Bihar SIR: बिहार में एसआईआर एक्सरसाइज हो रही है। ड्राफ्ट इलेक्ट्रल रोल जारी होने के साथ ही क्लेम एंड ऑब्जेक्शन प्रोसेस और आखिरी ड्राफ्ट लिस्ट में शामिल होने के लिए 11 डॉक्यूमेंट्स में से एक को अपलोड करने के लिए एक सितंबर का वक्त है। जैसे-जैसे तारीख नजदीक आती जा रही है वैसे ही लोगों में असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बिरंची पासवान को विशेष गहन पुनरीक्षण ने एक मौका दे दिया है। इन दिनों वह बैरगाछी गांव में लोगों को इकट्ठा कर रहे हैं। बैरगाछी गांव पूर्णिया शहर से महज छह किलोमीटर दूर है। वह यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि जिन वोटर्स का नाम वोटर लिस्ट में नहीं है, वे गांव में तीन बूथ लेवल अधिकारियों में से किसी एक को अपना डॉक्यूमेंट जमा कराएं।
बैरगाछी के 2200 वोटर्स में से ज्यादातर एससी कैटेगरी के पासवान समुदाय से हैं। इसके बाद ओबीसी और मुस्लिम आबादी भी अच्छी-खासी संख्या में है। यह गांव धमदाहा विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है। दिवंगत भोला पासवान शास्त्री के दो मंजिला पैतृक घर को एक कैंप में बदल दिया गया है। यहां पर दिन भर लोगों का जमावड़ा रहता है और 1 सितंबर से पहले अपलोड किए जाने वाले दस्तावेजों के साथ एक-दूसरे की मदद करते हैं।
लोगों को जागरूक करने का काम कर रहे बिरंची पासवान
बिरंची पासवान ने कहा, “हम यहां किसी भी राजनीतिक दल के बूथ लेवल एजेंट को मुश्किल से देखते हैं। हम गांव के तीन बीएलओ और गांव के कुछ राजनीतिक रूप से जागरूक लोगों के साथ मिलकर काम करते हैं। गांव में और उसके आसपास के तीन साइबर कैफे एक महीने से लोगों को रेजिडेंशियल सर्टिफिकेट हासिल करने में मदद कर रहे हैं, जिन्हें लोगों को जमा करना होगा। जागरूकता का स्तर इतना है कि बीएलओ को लोगों को अपने कागजात जमा करने के बारे में याद दिलाने की जरूरत नहीं है। इसके बजाय, लोग खुद ही आते हैं।”
वार्ड नंबर 1 के बीएलओ महेश पासवान कहते हैं, “मेरे वार्ड के 669 वोटर्स में से 353 के नाम वोटर लिस्ट में हैं। मेरे पास केवल 110 पेंडिंग फॉर्म हैं। इनमें से लगभग सभी ऐसे लोगों के हैं जो अपने रेजिडेंशियल सर्टिफिकेट का इंतजार कर रहे हैं। हमारे पास अभी भी बहुत समय है। मुझे उम्मीद है कि ग्रामीणों की सक्रिय भागीदारी की बदौलत 100% फॉर्म जमा हो जाएंगे।”
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हमें सरकार से कोई लाभ नहीं मिल रहा
दो महिलाएं अंदर आती हैं। उनमें से एक के पास तो रेजिडेंशियल सर्टिफिकेट है और दूसरी के पास में 2003 की वोटर लिस्ट का स्क्रीनशॉट है। उनमें से एक कहती है, “जब तक हम मतदाता नहीं रहेंगे, हमें सरकार से कोई लाभ नहीं मिल सकता। कौन जाने, अगर भविष्य में वे कहें कि 5 किलो मुफ़्त राशन योजना सिर्फ मतदाता पहचान पत्र वालों के लिए है तो क्या होगा।”
वार्ड नंबर 2 के बीएलओ टीचर नवल किशोर दस घंटे काम करने के बाद घर लौटने को तैयार हैं। उन्होंने कहा, “मैं सुबह सात बजे से ही डॉक्यूमेंट इकट्ठा करने के लिए निकला हूं। इस वार्ड के 786 मतदाताओं में से 340 के नाम 2003 की मतदाता सूची में हैं। अब तक 557 फॉर्म जमा हो चुके हैं। मुझे उम्मीद है कि शत-प्रतिशत अनुपालन होगा। ज़्यादातर लोगों ने आवासीय प्रमाण पत्र बनवा लिए हैं। गांव वाले सहयोग कर रहे हैं।”
बिरंची पासवान कहते हैं, “हमें नहीं पता कि पार्टी कितना अच्छा प्रदर्शन करेगी, लेकिन गांवों में प्रशांत किशोर की चर्चा जरूर हो रही है। सभी बड़ी पार्टियों को इस पर ध्यान देना चाहिए।” इस पर एक और ग्रामीण कहता है, “हम पासवानों को कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता। हमें किसी भी राजनीतिक दल का गढ़ नहीं समझा जा सकता।”
इसी विधानसभा क्षेत्र के वार्ड नंबर 11 में मुशहर टोली है। यह पासवानों के बैरगाछी गांव से बिल्कुल अलग मोहल्ला है। बता दें कि बिहार में 19.65% दलित आबादी में से पासवान 5.3 प्रतिशत के साथ सबसे आगे हैं। मुसहर और उनकी सहयोगी जातियां राज्य की आबादी का लगभग 3% हिस्सा हैं। संकरी गलियों और कच्चे घरों वाले वार्ड 11 में 200 से ज्यादा मुसहर परिवार रहते हैं। यहां पर एसआईआर और 1 सितंबर की आखिरी तारीख के बारे में बहुत ही कम लोगों को पता है। ज्यादातर लोग कहते हैं कि उनके पास आधार और राशन कार्ड हैं और एसआईआर को लेकर हो रहे इस हंगामे को वे समझ नहीं पा रहे हैं।
हमसे ऐसा क्यों करवाया जा रहा – बुधिया देवी
बुधिया देवी ने अपना गणना फॉर्म तो जमा कर दिया है, लेकिन कोई भी सहायक डॉक्यूमेंट नहीं। उन्होंने कहा, “मेरे पास सिर्फ आधार और राशन कार्ड हैं। ऐसा क्यों किया जा रहा है? हमें ऐसा क्यों करवाया जा रहा है? मुझे याद है, जब हम पहले किसी और विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा थे और फिर धमदाहा का हिस्सा बन गए, तो सरकार ने ही हमें वोटर आईडी कार्ड दिए थे। हमें कागजात के लिए इधर-उधर भटकना नहीं पड़ा। अब हमें साइबर कैफे पर पैसे खर्च करने पड़ते हैं और रिश्वत भी देनी पड़ती है। अगर सरकार और नेता नहीं चाहते कि हम मतदाता बने रहें, तो हमें कोई आपत्ति नहीं है।”
कोई भी हमारी मदद के लिए नहीं आया- खुदिया देवी
एक अन्य ग्रामीण खुदिया देवी कहती हैं, “मेरा नाम 2003 की सूची में है, लेकिन मेरी तीन बहुओं, सुलेखा, रिंकी और सिलान के पास कोई कागजात नहीं हैं। वे कहती हैं कि हमें उनके माता-पिता के कागजात लाने हैं। कोई भी हमारी मदद के लिए नहीं आया है।” वार्ड नंबर 11 के एक चुनाव अधिकारी कहते हैं, “ड्राफ्ट रोल में शामिल 999 मतदाताओं में से लगभग 300 2003 की लिस्ट का हिस्सा हैं। अब तक, हमने 700 से ज्यादा लोगों से डॉक्यू्मेंट इकट्ठा किए हैं, लेकिन इनमें से ज्यादातर डॉक्यूमेंट आधार, राशन कार्ड और बैंक पासबुक हैं। हमें पता है कि ये दस्तावेज काम नहीं आएंगे, लेकिन गांव वालों के पास बस यही हैं। हम ये डॉक्यूमेंट्स स्वीकार कर रहे हैं, उम्मीद है कि हमारे वरिष्ठ इन पर विचार करेंगे।”
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