ामुद्दीन ईस्ट, महारानी बाग और डिफेंस कॉलोनी आदि इन श्रेणियों में आते हैं। 2008 में मास्टर प्लान में संशोधन करके बेसमेंट में ‘पेशेवर गतिविधि’ की अनुमति दी गई थी। प्रावधान में कहा गया है, “प्लाट किए गए विकास में बेसमेंट में पेशेवर गतिविधि की अनुमति है, बशर्ते कि बिल्डिंग बाय-लॉ, संरचनात्मक सुरक्षा मानदंड और अग्नि सुरक्षा मंजूरी के प्रासंगिक प्रावधान हों। यदि व्यावसायिक गतिविधि के लिए बेसमेंट का उपयोग करने से प्लॉट पर स्वीकार्य FAR (फ्लोर एरिया रेशियो) से अधिक क्षेत्र का उपयोग होता है, तो अतिरिक्त FAR का उपयोग सरकार की मंजूरी से निर्धारित उचित शुल्क के भुगतान के अधीन किया जाएगा।”
इसके अतिरिक्त दिल्ली नगर निगम द्वारा 2011 में जारी एक आदेश ने उनके लिए बेसमेंट कार्यस्थलों को और अधिक खोल दिया। एमसीडी के आदेश में व्यक्तिगत आवासीय भूखंडों के पुनर्विकास के सभी प्रस्तावों में पार्किंग के लिए एक तय मंजिल को शामिल करना अनिवार्य किया गया था। जबकि इसका उद्देश्य सड़कों पर लोगों की पार्किंग की समस्या को हल करना था, लेकिन इसके बजाय इन मंजिलों का उपयोग पार्किंग के अलावा अन्य कारणों से किया जाने लगा।
दक्षिण दिल्ली में ‘बिल्डर फ्लोर’ इकाइयों में से एक में फ्लैट-मालिक श्रेया जैन कहती हैं, “भले ही निवासियों को सड़कों पर पार्क करना पड़े, लेकिन इन जगहों का उपयोग नौकरों के क्वार्टर के रूप में किया जाता है या कार्यालय की जगह के रूप में किराए पर दिया जाता है। किराए से आम तौर पर इमारत के रखरखाव की लागत और सुरक्षा गार्ड और अन्य कर्मचारियों के लिए भुगतान किया जाता है।”
दिल्ली में बेसमेंट और बरसाती (छतों पर एकल कमरे के सेट, जिन्हें अक्सर बिना परमिट के बनाया जाता है) लोकप्रिय अवधारणाएं होने का एक और कारण निर्माण के लिए वर्टिकल लिमिट है। दिसंबर 2022 तक, मास्टर प्लान ने इमारतों को केवल 15 मीटर ऊंचा होने की अनुमति दी थी। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद डीडीए ने इसे बढ़ाकर 17.5 मीटर कर दिया।