One Nation One Election: ‘एक देश एक चुनाव’, ये मोदी सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट माना जाता है। इसको लेकर बीजेपी सांसद और ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ से संबंधित विधेयकों पर संसद की संयुक्त समिति के अध्यक्ष पीपी चौधरी ने हाल ही में इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत की है। उन्होंने बताया है कि इसे मौजूदा विधेयकों के साथ लागू किया गया, तो 2034 में ही चुनाव एक साथ कराए जा सकेंगे।

पीपी चौधरी ने बताया कि जेपीसी अपना मसौदा कानून से आगे जाकर चुनावों को एक समान रखने के तरीके सुझा सकती है, जिसमें रचनात्मक या सकारात्मक अविश्वास प्रस्ताव के प्रावधान की सिफारिश करना भी शामिल है। पीपी चौधरी ने एक देश एक चुनाव लागू होने के मुद्दे पर कहा कि सदस्यों ने सर्वसम्मति से सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का दौरा करने का फैसला किया है, जिसमें दो से ढाई साल का एक ऐसी प्रक्रिया जिसमें लगभग दो से ढाई साल लगेंगे। अब तक, समिति ने दो राज्यों का दौरा किया है, जो कि महाराष्ट्र और उत्तराखंड है।

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दिसंबर में पेश हुआ था विधेयक

बता दें कि एक देश एक चुनाव के विधेयक पिछले वर्ष दिसंबर में लोकसभा में पेश किये गये थे और लगभग तुरंत ही इन्हें चौधरी के नेतृत्व वाली समिति को भेज दिया गया था, जो कि फीडबैक के लिए हितधारकों के साथ परामर्श कर रही है। ड्राफ्टेड विधेयक में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ लाने के लिए एक उपाय का प्रावधान है, लेकिन चौधरी का मानना ​​है कि समिति इस बारे में अतिरिक्त सिफारिशें कर सकती है कि समन्वय कैसे कायम रखा जाए।

अविश्वास प्रस्ताव को लेकर कमेटी दे सकती है सुझाव

ऐसा ही एक सुझाव अविश्वास प्रस्ताव का रचनात्मक प्रस्ताव हो सकता है, जैसा कि जर्मनी में होता है, जहां सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले विधानमंडल के सदस्यों के पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या होनी चाहिए। एक साथ चुनाव होने को लेकर पीपी चौधरी ने कहा कि समिति विचार-विमर्श करेगी; संसद निर्णय करेगी। हम यह नहीं कह सकते कि कब, लेकिन विधेयक में संसद के पहले सत्र का उल्लेख है, अगर यह नियत तिथि पर होता है, तो यह 2034 से होगा।

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राष्ट्रपति घोषित करेंगे तारीख

संविधान (एक सौ उनतीसवां संशोधन) विधेयक, 2024 और केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन विधेयक), 2024 लोकसभा और विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने का प्रावधान करते हैं। यदि विधेयक पारित हो जाता है, तो राष्ट्रपति नव-निर्वाचित लोकसभा की पहली बैठक में एक तारीख घोषित करेंगे और तारीख के बाद निर्वाचित प्रत्येक राज्य या केंद्र शासित प्रदेश विधानसभा का कार्यकाल लोकसभा के साथ संरेखित करने के लिए कम कर दिया जाएगा।

इससे लोकसभा का पांच साल का कार्यकाल समाप्त होने पर एक साथ चुनाव कराने का प्रावधान होगा। विधेयक में यह भी प्रावधान है कि यदि सरकार पांच साल के कार्यकाल से पहले गिर जाती है, तो शेष अवधि के लिए चुनाव कराए जाएंगे।

त्रिशँकु सदन या अविश्वास प्रस्ताव को लेकर क्या कहा?

एक बड़ा सवाल यह भी है कि अगर लोकसभा या विधानसभा चुनाव में त्रिशंकु जनादेश आता है या केंद्र या राज्य सरकार गिर जाती है तो क्या होगा। इसको लेकर पीपी चौधरी ने कहा कि संविधान में अभी भी अविश्वास प्रस्ताव का उल्लेख नहीं है; यह लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमों के नियम 198 द्वारा शासित है। हम स्थिरता के लिए कुछ प्रावधान ला सकते हैं। हम संविधान में नए प्रावधानों की सिफारिश कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि समिति इस मुद्दे पर विचार-विमर्श कर सकती है और इस पर संसद को फैसला करना है।

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पीपी चौधरी ने कहा कि अगर संविधान में कुछ बाधाएं हैं, तो सभी सदस्यों के साथ चर्चा के बाद उन बाधाओं का निवारण किया जा सकता है। जर्मन मॉडल की तरह रचनात्मक अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की जा सकती है। एक बार जब आप अविश्वास प्रस्ताव लाते हैं, तो उसी समय आपको विश्वास प्रस्ताव भी लाना चाहिए। दुर्लभतम परिस्थितियों में, सदन के नेता का चुनाव स्पीकर की तरह सदन में ही किया जा सकता है।

बताए एक देश एक चुनाव के फायदे

विपक्ष के कुछ लोगों द्वारा इस कदम को लोकतंत्र विरोधी और संघवाद के खिलाफ बताए जाने की आलोचना पर प्रतिक्रिया देते हुए पीपी चौधरी ने कहा कि एक साथ चुनाव कराने से लोकतंत्र को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि हमारे अनुभव में, जिन राज्यों में एक साथ चुनाव होते हैं, वहां मतदान प्रतिशत 10-20% अधिक होता है। क्या यह लोकतंत्र के हित में है या इसके खिलाफ? अगर केवल 40% मतदान होता है और प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री 21% वोटों से चुने जाते हैं, तो क्या यह लोकतंत्र है?

बीजेपी सांसद और जेपीसी अध्यक्ष ने कहा कि मेरा मानना ​​है कि अगर एक साथ चुनाव होते हैं तो मतदान 80% को पार कर जाएगा। लोगों की इच्छा की अभिव्यक्ति अधिक मजबूत होगी और इससे लोकतंत्र मजबूत होगा। एक साथ चुनाव न कराना लोकतंत्र विरोधी है। उन्होंने कहा कि विधेयक केवल चुनावों की समय-सारिणी तय करते हैं और संविधान के मूल ढांचे, संघवाद और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों को प्रभावित नहीं करते। उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 327 संसद को विधानसभाओं के चुनावों के संबंध में प्रावधान करने की शक्ति देता है।

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संघवाद को लेकर क्या कहा?

पीपी चौधरी ने कहा कि जहां तक ​​संघवाद की बात है तो सर्वोच्च न्यायालय ने 1994 में एसआर बोम्मई मामले में इस बात पर बल दिया था कि संघवाद एक बुनियादी विशेषता है और समिति के समक्ष प्रस्तुत विधेयक इसका उल्लंघन नहीं करते हैं, क्योंकि संघ और राज्यों की शक्तियां समान हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि इन विधेयकों से संसद के प्रति सरकार की जवाबदेही में कोई बदलाव नहीं आएगा और बार-बार चुनाव कराने का मतलब यह नहीं है कि सरकार अधिक जवाबदेह होगी। जेपीसी चीफ ने कहा कि हमारे यहां संसदीय लोकतंत्र है। कार्यपालिका संसद के प्रति चौबीसों घंटे जवाबदेह है।

क्षेत्रीय दलों की चिंता पर भी बोले जेपीसी चीफ

क्षेत्रीय दलों की चिंता के बारे में पूछे जाने पर कि एक साथ चुनाव कराने से क्षेत्रीय मुद्दे दरकिनार हो जाएंगे, उन्होंने कहा कि मतदाता केंद्र और राज्य में अलग-अलग दलों को चुनने में सक्षम हैं। उन्होंने कहा कि आज के मतदाता बहुत बुद्धिमान और राजनीतिक रूप से शिक्षित हैं। हम भारतीय मतदाताओं को कम नहीं आंक सकते। उन्हें कम आंकना उन्हें कमतर आंकने के बराबर होगा। मतदाता, खासकर ग्रामीण इलाकों में, जहां से मैं आता हूं, जानते हैं कि राष्ट्रीय मुद्दों पर आधारित राष्ट्रीय चुनावों में किसे वोट देना है और स्थानीय मुद्दों पर आधारित स्थानीय चुनावों में किसे वोट देना है।

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