लालू यादव का अपना ही एक बेलाग अंदाज रहा है। हंसी ठठके में वह अपने विरोधियों को चारों खाने चित्त करने के लिए मशहूर रहे हैं। 1995 में भी ऐसा ही एक किस्सा सामने आया था। तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन से लालू की तलवार इतनी ज्यादा खिंच चुकी थी कि कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं हो रहा था। दोनों एक दूसरे को किसी भी तरह से मात देने पर आमादा हो रहे थे।

गांधी मैदान: Bluff of Social Justice में अनुरंजन झा ने ऐसे ही एक किस्से का जिक्र किया है। बकौल झा, चुनाव की तारीखों को बार-बार आगे बढ़ाने के शेषन के रवैये से लालू इतने परेशान हुए कि उन्होंने बिहार चुनाव आयोग के अधिकारी को फोन लगाकर कहा, ऐ पिल्लई, इ का हो रहा है…हम तुमरा चीफ मिनिस्टर हैं और तुम हमरा अधिकारी, ई बीच में बेर-बेर शेषनवा कहां से आ जाता है और समझाओ उसको उ फैक्स करता है…बीतने दो चुनाव सब फैक्स फुक्स उड़ा देंगे।

शेषन ने 1995 के दौरान चार बार चुनाव की तारीख को आगे बढ़ाने का संदेश वोटिंग से पहले वाली रात को भेजा। शेषन और लालू के दौर के कई किस्ते मशहूर हैं। उस दौरान यह किस्से लोगों की जुबान पर हुआ करते थे। शेषन ने एक बार कहा था,-I WILL CLEAN THE BIHAR। शेषन की सख्ती और ऐसे बयान के बाद लालू ने अपने चिर परिचित अंदाज में कहा था, उ शेषनवा को बुझाता ही नहीं है, हम कउन हैं, भैंसिया पर चढ़ाकर गंगा जी में हेला देंगे। लालू के इस बयान पर लोग सभाओं में ठहाके लगाते और जमकर तालियां बजाते थे।

दूसरी तरफ लालू मन की मन चिंतित हो रहे थे। सरकारी अमले का इस्तेमाल चुनाव में कैसे करना है, यह लालू तय कर चुके थे। नेता वह 1977 में बन चुके थे। कहते हैं कि नेता बनने के लिए स्वार्थी होना जरूरी होता है। अपने गुरु कर्पूरी ठाकुर को धोखा देकर लालू साबित कर चुके थे कि वह सही रास्ते पर हैं। लालू सत्ता में बने रहने के लिए कोई भी तिकड़म कर सकते थे।

लालू सबसे ज्यादा तब तिलमिलाए, जब शेषन ने चौथी बार तारीख को आगे टालने का फैक्स दिल्ली से भेजा। लालू ने राज्य चुनाव आयोग के अधिकारी को फोन लाइन पर लेकर नसीहत दे डाली। ऐसा नहीं था कि लालू इसे महज गुस्से में बयान कर रहे थे। दरअसल, लालू अपने सामंती चेहरे से ऐसे ही नकाब उतारते थे। अपने इसी अंदाज की वजह से वह राजनीतिक गलियारों में मशहूर थे। लोगों को भी उनका स्टाइल भाता था।

ऐसा नहीं था कि लालू इसलिए परेशान थे कि शेषन की वजह से चुनाव लंबा खिंच रहा है। उनकी परेशानी का कारण यह था कि बार-बार चुनाव आयोग को चुनौती देने की उनकी सारी तैयारी धरी की धरी रह जाती थीं। तमाम उठापटक और तकरार के बाद शेषन ने 1995 का चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से पूरा कराया। सभी 324 उम्मीदवारों की तकदीर बैलट बॉक्स में बंद हो चुकी थी।