Ajmer Sharif Dargah : राजस्थान की अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर विवाद सामने आया है। कोर्ट ने इसके सर्वे के आदेश दिए हैं। हिंदू पक्ष की ओर से दरगाह की नीचे शिवमंदिर होने का दावा किया गया है। इसी के बाद स्थानीय अदालत ने इसके सर्वे की याचिका स्वीकार कर ली। यह याचिका हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की ओर से दाखिल की गई थी। याचिका में दीवान बहादुर हरबिलास सारदा की किताब ‘अजमेर: ए हिस्टोरिकल नैरेटिव’ का जिक्र किया गया है। दावा किया जाता है कि दरगाह के अंदर एक शिव मंदिर है। उन्होंने यह किताब 1911 में लिखी थी। सिविल कोर्ट ने इस मामले में अल्पसंख्यक मंत्रालय, दरगाह कमेटी अजमेर और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को नोटिस भेजा है।
कौन थे हरबिलास सारदा?
हरबिलास सारदा उस दौर में अजमेर की जानीमानी शख्सियत थे। 3 जून 1867 को अजमेर में जन्मे हरबिलास सारदा बीए की डिग्री ली थी। इसके बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए ऑक्सफोर्ड जाना चाहते थे। इसी दौरान उनके पिता का निधन हो गया और उन्होंने विदेश जाने का प्लान बदल दिया। वह महर्षि दयानंद सरस्वती के विचारों से प्रेरित होकर वह उनकी संस्था से जुड़ गए थे। 21 साल की उम्र में वह अजमेर आर्य समाज के प्रमुख बन गए थे।
माहेश्वरी परिवार में जन्मे हरविलास शिक्षक, विधायक और पूर्व न्यायाधीश थे। 1888 में आगरा कॉलेज से कला स्नातक की डिग्री हासिल करने वाले हरविलास ने अंग्रेजी ऑनर्स की पढ़ाई की। सारदा ने 1889 में अजमेर के सरकारी कॉलेज में एक शिक्षक के रूप में अपना करियर शुरू किया। हरविलास ने इलाहाबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कई सत्रों में भाग लिया। इनमें नागपुर, बॉम्बे, बनारस, कोलकाता और लाहौर में आयोजित सत्र शामिल हैं। 1892 में वह अजमेर-मेरवाड़ा प्रांत के न्यायिक विभाग में नियुक्त हुए। वह कई अदालतों में जज के रूप में अपनी सेवा देने के बाद वह दो बार विधायक भी बने। 1926 और 1930 में वह अजमेर-मेरवाड़ा सीट से प्रतिनिधि चुने गए थे। 1929 में उन्होंने ही बाल विवाह निषेध अधिनियम पारित कराया था जिसे शारदा ऐक्ट के नाम से भी जाना जाता है। 20 जनवरी 1955 को 87 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
अजमेर शरीफ को लेकर किताब में क्या है?
सारदा ने कई किताबें लिखी थीं। इन्हीं में से एक थी अजमेर: हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव। इस किताब में वर्तमान इमारत में 75 फीट ऊंचे द्वार के निर्माण में मंदिर के निशान दिखाए हैं। उन्होंने यहां एक तहखाने का भी जिक्र किया। इसे शिवलिंग बताया गया। जहां ब्राह्मण परिवार पूजा-पाठ करता था। 1911 में प्रकाशित हुई इस किताब में उन्होंने ख्वाजा ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के जीवनकाल और उनके दरगाह को लेकर कई अहम बातें लिखी हैं। इसी किताब में हरबिलास सारदा ने कहा है कि दरगाह का निर्माण मंदिर अवशेषों पर किया गया है। अब इस किताब को ही आधार बनाकर कोर्ट में वाद दायर किया गया है। आगे पढ़ें अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर क्या बोले असदुद्दीन ओवैसी