2012 में बाला साहेब ठाकरे के निधन के बाद उनके बेटे उद्धव ठाकरे को पिता के मुकाबले कमजोर नेता माना जाता था। उस दौरान उद्धव को शिवसेना जैसी आक्रामक कैडर आधारित पार्टी का नेतृत्व करने के लिए बहुत कम चौकस और हल्के मिजाज का नेता समझा जाता रहा। पिता की मौत के बाद बीजेपी के अंदरखाने यह माना जाता था कि वह अपने जुझारू पिता के विपरीत हैं। उद्धव को नियंत्रण में रखा जा सकता है।
हालांकि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद जिस तरह उद्धव ठाकरे ने परिस्थितियों से डील किया उससे यह माना जा सकता है कि उनके राजनीतिक विरोधी उन्हें समझने में भूल कर बैठे। उन्होंने बीजेपी से 25 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया जिसकी शायद कभी बाला साहेब ने भी कल्पना नहीं की होगी। बहरहाल अब उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री होंगे। उन्हें मंगलवार को देवेंद्र फड़णवीस के इस्तीफे के बाद विधायक दल का नेता चुना गया है।
बाल ठाकरे के तीन बेटों में सबसे छोटे बेटे उद्धव फोटोग्राफी और गैजेट्स के दीवाने हैं। वह भाषण देने में माहिर नहीं हैं पर उन्हें सख्त प्रशासक माना जाता है। बाला साहेब को लगता था कि उद्धव ही उनकी राजनीतिक विरासत को अच्छे से संभाल सकते हैं। कहा जाता है कि 2002 के मुंबई सिविक पोल उद्धव के रानजीतिक करियर का सबसे अहम समय था। इस चुनाव में उन्होंने शिवसेना की जीत में अहम भूमिका निभाई। इसके बाद 2003 में उन्हें पार्टी का वर्किंग प्रेसिडेंट बना दिया गया।
हालांकि पार्टी की कमान मिलने से पहले उन्हें पारिवारिक अंतर्विरोध से भी जूझना पड़ा। भाई राज ठाकरे ने उनकी लीडरशिप को चुनौती दी। इसके बाद राज ठाकरे शिवसेना से अलग हो गए और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन किया। यही नहीं इस दौरान उन्हें पूर्व सीएम और शिवसेना नेता रहे नारायण राणे से भी चुनौती मिली। फोटोग्राफी को पसंद करने वाले शिवसेना प्रमुख को अपने पिता और चचेरे भाई की तुलना में एक अच्छा वक्ता नहीं माना जाता।
हालांकि इन कमियों के होते हुए भी उद्धव ने धीरे-धीरे पार्टी के भीतर अपनी स्थिति मजबूत कर ली, शुरुआत में उन्होंने स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ कई बैठकें की और यह समझने की कोशिश की कि पार्टी कैसे काम करती है। शिवसेना के पर्यवेक्षकों का कहना है कि पार्टी कार्यकर्ताओं की बात सुनने की आदत और अपने फैसलों पर टिके रहने के उनके दृढ़ संकल्प से पार्टी कार्यकर्ता हमेशा उत्साहित रहते हैं।
उन्हें ठाकरे परिवार में सबसे अलग छवि का नेता माना जाने लगा है क्योंकि उन्होंने परिवार की राजनीतिक परंपराओं को तोड़ा है। उन्होंने अपने बेटे आदित्य ठाकरे को विधानसभा चुनाव में उतारा और जीत भी दिलवाई। 2012 में पिता की मौत के बाद 2014 में उनके लिए सबसे बड़ी परीक्षा थी।
इस साल राज्य में विधानसभा चुनाव हुए थे और चुनाव से पहले बीजेपी ने शिवसेना से गठबंधन तोड़ लिया था। बावजूद उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना ने 63 सीटों पर जीत हासिल की। शिवसेना ने मोदी लहर के सामने भी खुद को मजबूत से टिकाए रखा। इसके बाद उन्होंने राज्य में खुद को बीजेपी से बढ़कर पेश किया। उन्होंने हमेशा शिवसेना को बीजेपी का ‘बड़ा भाई’ बनाना चाहा जिसमें वह फिलहाल कामयाब होते दिख रहे हैं।