आम तौर पर ऐसा होता नहीं अलबत्ता ये चीज तमिलनाडु में दिखाई दी। डीएमके सरकार के मंत्री को सेशन कोर्ट ने आय से अधिक आमदनी अर्जित करने के केस में बरी कर दिया था। मद्रास हाईकोर्ट को ये फैसला नागवार गुजरा तो स्वतः संज्ञान लेकर फैसले की समीक्षा शुरू कर दी। हाईकोर्ट के इस कदम से स्टालिन सरकार भी सकते में है। हो भी क्यों ना, आखिर मंत्री के सिर पर फिर से कानून की तलवार जो लटकने लग गई है।
सेशन कोर्ट के फैसले की समीक्षा के लिए मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस आनंद वेंकटेश ने सीआरपीसी के सेक्शन 397 का सहारा लिया। इसके जरिये हाईकोर्ट या सेशन कोर्ट को वो अधिकार मिल जाता है जिसके तहत निचली अदालत के फैसले की समीक्षा की जा सकती है।
जून में मंत्री पोनमुडी और उनकी पत्नी को किया गया था बरी
वेल्लोर की सेशन कोर्ट ने इसी साल जून माह में तमिलनाडु के हायर एजुकेशन मिनिस्टर के पोनमुडी और उनकी पत्नी को बरी करने का फैसला सुनाया था। मंत्री पर आरोप है कि 1996 से 2001 तक वो डीएमके की तत्कालीन सरकार में ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर थे। उस दौरान उन्होंने अपनी अधिकृत आमजनी से तीन करोड़ ज्यादा की रकम अर्जित की थी। उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का केस दर्ज किया गया था। पहले ये मामले चीफ जूडिशियल मजिस्ट्रेट की कोर्ट में था। लेकिन बाद में फिर ये वेल्लोर की सेशन कोर्ट के पास चला गया। सेशन कोर्ट ने मामले की सुनवाई की और फिर फैसला सुनाया कि मंत्री और उनकी पत्नी के खिलाफ ऐसा कोई सबूत प्रासीक्यूशन पेश नहीं कर सका जो उन्हें सजा दिला सके।
प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट के तहत ये केस 2002 में दर्ज किया गया था
पोनमुडी के खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट के तहत ये केस 2002 में दर्ज किया गया था। लंबी अदालती सुनवाई के बाद उन्हें इसी साल जून माह में बरी करने का फैसला सुनाया गया। खास बात है कि कुलपतियों की नियुक्ति के मसले पर पोनमुडी ने राज्यपाल से दो-दो हाथ किए थे। उसके बाद उनके खिलाफ ईडी की कार्रवाई भी शुरू हो गई थी। अब मद्रास हाईकोर्ट ने ये हैरत में डालने वाला कदम उठाया है।
आम तौर पर हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट निचली अदालतों के फैसलों की तभी समीक्षा करते हैं जब किसी ने उसे चुनौती दी हो। लेकिन तमिलनाडु में मद्रास हाईकोर्ट ने अति सक्रियता दिखाते हुए स्टालिन को हायर एजुकेशन मिनिस्टर की मुश्किलों में इजाफा कर दिया है।