हाल ही में इंडियन एक्सप्रेस ने बताया था कि लोकप्रिय मैसेजिंग प्लेटफॉर्म व्हाट्सएप का इस्तेमाल इस साल की शुरुआत में भारत में पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की जासूसी करने के लिए किया गया है। पेगासस नामक एक स्पाइवेयर टूल का उपयोग करके निगरानी की गई थी, जिसे एक इजरायली फर्म, एनएसओ ग्रुप द्वारा विकसित किया गया है। जिसके बाद व्हाट्सएप की तरफ से सैन फ्रांसिस्को में एनएसओ समूह पर मुकदमा दायर किया गया है।
कैसे काम करता है स्पाइवेयर Pegasus?: सभी स्पाइवेयर फोन के जरिए लोगों की जासूसी करते हैं। पेगासस की तरफ से एक लिंक भेजा जाता है, और यदि लक्षित उपयोगकर्ता लिंक पर क्लिक करता है, तो उपयोगकर्ता के फोन पर मैलवेयर या निगरानी की अनुमति देने वाला कोड इंस्टॉल हो जाता है।(मैलवेयर के नए संस्करण के लिए किसी लिंक पर क्लिक करने की जरूरत भी अब नहीं रह गयी है )।
पेगासस को लेकर कहा जाता है कि पासवर्ड,डिवाइस सेटिंग्स और ब्राउज़िंग, हिस्ट्री, ईमेल, एसएमएस पर बिना उपयोगकर्ता के जानकारी के नजर रखता है। पासवर्ड से सुरक्षित उपकरणों में भी यह सेंध लगा सकता है। साथ ही यह डिवाइस पर अपना कोई निशान नहीं छोड़ता है। बैटरी, मेमोरी और डेटा की खपत पर इसका कोई असर नहीं होता है।
कई लोगों के लिए बड़ा सवाल यह है कि इस स्पाइवेयर ने किस तरह से व्हाट्सएप को निशाना बनाया। क्योंकि व्हाट्सएप की तरफ से हमेशा से इस बात का दावा किया जाता रहा है कि एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन की व्यवस्था है। लेकिन इस स्पाइवेयर को इंस्टॉल करने के लिए सिर्फ एक मिस्ड कॉल की जरूरत होती है।
व्हाट्सएप की लोकप्रियता इसे हैकर्स, साइबर अपराधियों या अन्य संस्थाओं के लिए एक टार्गेट बनाती है। यहां तक कि दुनिया भर की प्रवर्तन एजेंसियां चाहती हैं कि संदेशों को डिक्रिप्ट किया जाए। यही कारण है कि कई बार व्हाट्सएप को निशाना बनाया जाता रहा है।
पेगासस के स्पाइवेयर संचालन पर पहली रिपोर्ट 2016 में सामने आई थी, जब संयुक्त अरब अमीरात में मानवाधिकार कार्यकर्ता अहमद मंसूर को उसके आईफोन 6 पर एक एसएमएस लिंक के साथ टार्गेट किया गया था। उस समय पेगासस टूल ने ऐप्पल के आईओएस में एक सॉफ्टवेयर लिंक भेजा था।