तारीख 26 सितंबर 1983, जगह तत्कालीन USSR यानि आज का रूसउस रोज़ अगर रशियन आर्मी ऑफिसर स्तानिस्लाव पेत्रोव ने ठंडे दिमाग और सूझ बूझ से काम ना लिया होता तो आज दुनिया तीसरे महायुद्ध के ऑफ्टर इफेक्ट से उबरने में ही लगी होतीदरअसर हुआ कुछ यूं था कि सोवियत अटॉमिक अटैक वॉर्निग सिस्टम पर अचानक से एक अलर्ट मैसेज आयालिखा था कि अमेरिका ने कुछ मिसाइलें उनके देश की तरफ फायर की हैं। आर्मी प्रोटोकॉल के मुताबिक अगर ऐसा कोई अलर्ट आता है तो इसकी सूचना सबसे पहले कमांड चीफ को देनी है…” लेकिन पेत्रोव ने कोर्ट मॉर्शल की परवाह ना कहते हुए आर्मी हेडक्वाटर को फोन लगाया और सिस्टम में खराबी की शिकायत कीये पेत्रोव समेत पूरी दुनिया की खुशकिस्मती थी कि उनका शक सही थासिस्टम वाकई खराब था क्योंकि जिन मिसाइलों के लॉन्चिंग की बात एलर्ट में थी, वो दरअसल 4 दिन पहले नाटो के एक युद्ध अभ्यास के दौरान दागी गईं थी और वो भी सोवियत संघ को पूर्व सूचना देने के बादयुद्धाभ्यास का नाम था ऑपरेशन एबल आर्चर…. जरा सोचिए कि अगर पेत्रोव ने उस रोज प्रोटोकॉल का पालन किया होता तो क्या होताअगर नहीं सोच पा रहे तो हम बता देते हैंहोता ये कि परमाणु हथियारों से लैस रूस के 108 फाइटर जेट अमेरिका और उसके मित्र राष्ट्रों पर परमाणु हमला कर देतेकम से कम हाल ही जारी एक अमेरिकी खुफिया दस्तावेज से तो यही खुलासा होता है

हमले की ताक में थे 108 रशियन विमान

यूएस स्टेट डिपार्टमेंट के दस्तावेजों की माने तो 1983 अमेरिका की अगुवाई वाले नाटो सैन्य गठबंधन ने ठीक जंग जैसे हालात में रुसी फौजों से निपटने के लिए एक अभ्यान कियानाम था एबल आर्चर….इस एक्सरसाइज़ में अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी की सेनाएं भी हिस्सा ले रही थींऐसे में किसी भी अनहोनी से निपटने के लिए सोवियत सेनाएं भी हाई अलर्ट पर थींअलग अलग मोर्चों पर एक साथ नाटो फौजों से निपटने के लिए रूस ने पूर्वी यूरोप में 108 युद्धक विमानों को न्यूक्लियर वॉरहेड के साथ तैयार रखा था, जो पलक झपकते ही अमेरिका और मित्र राष्ट्रों पर टूट पड़ते

अमेरिका ऐसे करता जवाबी हमला

उस वक्त के नाटो खुफिया प्रमुख और अमेरिकी सेना के लेफ्टिनेंट जनरल पेरोटोट्स के मेमो से पता चलता है कि रूस की इन तैयारियों के खिलाफ अमेरिका भी तैयार था, परमाणु हमले का जवाब परमाणु हमले से ही दिया जाना था। यूएसए और यूएसएसआर के जंगी जहाज चौबीसों घंटे एक दूसरे के ऊपर हमला करने के लिए तैयार खड़े थे। अमेरिका ने तो मानो रूस को चिढ़ाने की कसम खा रखी थीकभी रूस की वायु सीमा के पास अमेरिकी बॉम्बर अभ्यास करते तो कभी यूएस नेवी की पनडुब्बियां परमाणु हथियारों समेत सोवियत जलक्षेत्र के बेहद नजदीक गश्त लगातीं। जाहिर है दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर था
रशियन विमानों तो अमेरिकी मिसाइलें देतीं जवाब
अमेरिकी योजना ये थी कि यूरोप समेत दुनिया भर में रूस के नौसैनिक अड्डों पर एक साथ हमला करके उन्हें तबाह कर दिया जाएइसके लिए आवाज की गति से आठ गुना तेज रफ्तार यानि मैक 8 स्पीड वाली पर्सिहिंग-2 को तैनात किया गया था, जो कि 80 किलोटन के न्यूक्लियर वॉरहेड के साथ 1770 किलोमीटर दूर के लक्ष्य पर सटीक निशाना लगा सकता थाआज रशियन एयर डिफेंस सिस्टम एस-400 से अमेरिका खौफ खाता है, मगर उस वक्त दहशत में रूस था क्योंकि तब रशिया के पास अमेरिकी मिसाइलों की तो़ड़ नहीं थी और उन्हें डर था कि कहीं अमेरिका, मास्को को निशाना ना बना ले