प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) पर लोकसभा में कांग्रेस के विरोध की कड़ी आलोचना की। पीएम ने पौन 2 घंटे के अपने भाषण में 1950 में हुए नेहरू-लियाकत समझौते का जिक्र किया। इस दौरान उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का कई बार जिक्र किया। उन्होंने 23 बार नेहरू का नाम लिया। पीएम ने कहा ‘1950 में नेहरू-लियाकत समझौता हुआ। भारत और पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए ये समझौता हुआ था। समझौते का आधार पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ भेदभावपूर्ण व्यव्हार नहीं होगा। नेहरु जी इतने बड़े विचारक थे, उन्होंने ‘वहां के अल्पसंख्यकों’ की जगह, ‘वहां के सारे नागरिक’ का उपयोग क्यों नहीं किया? जो बात हम आज बता रहे हैं, वही बात नेहरु जी ने भी कही थी।
अब सवाल यह है कि क्या नेहरू ने भी यही बातें कही थीं जो आज पीएम मोदी कह रहे हैं। द टेलिग्राफ में छपी एक खबर के मुताबिक पीएम मोदी ने इस समझौते की पहली लाइन का जिक्र ही नहीं किया। समझौते में कहा गया है कि दोनों देश अपने-अपने नागरिकों ‘चाहे वे किसी भी धर्म’ के हों उन्हें संरक्षण दिया जाएगा। समझौते में लिखा गया है कि ‘भारत और पाकिस्तान की सरकार अपने-अपनी सीमाओं में मौजूद अल्पसंख्यकों को बराबरी का हक देंगे। अल्पसंख्यकों के खिलाफ किसी भी तरह का कुप्रचार नहीं चलने दिया जाएगा। इनके मानवधिकारों का भी ख्याल रखा जाएगा जिसमें कहीं आने-जाने की आजादी, विचार और अभिव्यक्ति की आजादी और धर्म की आजादी शामिल है।’
पीएम मोदी ने असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोपीनाथ बोरदोलोई को नेहरू की तरफ से लिखे उस पत्र का जिक्र किया जिसे 1950 में हुए इस समझौते से एक साल पहले लिखा गया था। पीएम ने कहा ‘पत्र में लिखा गया था कि ‘आपको हिंदू शरणार्थियों और मुस्लिम प्रवासियों के बीच अंतर करना होगा। आपको शरणार्थियों को बसाने की पूरी जिम्मेदारी लेनी होगी।’
नेहरू ने यह खत कथित तौर पर पूर्वी पाकिस्तानी लोगों के भारी संख्या में भारत आने पर असम के नेताओं के एक पत्र के जवाब में बोरदोलोई को लिखा था। पत्र में असम के नेताओं ने लोगों के भारत आने पर चिंता व्यकत की थी। पीएम ने कहा ‘इसी संसद में नेहरू जी ने 1950 में कहा था कि ‘भारत में बसने के लिए जो प्रताड़ित लोग आए हैं, वे नागरिकता के हकदार हैं इसमें कोई संदेह नहीं है। अगर कानून में इसके लिए ‘संशोधन’ किया जाना चाहिए तो ऐसा किया जाए।’
बता दें कि सीएए में मुस्लिम धर्म के लोगों को शामिल नहीं किया गया है, इसपर विपक्ष लगातार मोदी सरकार पर हमलावर है। कांग्रेस का कहना है कि सरकार धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण और संविधान का उल्लंघन कर रही है।