राजस्थान में मेवाड़ राजघराने को लेकर विवाद खुलकर सामने आ गया है। सोमवार को बीजेपी विधायक विश्वराज सिंह और उनके समर्थकों को सिटी पैलेस में एंट्री नहीं दी गई। उदयपुर-नाथद्वारा से विधायक और पूर्व मेवाड़ राज परिवार के सदस्य विश्वराज सिंह मेवाड़ की राजतिलक हुआ। इसके चलते विश्व विख्यात ऐतिहासिक चित्तौड़गढ़ दुर्ग स्थित फतह प्रकाश महल में उनके राजतिलक की रस्म निभाई गई। सिटी पैलेस का मैनेजमेंट उनके चचेरे भाई और चाचा श्रीजी अरविंद सिंह मेवाड़ करते हैं। विश्वराज सिंह को सोमवार सुबह चित्तौड़गढ़ किले में पूर्व राजपरिवार के मुखिया के तौर पर नियुक्त किया गया था।

क्या है पूरा मामला?

मेवाड़ में विश्वराज के पिता महेंद्र सिंह का इसी महीने निधन हो गया था। इसके बाद विश्वराज को गद्दी पर बैठाने का ‘दस्तूर’ (रस्म) कार्यक्रम चित्तौड़गढ़ किले के फतहप्रकाश महल में आयोजित किया गया और इसमें कई राज परिवारों के प्रमुख शामिल हुए। महेंद्र सिंह और उनके अलग हुए छोटे भाई अरविंद सिंह मेवाड़ के बीच काफी वक्‍त से विवाद चल रहा है। अरविंद सिंह ने दस्तूर कार्यक्रम के तहत विश्वराज के एकलिंग नाथ मंदिर और उदयपुर में सिटी पैलेस में जाने के खिलाफ सार्वजनिक नोटिस जारी किया है। अरविंद सिंह का कहना है कि मेवाड़ राजघराना ट्रस्ट के जरिए चलता है। इसका संचालन उनके पिता की देखरेख में था। अब अरविंद सिंह ने कहा कि ऐसे में राजगद्दी पर अब उनका या उनके बेटे का अधिकार है।

कैसे शुरू हुआ मेवाड़ राजघराने का विवाद?

मेवाड़ राजघराने का विवाद तब शुरू हुआ जब विश्वराज सिंह ने अपने राज्याभिषेक समारोह के बाद अनुष्ठान के तहत पारिवारिक देवता एकलिंगनाथ मंदिर और उदयपुर स्थित सिटी पैलेस की ओर बढ़े। यहां पहले से ही उनके चचेरे भाई और चाचा श्रीजी अरविंद सिंह मेवाड़ मौजूद थे और उन्होंने विश्वराज सिंह को रोक लिया। सिटी पैलेस में एंट्री करने से रोके जाने पर दोनों पक्षों के बीच झड़प शुरू हो गई। विश्वराज सिंह के समर्थकों ने पैलेस के गेट पर धावा बोलने की कोशिश की तो उन पर पत्थर फेंके गए। इसके बाद मौके पर भारी संख्या में पुलिस बल तैनात करना पड़ा। खुद जिलाधिकारी अरविंद पोसवाल और एसपी योगेश गोयल ने दोनों पक्षों से बात करने की कोशिश की लेकिन वह मानने को तैयार नहीं हुए।

जानिए कैसे हुई विवाद की शुरुआत

मेवाड़ में 1955 में भगवंत सिंह महाराणा बने। इसी दौरान संपत्ति को लेकर विवाद शुरू हो गया। भगवंत सिंह ने मेवाड़ में अपनी संपत्तियों को बेचना शुरू कर दिया। कुछ संपत्तियों को उन्होंने लीज पर भी दिया। यही बात उनके बेटे महेंद्र सिंह को पसंद नहीं आई। इस बात से नाराज होकर महेंद्र सिंह ने अपने पिता के खिलाफ ही केस दर्ज कर दिया। उन्होंने याचिका में पैतृक संपत्तियों को हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत बांटने की मांग की। इसके बाद भगवंत सिंह ने 15 मई 1984 को अपनी वसीयत में छोटे बेटे अरविंद सिंह को संपत्तियों का एक्‍ज्‍यूक्‍यूटर बना दिया। भगवंत सिंह ने महेंद्र सिंह को ट्रस्‍ट और संपत्ति से बेदखल कर दिया गया। महेंद्र सिंह मेवाड़ 16वीं शताब्दी के राजपूत राजा महाराणा प्रताप के वंशज थे, जिन्होंने 1597 में अपनी मृत्यु तक मेवाड़ पर शासन किया था। महेंद्र सिंह 1989 में भाजपा के टिकट पर चित्तौड़गढ़ सीट से लोकसभा के लिए चुने गए थे। यहां पढ़ें संभल हिंसा की फुल कवरेज