पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता एस जयपाल रेड्डी का निधन हो गया है। वो 77 साल के थे। रेड्डी राजनीतिक शुचिता, ईमानदारी और अपनी वाकपटुता के लिए विख्यात थे। उन्होंने देश में इमरजेंसी लगाए जाने के मुद्दे पर अपनी राजनीतिक बॉस और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का विरोध किया था और कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी। 1980 में जब लोकसभा के चुनाव हुए तो जयपाल रेड्डी ने इंदिरा गांधी के खिलाफ आंध्र प्रदेश की मेडक सीट से चुनाव लड़ा था। हालांकि, वो चुनाव हार गए थे।

21 साल बाद रेड्डी 1999 में सोनिया गांधी से प्रभावित होकर दोबारा कांग्रेस में लौटे। 1977 में वो कांग्रेस छोड़कर जनता पार्टी में शामिल हो गए थे। बाद में वो जनता दल में चले गए। अपनी स्पष्टवादिता और बोलने की शैली की वजह से उन्होंने लगभग सभी दलों में प्रवक्ता का पद संभाला। 1998 में इंद्र कुमार गुजराल की सरकार में रेड्डी सूचना प्रसारण मंत्री बनाए गए थे। इसी दौरान उन्होंने दूरदर्शन और आकाशवाणी को प्रसार भारती बोर्ड के अधीन लाया था। इस बोर्ड को स्वायतशासी निकाय बनाया था।

कांग्रेस में लौटने के बाद 1999 में रेड्डी लोकसभा सदस्य चुने गए। 2004 में यूपीए-1 की मनमोहन सिंह सरकार में रेड्डी को पहले सूचना प्रसारण मंत्री बनाया गया। इस दौरान उन्होंने मीडिया मुगल रूपर्ट मढोक को डीटीएच कारोबार में घुसने से रोक दिया। बाद में वो शहरी विकास और संस्कृति मंत्री बनाए गए। वो अक्सर कैबिनेट के फैसलों की ब्रीफिंग करते नजर आते थे। रेड्डी 2004 में मिर्यलागुदा और 2009 में चेवेल्ला लोकसभा क्षेत्र से चुने गए। 2014 में वो महबूबनगर से लोकसभा सीट से चुनाव हार गये और उन्होंने 2019 में आम चुनाव नहीं लड़ा।

यूपीए-2 सरकार में 2011 में उन्हें पेट्रोलियम मंत्री बनाया गया था लेकिन उसी साल 2011-12 में देश के सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी से उनकी टक्कर हो गई थी। रेड्डी ने बतौर पेट्रोलियम मंत्री अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड पर करीब 7000 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था और मंत्रालय के उन अधिकारियों का तबादला कर दिया था, जो अंबानी के शुभचिंतक थे। दरअसल, रिलायंस ने कृष्णा-गोदावरी बेसिन में निर्धारित लक्ष्य से कम मात्रा में गैस का उत्पादन किया था। इससे सरकार को करीब 20,000 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ था। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में इसका खुलासा किया था।

रिलायंस पर जुर्माना लगाने की वजह से मुकेश अंबानी से जयपाल रेड्डी की ठन गई और विवाद पैदा हो गया। बाद में दो साल के कार्यकाल से पहले ही जयपाल रेड्डी का तबादला कर उन्हें साइंस एवं टेक्नोलॉजी मंत्री बना दिया गया। रेड्डी अपनी राजनीतिक पारदर्शिता की वजह से न तो कभी सोनिया गांधी और न ही मनमोहन सिंह के करीबी बन सके। पार्टी में भी उनकी सलाह को ज्यादा तवज्जो नहीं दिया जाता था।हालांकि, तेलंगाना के गठन में जयपाल रेड्डी ने बड़ी भूमिका निभाई थी। उन्होंने इसके लिए सोनिया गांधी को राजी करवा लिया था। कहा जाता है कि कांग्रेस के अंदर इस पर सहमति बन गई थी कि 2014 में पार्टी की जीत होने पर तेलंगाना में जयपाल रेड्डी को सीएम बनाया जाएगा लेकिन ऐसा हो नहीं सका। रेड्डी पर अरस्तु, प्लेटो, स्वामी विवेकानंद के दर्शन का काफी प्रभाव था।